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द्रोणाचार्य अवॉर्ड विजेता संजय भारद्वाज ने कही भावुक बातें, बोले गौतम गंभीर की इस पारी को बताया सर्वश्रेष्ठ तोहफा

भारद्वाज ने कहा कि अगर आप मुझसे मेरे सबसे गौरवान्वित पल के बारे में पूछेंगे तो गलत होगा क्योंकि मेरे लिए मेरे सभी बच्चे अहमियत रखते हैं.

Updated on: 20 Aug 2019, 05:42 PM

नई दिल्ली:

कोच के लिए द्रोणाचार्य अवॉर्ड से बड़ा कुछ नहीं हो सकता. क्रिकेट कोच संजय भारद्वाज को इसके लिए भले ही इंतजार करना पड़ा लेकिन वह अवॉर्ड मिलने के समय के बारे में बात नहीं करना चाहते. उनके लिए सम्मान मिलना इस बात की प्रेरणा है कि वह और बेहतरीन खिलाड़ी तैयार करें जो देश का प्रतिनिधित्व कर सकें. भारद्वाज ने कई ऐसे खिलाड़ी इस देश को दिए हैं जिन्होंने न सिर्फ घरेलू क्रिकेट में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश का मान बढ़ाया है. भारद्वाज ने इस देश को गौतम गंभीर, अमित मिश्रा, रीमा मल्होत्रा, जोगिंदर शर्मा, उनमुक्त चंद, नीतिश राणा जैसे स्टार खिलाड़ी दिए हैं. भारद्वाज को बीते शनिवार को द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए चुना गया है.

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भारद्वाज ने न सिर्फ अपने शिष्यों द्वारा आगे जाकर देश के लिए विश्व कप जीतने की बात पर चर्चा की बल्कि बताया कि उन्होंने क्यों कभी भी राष्ट्रीय कोच बनने के बारे में नहीं सोचा. भारद्वाज ने कहा, "अगर आप मुझसे मेरे सबसे गौरवान्वित पल के बारे में पूछेंगे तो गलत होगा क्योंकि मेरे लिए मेरे सभी बच्चे अहमियत रखते हैं. हां, जब मेरे बच्चे देश के लिए विश्व कप जीत कर लाते हैं- गंभीर (2007 टी-20 विश्व कप, 2011 विश्व कप), जोगिंदर (2007 टी-20 विश्व कप), उनुक्त चंद (यू-19 विश्व कप-2012), मनजोत कालरा (यू-19 विश्व कप-2018), तो मुझे गर्व होता है. सबसे बड़े मंच पर आगे आकर बेहतरीन प्रदर्शन करना और देश के लिए मैच जीतना, इससे बड़ी कोई बात नहीं."

भारद्वाज से जब एक ऐसे प्रदर्शन के बारे में पूछा गया जो उनकी यादों के बक्से में हमेशा रहेगा तो उन्होंने कहा, "आप मुझे कोई एक निश्चित प्रदर्शन बताए बिना रहने नहीं देंगे, तो मैं कहूंगा कि गंभीर की 2011 विश्व कप में फाइनल में वो बेहतरीन पारी. लेकिन साथ ही टी-20 विश्व कप-2007 में गंभीर और जोगिंदर का प्रदर्शन भी मेरे लिए विशेष है. उतना ही उनमुक्त की कप्तानी में जीता गया अंडर-19 विश्व कप-2012." भारद्वाज ने कई खिलाड़ियों के करियर संवारे हैं लेकिन फिर भी उनके दिमाग में कभी राष्ट्रीय कोच बनने का बात नहीं आई. वह अभी भी लाल बहादुर शास्त्री क्रिकेट अकादमी के कोच हैं.

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उन्होंने कहा, "अगर ईमानदारी से कहूं तो यह विचार कभी भी मेरे दिमाग में नहीं आया. मुझे हमेशा से लगता है कि बुनियादी पत्थर बेहद जरूरी होता है और अगर मैं एक चेन बना सका तो यह राष्ट्रीय कोच के तौर पर हासिल की गई उपलब्धियों से कई ज्यादा बेहतर होगी." कोच अपने अतीत की उपलब्धियों पर बैठकर आराम नहीं करना चाहते. वह लगातार नए खिलाड़ी निकाल रहे हैं. उनमें से ही एक हैं नीतिश राणा जो राष्ट्रीय टीम के दरवाजे पर खड़े हैं. भारद्वाज ने कहा, "हां, वो अच्छा कर रहा है. मुझे लगता है कि वह भारतीय टीम में जाने के बेहद करीब है. लेकिन इससे कोई बदलाव नहीं होगा. वह लोगों द्वारा बेशक सेलेब्रिटी बना दिया जाए लेकिन मेरे लिए फिर भी वो बच्चा रहेगा और मेरा काम उसे मार्गदर्शन देना रहेगा."

उन्होंने हसंते हुए कहा, "मुझे याद है कि आपने जब उसे पहली बार देखा तो कहा था कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी है. लोगों को जो उससे उम्मीदें हैं मैंने सिर्फ उसे पूरा करने की कोशिश की है. उसे सिर्फ सर निचा कर अपना काम करने और इंडिया-ए के लिए खेलते हुए रन बनाने की जरूरत है." कोच ने कहा कि वह जल्दी रूकने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा, "सफर सिर्फ शुरू हुआ है. इस सम्मान ने मुझे भरोसा दिलाया है कि मेहनत सफल होती है. जब तक मैं मैदान पर कदम रखने के काबिल हूं तब तक मैं खिलाड़ी निकालता रहूंगा. प्रक्रिया जारी रखनी चाहिए."