logo-image

हवाई जहाज का ब्लैक बॉक्स क्या होता है, हादसे के बाद जांच में कैसे निभाता है अहम भूमिका

जब भी कोई विमान हादसा (Plane Crash) होता है जो आपके जेहन में एक बात आती होगी कि जांच एजेंसियां उसके ब्लैक बॉक्स (Black Box) को ढूंढने की कोशिश में क्यों लगी रहती है. आखिर उसमें ऐसा क्या होता है जो दुर्घटना के हर राज को खोल देती है.

Updated on: 08 Aug 2020, 02:26 PM

नई दिल्ली:

जब भी कोई विमान हादसा (Plane Crash) होता है जो आपके जेहन में एक बात आती होगी कि जांच एजेंसियां उसके ब्लैक बॉक्स (Black Box) को ढूंढने की कोशिश में क्यों लगी रहती है. आखिर उसमें ऐसा क्या होता है जो दुर्घटना के हर राज को खोल देती है. दरअसल दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए ब्लैक बॉक्स को हवाई जहाज में लगाया जाता है. हवाई जहाज का ब्लैक बॉक्स या फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर, विमान में उड़ान के दौरान विमान से जुडी सभी तरह की गतिविधियों जैसे विमान की दिशा, ऊंचाई (altitude), ईंधन, गति (speed), हलचल (turbulence), केबिन का तापमान इत्यादि सहित 88 प्रकार के आंकड़ों के बारे में 25 घंटों से अधिक की रिकार्डेड जानकारी एकत्रित रखता है.
 
क्या होता है ब्लैक बॉक्स?
‘ब्लैक बॉक्स' हर किसी प्लेन का सबसे जरूरी हिस्सा होता है. ब्लैक बॉक्स सभी प्लेन में रहता है चाहें वह पैसेंजर प्लेन हो, कार्गो या फाइटर. यह वायुयान में उड़ान के दौरान विमान से जुडी सभी तरह की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने वाला उपकरण होता है. इसे या फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर भी कहा जाता है. आम तौर पर इस बॉक्स को सुरक्षा की दृष्टि से विमान के पिछले हिस्से में रखा जाता है. ब्लैक बॉक्स बहुत ही मजबूत मानी जाने वाली धातु टाइटेनियम का बना होता है और टाइटेनियम के ही बने डिब्बे में बंद होता है ताकि ऊंचाई से जमीन पर गिरने या समुद्री पानी में गिरने की स्थिति में भी इसको कम से कम नुकसान हो.



‘ब्लैक बॉक्स’ का इतिहास
ब्लैक बॉक्स का इतिहास 50 साल से भी ज्यादा पुराना है. दरअसल 50 के दशक में जब विमान हादसों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी तो 1953-54 के करीब एक्सपर्ट्स ने विमान में एक ऐसे उपकरण को लगाने की बात की जो विमान हादसे के कारणों की ठीक से जानकारी दे सके ताकि भविष्य में होने वाले हादसों से बचा जा सके. इसी को देखते हुए विमान के लिए ब्लैक बॉक्स का निर्माण किया गया. शुरुआत में इसके लाल रंग के कारण ‘रेड एग’ के नाम से पुकारा जाता था. शुरूआती दिनों में बॉक्स की भीतरी दीवार को काला रखा जाता था, शायद इसी कारण इसका नाम ब्लैक बॉक्स पड़ा.

कैसे करता है काम

दरअसल ‘ब्लैक बॉक्स’ में दो अलग-अलग तरह के बॉक्स होते हैं

1. फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर:  इसमें विमान की दिशा, ऊँचाई (altitude) , ईंधन, गति (speed), हलचल (turbulence), केबिन का तापमान इत्यादि सहित 88 प्रकार के आंकड़ों के बारे में 25 घंटों से अधिक की रिकार्डेड जानकारी एकत्रित रखता है. यह बॉक्स 11000°C के तापमान को एक घंटे तक सहन कर सकता है जबकि 260°C के तापमान को 10 घंटे तक सहन करने की क्षमता रखता है. इस दोनों बक्सों का रंग काला नही बल्कि लाल या गुलाबी होता है जिससे कि इसको खोजने में आसानी हो सके.

2. कॉकपिट वोइस रिकॉर्डर: यह बॉक्स विमान में अंतिम 2 घंटों के दौरान विमान की आवाज को रिकॉर्ड करता है. यह इंजन की आवाज, आपातकालीन अलार्म की आवाज , केबिन की आवाज और कॉकपिट की आवाज को रिकॉर्ड करता है; ताकि यह पता चल सके कि हादसे के पहले विमान का माहौल किस तरह का था.



कैसे करता है काम
ब्लैक बॉक्स बिना बिजली के भी 30 दिन तक काम करता रहता है. जब यह बॉक्स किसी जगह पर गिरता है तो प्रत्येक सेकेण्ड एक बीप की आवाज/तरंग लगातार 30 दिनों तक निकालता रहता है. इस आवाज की उपस्थिति को खोजी दल द्वारा 2 से 3 किमी. की दूरी से ही पहचान लिया जाता है. इसके एक और मजेदार बात यह है कि यह 14000 फीट गहरे समुद्री पानी के अन्दर से भी संकेतक भेजता रहता है.