क्या चेतेश्वर पुजारा बन पाएंगे टीम इंडिया के अगले 'दि वॉल'?
पुजारा ने अब तक केवल 38 टेस्ट खेले हैं और उनके खाते में 8 शतक हैं। द्रविड़ ने इसके उलट 15 सालों में 164 टेस्ट खेले।
highlights
- फर्स्ट क्लास में बेहतर स्ट्राइक रेट लेकिन इंटरनेशनल में धीमे हैं पुजारा
- द्रविड़ की तरह तोड़ना होगा टेस्ट प्लेयर का तमगा
नई दिल्ली:
राजकोट में पहले दो दिनों में जब इंग्लिश बल्लेबाजों ने स्कोरबोर्ड पर 537 रन टांग दिए तो दबाव टीम इंडिया पर था। जरूरत थी कि टॉप ऑर्डर मेजबान टीम को एक ठोस शुरुआत दे। मुरली विजय के साथ पारी की शुरुआत करने आए गौतम गंभीर नहीं चले। लेकिन इसके बाद तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करने आए चेतेश्वर पुजारा। एक ऐसा बल्लेबाज जिसे लेकर पिछले पांच साल से बातें हो रही हैं, और कई तरह की बातें हो रही हैं।
राजकोट में मुरली विजय और पुजारा ने शतक लगाए, दोनों के बीच 209 रनों की साझेदारी हुई और अब आलम ये है कि भारत दोबारा मैच में वापसी करता नजर आ रहा है। चार साल से ज्यादा का समय गुजर गया, जब राहुल द्रविड ने संन्यास की थी। सबके जेहन में सवाल यही था कि राहुल द्रविड़ के बाद अब कौन? 'दि वॉल' का जो तमगा राहुल द्रविड़ की पहचान बना, क्या कोई उसकी बराबरी कर सकेगा? द्रविड़ यूं ही 'दि वॉल' नहीं कहे जाने लगे थे। वे जब बैटिंग करने आते थे तो उनके पीछे-पीछे करोड़ो लोगों का भरोसा भी उस क्रीज पर उतरता था और जाने कितनी बार द्रविड़ ने उस भरोसे की लाज रखी।
पुजारा क्या अगले द्रविड साबित होंगे?
हो सकता है कि ये सवाल पूछना अभी जल्दबाजी हो लेकिन 2010 में बेंगलुरु में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने पहले टेस्ट से लेकर अब तक पुजारा ये साबित करते रहे हैं कि उनमें कुछ तो खास है जो उन्हें आज के फटाफट क्रिकेट के दौर से अलग ले जाकर खड़ा करता है।
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पुजारा को लेकर ये बाते तब शुरू हुईं जब उन्होंने 2013 में जोहांसबर्ग में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दूसरी पारी में 153 रन बनाए और फिर डरबन में अगले टेस्ट में 70 रनों की पारी खेली। पुजारा की खास बात ये भी है कि वो विदेशी जमीन पर ठोस तकनीक और ज्यादा आत्मविश्वास के साथ बल्लेबाजी करते नजर आए हैं।
पुजारा ने अब तक केवल 38 टेस्ट खेले हैं और उनके खाते में 8 शतक हैं। द्रविड़ ने इसके उलट 15 सालों में 164 टेस्ट खेले। जाहिर, अभी दोनों के बीच अंतर जमीन-आसमान का है। लेकिन खेल की शैली के अलावा एक खास समानता भी है। पुजारा आज वनडे और टी20 क्रिकेट के लिहाज से वैसी ही नजर से देखे जाते हैं, जैसा द्रविड़ कभी अपने करियर के शुरुआती दिनों में देखे जाते थे। 15 साल पहले टी-20 नहीं था लेकिन वनडे फॉर्मेट में द्रविड़ पर हमेशा ये आरोप लगता रहा कि आक्रामक क्रिकेट उनके बस का नहीं है।
ये और बात है कि वक्त के साथ द्रविड़ कब उस धारणा को तोड़ते चले गए, पता ही नहीं चला। आज टी20 का दौर है। आईपीएल के प्रदर्शन को देखकर साल भर के टैलेंटेड खिलाड़ियों को चुनने का पैमाना जोर पकड़ रहा है तो जाहिर है पुजारा के लिए चुनौती भी ज्यादा है।
वनडे और टी20 के लिए नहीं हैं पुजारा?
इंटरनेशनल क्रिकेट में पुजारा को हमेशा वनडे और टी20 का खिलाड़ी नहीं माना गया। उनके बारे में यही कहा जाता रहा है कि वे ज्यादा तेजी से रन नहीं बना सकते और तकनीक को लेकर हद से ज्यादा गंभीर हैं। यही कारण भी है कि 2013 में वनडे में डेब्यू करने वाले पुजारा को अब तक केवल पांच मैचों में मौका दिया गया। आईपीएल में भी पुजारा को लेकर फ्रेंचाइजी टीमें ज्यादा गंभीर नहीं रहीं। लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट के आकड़े देखिए तो एक अलग कहानी नजर आती है।
फर्स्ट क्लास में 134 मैचों में पुजारा का बल्लेबाजी औसत 57.23 का है। 2013 में तो फर्स्ट क्लास में उन्होंने 2000 से ज्यादा रन बटोरे। अगर चेतेश्वर पर जरूरत से ज्यादा धीमा होकर खेलने का आरोप लगता रहा है तो बहुत हद तक ये गलत भी नहीं है क्योंकि अगर देखा जाए इंटरनेशनल क्रिकेट में पुजारा का यही बल्लेबाजी औसत 50 से नीचे आ जाता है।
जाहिर है, रास्ता लंबा है और चुनौती द्रविड के दौर से कहीं ज्यादा। देखना दिलचस्प होगा कि चेतेश्वर अपने इस सफर में कितनी दूर तक जाते हैं।
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