आज का दिन यानी 23 दिसंबर का दिन महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) के लिए बहुत खास है. यह वही दिन है, जब एमएस धोनी (MS Dhoni) ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना डेब्यू किया था. यानी न सिर्फ महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni), बल्कि भारतीय क्रिकेट के लिए भी आज का दिन अपने आप में खास है. यही वह दिन था, जब भारतीय क्रिकेट को एक नया सितारा मिला, जो अब तक करीब 15 साल (15 years of Mahendra Singh Dhoni) बाद भी भारतीय क्रिकेट से जुड़ा हुआ है. धोनी अपने पहले मैच में बिना खाता खोले ही जीरो पर आउट हो गए थे. तब शायद किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि माही एक दिन भारतीय क्रिकेट को इतनी बुलंदियों तक ले जाने वाले हैं. यह बात और है कि धोनी इस वक्त क्रिकेट से दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि वे जल्द ही भारतीय टीम में वापसी करेंगे और फिर से उसी तरह के शॉट खेलते हुए दिखाई देंगे. आज इस खास मौके पर
- महेंद्र सिंह धोनी को शुरुआती मैचों में निराशा हाथ लगी, लेकिन पाकिस्तानी टीम के भारतीय दौरे पर सीरीज का दूसरा मुकाबला विशाखापट्टम में खेला गया था. इस मुकाबले में कप्तान सौरव गांगुली ने इस बार धोनी को नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने के लिए भेज दिया. सचिन तेंदुलकर महज 2 रन बनाकर आउट हो गए थे दर्शकों में निराशा छा गई थी लेकिन धोनी ने इस मुकाबले में भारतीय क्रिकेट फैंस का दिल जीत लिया और महज 123 गेंदों पर 148 रनों के बेहतरीन पारी खेली इस पारी में धोनी ने 15 चौके और 4 छक्के लगाकर दर्शकों का खूब मनोरंजन किया.
- पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई इस पारी के बाद एमएस धोनी को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. इसके बाद साल 2007 में श्रीलंका के खिलाफ कप्तान राहुल द्रविड़ ने सचिन तेंदुलकर के महज 2 रन बनाकर आउट हो जाने पर एक बार फिर धोनी पर दांव लगाया. धोनी ने इस बार भी अपने कप्तान को निराश नहीं किया. धोनी ने इस मुकाबले में टीम इंडिया को शानदार जीत दिलवाई टीम इंडिया को 298 रनों के लक्ष्य मिला था जिसमें से 183 रन धोनी ने ही बना दिए थे. इस दौरान उन्होंने 15 चौके और 10 छक्के लगाए.
- साल 2007 के विश्वकप में भारत पहले राउंड से ही बाहर हो गया था, ऐसे में टीम इंडिया को साल के आखिरी में टी-20 विश्वकप भी खेलना था. खराब प्रदर्शन को देखते हुए टीम की कमान किसके हाथ में दी जाए ये बड़ा सवाल था एक बार फिर सचिन तेंदुलकर का नाम आगे आया, लेकिन इस बार तेंदुलकर ने यह जिम्मेदारी धोनी को सौंपने की बात कही, यह सुझाव कारगर साबित रहा और टीम इंडिया ने धोनी की कप्तानी में इतिहास रच दिया. भारत ने T20 इतिहास का पहला विश्व कप जीता था. रोमांचक मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को 5 रनों से शिकस्त दे कर इतिहास रच दिया था.
- एमएस धोनी की बात हो और साल 2011 के विश्वकप की चर्चा न हो तो बात अधूरी सी लगती है. दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों को टीम इंडिया का ये विजयी अभियान शायद ही कभी भूले. धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने 28 सालों के बाद विश्वकप जीता था. इस मुकाबले में धोनी ने 91 रनों की नाबाद पारी खेली थी, धोनी की यह पारी उनके क्रिकेट करियर की बेहतरीन पारियों में से एक थी. 2011 के विश्वकप में भारत का मुकाबला अपने पड़ोसी देश श्रीलंका से था. पहले बल्लेबाजी करते हुए मेहमान टीम ने निर्धारित 50 ओवरों में 6 विकेट के नुकसान पर 274 रन बनाए. जवाब में 275 रन का पीछा करने उतरी टीम इंडिया की बेहद खराब शुरुआत हुई महज एक रन के स्कोर पर वीरू खाता खोले बिना ही आउट हो गए. अभी स्कोरबोर्ड में 30 रन ही और जुड़े थे कि तेंदुलकर भी आउट हो गए. ऐसे में गंभीर और विराट कोहली ने संभलकर खेलते हुए स्कोर 114 तक पहुंचाया था कि विराट भी चलते बने. दर्शकों को उम्मीद थी की अब इस विश्वकप के हीरो रहे युवराज मैदान पर आएंगे लेकिन धोनी ने तो कुछ और ही ठान रखा था वो खुद मैदान पर आए और गंभीर के साथ 107 रनों की साझेदारी कर टीम इंडिया की जीत की कहानी लिख दी. धोनी ने 10 गेंदे फेंकी जाने से पहले ही टीम इंडिया को विश्व चैंपियन बना दिया था वो नाबाद 91 रन बनाकर वापस लौटे.
- महेंद्र सिंह धोनी ने T20 विश्व कप और 50 ओवर का विश्व कप ही नहीं, बल्कि चैंपियंस ट्रॉफी भी अपनी कप्तानी में जीता है. वे दुनिया के अकेले ऐसे कप्तान हैं, जिनकी कप्तानी में किसी देश ने आईसीसी की तीन ट्रॉफियां अपने नाम की हैं. चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भारत का मुकाबला इंग्लैंड से था. भारत ने इस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 129 रन बनाए थे और इंग्लैंड इतने ही ओवर में 124 रन बना सका और भारत ने यह मैच और चैंपियंस ट्रॉफी जीत ली. इस मैच में खुद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भले शून्य पर आउट हो गए हों, लेकिन बाकी टीम ने अच्छी बल्लेबाजी की और बाद में गेंदबाजों ने इंग्लैंड को जरूरी रन नहीं बनाने दिए.