शास्त्री जी के आह्वान पर जब समूचे राष्ट्र ने रखना शुरू किया था 'उपवास'
शास्त्री जी उनकी पत्नी और बच्चों ने पूरे दिन अन्न नहीं ग्रहण किया. इससे शास्त्री जी को विश्वास हो गया कि यदि कोई व्यक्ति को एक दिन अन्न न मिले तो भी वह व्यक्ति भूख बर्दाश्त कर सकता है.
नई दिल्ली :
आज देश के द्वितीय प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री लाल बहादुर शास्त्री जी जन्मतिथि है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 1964 में लाल बहादुर शास्त्री जी देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने. उनके कार्यकाल में देश मे अनाज का संकट आन पड़ा. अमेरिका ने उस समय शर्तो के साथ अनाज की आपूर्ति करने की बात कही. शास्त्री जी का मानना था कि यदि उन्हें कृषि प्रधान देश में अमेरिका से अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान चूर-चूर हो जायेगा. इस लिए उन्होंने अपने परिवार को एक दिन का उपवास रखने को कहा, शास्त्री जी उनकी पत्नी और बच्चों ने पूरे दिन अन्न नहीं ग्रहण किया. इससे शास्त्री जी को विश्वास हो गया कि यदि कोई व्यक्ति को एक दिन अन्न न मिले तो भी वह व्यक्ति भूख बर्दाश्त कर सकता है. परिवार पर इस प्रयोग के बाद शास्त्री जी ने पूरे देश से इसका आह्वान किया.
देश का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए एक दिन का उपवास जरूरी
उन्होंने कहा कि ''हमें भारत का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए देश के पास उपलब्ध अनाज से ही काम चलाना होगा. हम किसी भी देश के आगे हाथ नहीं फैला सकते. यदि हमने किसी देश द्वारा अनाज देने की पेशकश स्वीकार की तो यह देश के स्वाभिमान पर गहरी चोट होगी. इसलिए देशवासियों को सप्ताह में एक वक्त का उपवास करना चाहिए. इससे देश इतना अनाज बचा लेगा कि अगली फसल आने तक देश में अनाज की उपलब्धता बनी रहेगी.
शास्त्री जी के शब्दों का मान देशवासियों ने रखा
उन्होंने आह्वान में कहा कि पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो. फिर क्या था शास्त्री जी के इस अपील पर पूरे देश ने उनका समर्थन किया. किसी ने भी उनका विरोध नहीं किया. शास्त्री जी के इस सुझाव से देश काफी हद तक इस समस्या से लड़ पाया.
उनके आह्वान का देशवासियों पर गहरा असर पड़ा. लोगों ने बिना किसी हिचक के अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर भरोसा किया और देश का स्वाभिमान बचाने के लिए सप्ताह में एक दिन एक वक्त का खाना छोड़ दिया.
अगले फसल आने तक अनाज की नहीं हुई कमी
शहरों से लेकर गांवों-कस्बों तक में महिलाएं, बच्चे, पुरुष, बुजुर्ग सब भूखे रहते और देश के लिए इस 'अनाज-यज्ञ" में अपने हिस्से की आहुति देते. किसी ने कोई शिकायत नहीं की, किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया. यहां तक कि जिन लोगों के घर पर्याप्त अनाज था, वे भी उपवास करते और देश के साथ भूखे रहते. आखिरकार देश अगली फसल आने तक स्वाभिमान से जिया और किसी अन्य देश से अनाज लेने की नौबत नहीं आई.
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