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कोरोना की बूस्टर डोज को लेकर WHO का बयान, ये एक बड़ा घोटाला

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमीर देशों द्वारा दी जा रही बूस्टर डोज को लेकर उठाए सवाल, कहा- कई लोग अभी भी पहली डोज का इंतजार कर रहे.

Updated on: 14 Nov 2021, 01:10 PM

highlights

  • संगठन प्रमुख का कहना है कि यह बिल्कुल तर्कहीन है
  • हाई रिस्क में आने वाले समूह अभी भी पहली डोज के मिलने का इंतजार कर रहे

नई दिल्ली:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)  ने कोरोना की बूस्टर डोज को लेकर बड़ा बयान दिया है. भारत सहित कई देशों में कोरोना वैक्सीन (Coronavaccine) की दो डोज लगने के बाद बूस्टर डोज लगाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. संगठन का कहना है कि यह एक घोटाला है, जिसे बंद करना चाहिए. इस साल अगस्त में बूस्टर को लेकर संगठन के प्रमुख टेड्रोस अदनोम घेब्रेयियस ( tedros adhanom ghebreyesus)  ने वैश्विक मोनोटोरियम बुलाने की कोशिश की थी. मगर यह बैठक इस साल के अंत तक टल गई. इस दौरान जर्मनी, इस्राइल, कनाडा और अमरीका ने बिना किसी चर्चा के इन बूस्टर डोज को देना शुरू कर दिया.

संगठन प्रमुख का कहना है कि यह बिल्कुल तर्कहीन है कि स्वस्थ वयस्कों और वैक्सिनेटड बच्चों को ये बूस्टर डोज दी जाए, जबकि बुजुर्ग, स्वास्थ्य कर्मी और हाई रिस्क में आने वाले समूह अभी भी पहली डोज के मिलने का इंतजार कर रहे हैं. टेड्रोस ने डोज की जमाखोरी की बात को खारिज किया.

गरीब देशों को अधिक खुराक मिलनी चाहिए

समृद्ध देशों में टीकाकरण तेजी हो रहा है. डब्ल्यूएचओ द्वारा बार-बार रोक के बावजूद यहां जानबूझकर अतिरिक्त बूस्टर डोज दी जा रही है. जबकि गरीब देशों को अधिक खुराक मिलनी चाहिए. टेड्रोस का कहना है कि कई गरीब देशों में प्राथमिक खुराक भी नहीं दी गई है, वहीं  वैश्विक स्तर पर छह गुना अधिक बूस्टर दिए जा रहे हैं. यह एक ऐसा घोटाला है जिसे अब रोकना चाहिए. 

डब्ल्यूएचओ के आपात निदेशक माइकल रयान ने कहा कि अमीर देशों के भीतर अधिक लक्षित प्रयासों की भी आवश्यकता है, जिनके पास पर्याप्त खुराक तक पहुंच है. मगर यहां पर कई लोग डोज लेने से इनकार करते रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि उन देशों में भी जहां टीकाकरण की कुल संख्या अधिक है,स्वास्थ्य प्रणाली जल्दी दबाव में आ सकती है. यदि कम आबादी के अहम हिस्से बिना टीकाकरण के रहे। उन्होंने हाल ही में एक ब्रिटिश अध्ययन की ओर इशारा किया जिसमें दिखाया गया है कि एक गैर-टीकाकरण वाले व्यक्ति को इस महामारी में एक टीकाकृत व्यक्ति की तुलना में मरने का 32 गुना अधिक जोखिम होता है.