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लाल सागर के तिरान और सनाफिर द्वीप को क्यों चाहता है सउदी अरब

शांति सैनिकों को हटाने का निर्णय उनके स्थान और अशांत इतिहास से उत्पन्न मुश्किल स्थिति को हल करने में मदद कर सकता है और इजरायल और सऊदी अरब के बीच विश्वास का निर्माण कर सकता है.

Updated on: 18 Jul 2022, 07:20 PM

highlights

  • सऊदी अरब ने द्वीपों पर पहला दावा 1957 में किया गया था
  • मिस्र ने 2016 में लाल सागर के द्वीपों को सऊदी अरब को सौंप दिया 
  • सऊदी अरब पर्यटन के लिए द्वीपों का विकास करना चाहता है

 

नई दिल्ली:

इस साल के अंत तक एक बहुराष्ट्रीय शांति सेना रणनीतिक तौर पर अहम लाल सागर द्वीप छोड़ देगी. अमेरिका ने ऐलान किया है कि इस साल के अंत में लाल सागर के तिरान द्वीप से अमेरिकी सैनिक वापस चले जाएंगे.अमेरिका ने शांति दल के तौर पर अपने सैनिक यहां पर तैनात किए हैं.माना जा रहा है कि इससे आने वाले दिनों में इजरायल और खाड़ी के इस अहम देश के बीच आपसी संपर्क के मौके बढ़ सकेंगे.अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है, 'कई माह की शांत और लगातार कूटनीति का शुक्रिया कि हम एक समझौते पर पहुंच गए हैं जिसमें तिरान के लाल सागर द्वीप पर अंतरराष्‍ट्रीय शांति सैनिकों को रवाना किया जाएगा.इस इलाके को एक ऐसे इलाके में तब्‍दील किया जाएगा जो शांतिपूर्ण पर्यटन और आर्थिक विकास का केंद्र होगा.'

मिस्र ने 2016 में लाल सागर के द्वीपों तिरान और सनाफिर को सऊदी अरब को सौंप दिया था, जो निर्जन हैं लेकिन महत्वपूर्ण रणनीतिक मूल्य के हैं. लेकिन उनकी संप्रभुता को स्थानांतरित करने से पहले उनकी क्षेत्रीय स्थिति को इज़राइल की तरफ से पहचाना जाना है और इसके बाद ही इनका हक स्‍थानांतरित किया जा सकेगा. यहां से शांतिदलों को हटाने का फैसला इसलिए लिया गया है ताकि यहां की स्थिति को सुलझाया जा सके. ये जगह बहुत ही उलझी हुई है.

शांति सैनिकों को हटाने का निर्णय उनके स्थान और अशांत इतिहास से उत्पन्न मुश्किल स्थिति को हल करने में मदद कर सकता है और इजरायल और सऊदी अरब के बीच विश्वास का निर्माण कर सकता है-दो अमेरिकी सहयोगी जो अब धीरे-धीरे कदम उठा रहे हैं कि वाशिंगटन को उम्मीद है कि एक दिन पूर्ण राजनयिक संबंध बन सकते हैं.

जिन जगहों पर ये द्वीप हैं उनका इतिहास बहुत ही पेचीदा रहा है. जब यहां से शांति दल रवाना हो जाएंगे तो इजरायल और सऊदी अरब के बीच आपसी भरोसे का निर्माण हो सकेगा. इजरायल और सऊदी अरब दोनों ही अमेरिका के लिए अहम साथी हैं. दोनों ही देश अब ऐसे कदम उठा रहे हैं जिसके बाद इनके बीच पूर्ण कूटनीतिक संबंधों की बहाली के आसार बने हैं. 61 स्‍क्‍वॉयर किलोमीटर तक फैला तिरान एक एयरपोर्ट का मेजबान है जो सेनाओं के प्रयोग के लिए है.

द्वीपों पर क्षेत्रीय दावे का मालिक कौन है?

