क्या गहलोत को सियासी संकट से उबार पायेगा जातीय समीकरण, जानें किस जाति के कितने मंत्री
गहलोत सरकार के सियासी संकट का समाधान अब क्षेत्रीय-जातीय संतुलन साधने के रूप में भी सामने आ रहा है.
highlights
- राजस्थान की राजनीति में जाट, गूजर, ब्राह्मण और राजपूत समुदाय की प्रभावशाली भूमिका
- कांग्रेस ने जाट, ब्राह्मण और दलित जैसे समीकरणों को अपने पक्ष में करने की चाल चली है
- इस पूरी कवायद में अभी भी क्षेत्रीय असंतुलन को दूर नहीं किया जा सका है
नई दिल्ली:
राजस्थान में कैबिनेट का विस्तार गहलोत सरकार के सियासी संकट को खत्म करने की कवायद मानी जा रही है. लेकिन कांग्रेस इस बदलाव में एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश में है. मंत्रिमंडल में जिन चेहरों को शामिल किया गया है, उसके माध्यम से कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि गहलोत सरकार राजस्थान के हर क्षेत्र और जाति का प्रतिनिधित्व करती है. राजस्थान के सियासी संकट का समाधान अब क्षेत्रीय-जातीय संतुलन को साधने के रूप में भी सामने आ रहा है. नए बनें मंत्रियों के माध्यम से कांग्रेस जाट, ब्राह्मण और दलित जैसे जातियों को अपने पक्ष में करने की चाल चली है.
राजस्थान में जाट, गूजर, ब्राह्मण और राजपूत समुदाय राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली भूमिका निभाता है. सचिन पायलट के रूप में कांग्रेस के पास गूजर नेता है. राजस्थान में राजपूत अभी की परिस्थितियों में भाजपा के साथ है. ऐसे में कांग्रेस जाटों और दलितों को अपने पक्ष में करके भाजपा के समक्ष चुनौती पेश करना चाहती है. इसीलिए मंत्रिमंडल के इस फेरबदल में गहलोत-पायलट गुटों के साथ ही जातीय और क्षेत्रीय संतुलन को भी वरीयता दी गयी है.
क्षेत्र और जाति की बात की जाये तो अशोक गहलोत कैबिनेट में बाड़मेर से हेमाराम चौधरी को लिया गया. हरीश चौधरी के इस्तीफे के बाद हेमाराम चौधरी का नाम सामने आया. इसके पहले हेमाराम ने विधायक पद से इस्तीफा देकर मंत्री बनने का दबाव बनाया था.बाद में बड़ी मुश्किल से भावुक हेमाराम को मनाया गया.
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अभी तक भीलवाड़ा जिले से गहलोत सरकार में कोई मंत्री नहीं था. मेरवाड़ा-मेवाड़ की धरती से लिया रामलाल जाट को मंत्रिमंडल में शामिल करके इस कमी को पूरा किया गया. पिछली गहलोत सरकार में रामलाल जाट राज्यमंत्री थे लेकिन किन्हीं अनचाहे कारणों से उन्हें हटना पड़ा था.
भरतपुर के पूर्व महाराजा रहे विश्वेंद्र सिंह का पूरे भरतपुर संभाग में खासा प्रभाव है. भरत की सीमा से सटे यूपी के जिलों मथुरा, आगरा आदि में भी उनका प्रभाव है. लिहाजा उनको कैबिनेट में शामिल करके कांग्रेस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जाटों को अपने पक्ष में करने का दांव चला है.
शेखावाटी से बृजेंद्र सिंह ओला को लिया गया है. बृजेंद्र सिंह ओला कद्दावर किसान नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शीशराम ओला के पुत्र है. गहलोत सरकार में पहले से ही लालचंद कटारिया कैबिनेट मंत्री के पद पर हैं. इस तरह से अब गहलोत सरकार में जाट समाज के मंत्रियों की संख्या पांच हो गयी है.
CM गहलोत ने जाट के साथ ही ब्राह्मण कार्ड भी खेला है. महेश जोशी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. पहले वह मुख्य सचेतक पद पर थे. विधानसभा स्पीकर के पद पर डॉ. सीपी जोशी आसीन है. कैबिनेट मंत्री के पद पर डॉ. बीडी कल्ला पहले से ही है. अशोक गहलोत सरकार में अब भी तीन ब्राह्मण मंत्री ही हैं.
जाट, ब्राह्मण के अलावा गहलोत मंत्रिमण्डल में दलित समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व देने को कोशिश की गयी है. दलित समुदाय से चार नए कैबिनेट मंत्री बनाए गये हैं. खाजूवाला विधायक गोविन्द मेघवाल, टीकाराम जूली, भजनलाल और ममता भूपेश को भी प्रमोशन मिला है.कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक दलितों को साधकर गहलोत ने बाकी राज्यों को भी संदेश दिया है.
लेकिन इस पूरी कवायद में अभी भी क्षेत्रीय असंतुलन को दूर नहीं किया जा सका है. राज्य के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, प्रतापगढ़, उदयपुर, धौलपुर, सीकर, टोंक, डूंगरपुर, सवाईमाधोपुर समेत करीब 9 जिले के किसी भी विधायक को मंत्री पद नहीं मिला है. सूत्रों का कहना है कि उक्त जिलों से निर्वाचित विधायकों को संसदीय सचिव बनाया जा सकता है.
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