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UP असम की दो बच्चा नीति, क्या कहते हैं प्रावधान... जानें यहां

दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी मौजूद है.

Updated on: 11 Jul 2021, 06:43 AM

highlights

  • कई राज्यों में दो से अधिक बच्चों पर नहीं लड़ सकते स्थानीय चुनाव
  • असम और उत्तर प्रदेश दो बच्चा नीति पर कानून लाने वाले नए राज्य
  • यूपी के सीएम योगी आज पेश करने जा रहे हैं जनसंख्या नीति 2021

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) रविवार को जनसंख्या नीति 2021-30 जारी करेंगे. इसकी घोषणा चंद दिनों पहले होने से दो बच्चों की नीति पर राष्ट्रीय बहस चल रही है. एक या दो बच्चों वाले परिवारों की सुविधाओं समेत दो से अधिक बच्चों वालों के लिए सुविधाओं का दायरा सीमित करने को लेकर भारतीय जनता पार्टी विरोधी दल इसे एक खास वर्ग के खिलाफ बता रहे हैं. हालांकि यह गौर करने वाली बात है कि दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी मौजूद है. असम भी इसी दिशा में अपने कदम बढ़ा चुका है, तो यूपी में विधि आयोग ने इसका खाका तैयार कर लिया है. सारा जोर परिवार नियोजन (Family Planning) पर है ताकि गरीबी और अशिक्षा से विकास के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आए.

दो बच्चों की नीति
ऐसे में यह जानना कम रोचक नहीं रहेगा कि दो बच्चे वाली नीति है क्या. वास्तव में एक ऐसा कानून जो लोगों को दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी सब्सिडी और अन्य सरकारी लाभों का लाभ उठाने से रोकता है, उसे दो-बच्चों की नीति के रूप में जाना जाता है. भारत में राष्ट्रीय बाल नीति नहीं है, लेकिन भाजपा शासित दो राज्य उत्तर प्रदेश और असम इस दिशा में आगे बढ़े हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा दो बच्चों की नीति के प्रबल समर्थक रहे हैं. सरकार 12 जुलाई से शुरू हो रहे राज्य के बजट सत्र में इस नीति के लिए नया कानून ला सकती है. असम ने 2017 में राज्य में जनसंख्या और महिला अधिकारिता नीति को लागू किया था, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को दो बच्चों के मानदंड का सख्ती से पालन करने के लिए कहा गया था. इस जनसंख्या नियम के तहत नए कानून में कर्ज माफी और अन्य सरकारी योजनाओं को लाया सकता है, लेकिन सरमा ने कहा है कि चाय बागान के मजदूर और एससी/एसटी समुदाय को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा. 

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अन्य राज्यों में भी हैं इस तरह के कानून
अब उत्तर प्रदेश का विधि आयोग एक ऐसा ही प्रस्ताव लेकर आया है, जिसके तहत दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने से रोक दिया जाएगा. प्रस्ताव में वे सभी नियम हैं जो असम सरकार के पास पहले से मौजूद है - जैसे, दो से अधिक बच्चों वाला व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है या स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ सकता है.  उत्तर प्रदेश और असम राज्य इस दिशा में नए कदम उठा रहे हैं, वहीं कई अन्य राज्य हैं जिनमें स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने आदि जैसी विशिष्ट चीजों के लिए यह नियम पहले से लागू है. राजस्थान में यदि किसी व्यक्ति के दो से अधिक बच्चे हैं, तो उसे स्थानीय चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. इसी तरह से दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय चुनाव लड़ने से रोकने का एक समान प्रावधान गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मौजूद है.

दो से कम बच्चे तो अधिक सुविधाएं
यूपी में विधि आयोग द्वारा तैयार ड्राफ्ट के मुताबिक परिवार दो ही बच्चों तक सीमित करने वाले जो अभिभावक सरकारी नौकरी में हैं और स्वैच्छिक नसबंदी करवाते हैं तो उन्हें दो अतिरिक्त इंक्रीमेंट, प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट, पीएफ में एंप्लायर कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं दी जाएंगी. दो बच्चों वाले ऐसे दंपती जो सरकारी नौकरी में नहीं हैं, उन्हें भी पानी, बिजली, हाउस टैक्स, होम लोन में छूट व अन्य सुविधाएं देने का प्रस्ताव है. वहीं, एक संतान पर स्वैच्छिक नसंबदी करवाने वाले अभिभावकों की संतान को 20 साल तक मुफ्त इलाज, शिक्षा, बीमा, शिक्षण संस्थाओं व सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी. सरकारी नौकरी वाले दंपती को चार अतिरिक्त इंक्रीमेंट देने का सुझाव है. अगर दंपती गरीबी रेखा के नीचे हैं और एक संतान के बाद ही स्वैच्छिक नसबंदी करवाते हैं, तो उनके बेटे के लिए उसे 80 हजार और बेटी के लिए 1 लाख रुपये एकमुश्त दिए जाने की भी सिफारिश है.

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बहुविवाह पर खास प्रावधान
आयोग ने ड्राफ्ट में धार्मिक या पर्सनल लॉ के तहत एक से अधिक शादियां करने वाले दंपतियों के लिए खास प्रावधान किए हैं. अगर कोई व्यक्ति एक से अधिक शादियां करता है और सभी पत्नियों से मिलाकर उसके दो से अधिक बच्चे हैं, तो वह भी सुविधाओं से वंचित होगा. हालांकि हर पत्नी सुविधाओं का लाभ ले सकेगी, वहीं अगर महिला एक से अधिक विवाह करती है और अलग-अलग पतियों से मिलाकर दो से अधिक बच्चे होने पर उसे भी सुविधाएं नहीं मिलेंगी. ये सभी प्रस्ताव जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करके नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से तैयार किया गया है. आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित पाठ्यक्रम स्कूलों में पढ़ाए जाने का सुझाव भी दिया है.