द्वीप 1950 से मिस्र की संप्रभुता के अधीन हैं. मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर ने नहर का राष्ट्रीयकरण करने के बाद 1956 के स्वेज संकट के दौरान इजरायली सैनिकों ने द्वीपों पर आक्रमण किया, जो यूरोप और एशिया के बीच व्यापार के लिए महत्वपूर्ण था.

मिस्र ने लगभग एक दशक के लिए कुछ समय के लिए नियंत्रण हासिल कर लिया, लेकिन द्वीपों - सिनाई प्रायद्वीप के साथ - 1967 के युद्ध के बाद फिर से इज़राइल द्वारा कब्जा कर लिया गया. 1978 की कैंप डेविड शांति संधि के तहत, इज़राइल ने सिनाई, तिरान और सनाफिर का नियंत्रण मिस्र को वापस कर दिया. 2016 में, मिस्र ने अपने रिसॉर्ट शहर शर्म अल-शेख के पूर्व में स्थित द्वीपों को सऊदी अरब को सौंप दिया.

मिस्र ने द्वीपों का नियंत्रण सऊदी अरब को क्यों सौंप दिया?

राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी द्वारा रियाद को क्षेत्रीय संप्रभुता सौंपने के विवादास्पद अप्रैल 2016 के फैसले ने मिस्र में राष्ट्रवादी विरोधों को जन्म दिया, जिसे जल्दी से दबा दिया गया. आलोचकों ने अल-सीसी पर सऊदी सहायता और निवेश के बदले में द्वीपों को सौंपने का आरोप लगाया. सरकार ने तर्क दिया कि द्वीप मूल रूप से सऊदी अरब के थे लेकिन 1950 के दशक में मिस्र को पट्टे पर दिए गए थे.

सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय द्वारा हैंडओवर के पक्ष में फैसला सुनाए जाने से पहले मिस्र की अदालतों ने विरोधाभासी फैसलों की एक श्रृंखला सौंपी. गौरतलब है कि 1990 में मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने स्वेच्छा से दोनों द्वीपों का नियंत्रण सऊदी अरब को छोड़ दिया था. 2010 में, रियाद को अपनी संप्रभुता का दावा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अपनी समुद्री आधार रेखा पोस्ट करने में दो दशक लग गए, जिस पर मिस्र ने सहमति व्यक्त की.

दोनों द्वीपों का सामरिक महत्व क्या है?

तिरान लाल सागर के रणनीतिक खंड में समुद्री मार्ग को नियंत्रित करता है, जिसका अर्थ है कि यह इलियट के लिए सभी शिपिंग को नियंत्रित करता है, जो कि लाल सागर तक इज़राइल की एकमात्र पहुंच है. सऊदी अरब का कहना है कि वह पर्यटन के लिए द्वीपों का विकास करना चाहता है.

सऊदी अरब ने पहली बार द्वीपों पर दावा कब किया था?

सऊदी अरब का द्वीपों पर पहला दावा 1957 में किंग सऊद बिन अब्दुल अज़ीज़ द्वारा किया गया था, और इसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त था. उस समय रियाद में अमेरिकी राजदूत के अनुरोध पर, सऊदी अरब ने 1968 में एक बयान जारी कर द्वीपों पर फिर से दावा किया और मुक्त समुद्री मार्ग को उनके हाथों में पड़ने की प्रतिज्ञा की.

द्वीपों पर मानव की क्या उपस्थिति है?

कैंप डेविड समझौते के बाद सिनाई के विसैन्यीकरण के हिस्से के रूप में, काहिरा को द्वीपों पर सैनिकों को तैनात करने की अनुमति नहीं थी, जहां केवल शांतिरक्षक तथाकथित बहुराष्ट्रीय बल और पर्यवेक्षकों के हिस्से के रूप में आधारित थे.

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तिरान-जो शांति सैनिकों के लिए एक छोटे से हवाई अड्डे की मेजबानी करता है-लगभग 61 वर्ग किलोमीटर (24 वर्ग मील) का है, जबकि पूर्व में सनाफिर का आकार केवल आधा है. द्वीपों के पानी को कभी-कभी गोताखोरों द्वारा उनके प्रवाल भित्तियों के लिए देखा जाता है.