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इसलिए असफल रहा ISRO का EOS-03 लांच, जानें तकनीकी पहलू

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Updated on: 12 Aug 2021, 12:04 PM

highlights

  • तरल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन होता है ईंधन बतौर
  • जीरो से सैकड़ों डिग्री सेल्सियस नीचे रहता है तापमान
  • यही है सफलता-असफलता की महत्वपूर्ण कड़ी

नई दिल्ली:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) ने गुरुवार सुबह एक बेहद महत्वपूर्ण अर्थ ऑब्जर्वेशन सेटेलाइट (EOS-03) खो दिया, जब उसे लेकर रवाना हुआ जीएसएलवी (GSLV) रॉकेट उड़ान भरने के महज पांच मिनट भीतर ही तकनीकी खराबी का शिकार हो गया. इस कारण उसने लाइव आंकड़े भेजने बंद कर दिए. इस तरह जीएसएलवी रॉकेट द्वारा इस अर्थ ऑब्जर्वेशन सेटेलाइट को भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने का अभियान पूरा नहीं हो सका. वैज्ञानिकों की मानें तो जीएसएलवी-एफ10 के क्रायोजेनिक इंजन के फेल होने का असर भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशन पर पड़ सकता है. अभियान के असफल होने के बाद इसरो की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'लांच का पहला और दूसरा चरण सामान्य रहा था. हालांकि तकनीकी खामी की वजह से क्रायोजेनिक इंजन का अगला प्रज्ज्वलन नहीं हो सका. इस कारण जिस उद्देश्य को लेकर प्रक्षेपण किया था, उसे हासिल नहीं किया जा सका.' 

तकनीकी चुनौतियों हैं बड़ी
हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो प्रक्षेपण के अगले चरण के लिए स्वदेसी तकनीक से निर्मित क्रायोजेनिक इंजन को इग्नाइट करना पड़ता है. यह प्रज्ज्वलन बेहद कम तापमान पर तरल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के ईंधन बतौर इस्तेमाल करने पर होता है. क्रायोजेनिक चरण अंतरिक्ष अभियान में काफी प्रभावी माना जाता है, जिसके तहत भारी पे-लोड ले जाने में सक्षम जीएसएलवी सरीखे रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने में मदद मिलती है. हालांकि इन्हीं खूबियों के कारण यह प्रक्रिया काफी जटिल भी मानी जाती है, क्योंकि इसमें परंपरागत तरल और ठोस प्रोपेलेंट्स को बेहद कम तापमान पर मेंटेन रखना होता है. यह तापमान जीरो से भी सैकड़ों डिग्री सेल्सियस नीचे का होता है. इस तापमान को बरकरार रखना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. इसके पहले भी इसरो को क्रायोजेनिक चरण में तकनीकी दिक्कतें आई हैं. यह अलग बात है इसके बावजूद इसरो अपने अंतरिक्ष अभियानों को पूरा करने में सफल रहा था.  

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जीएसएलवी का 14वां अभियान और चौथी नाकामी
जीएसएलवी रॉकेट के इस्तेमाल से किसी सेटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने का यह 14वां अभियान था और चौथी नाकामी. आज के अभियान में इस्तेमाल किया गया रॉकेट जीएसएलवी का मार्क-2 वर्जन था. इसका इस्तेमाल इसके पहले दिसंबर 2018 में कम्युनिकेशन सेटेलाइट जीएसएटी-7ए में किया गया था. इस रॉकेट से मिली आखिरी नाकामी 2010 में मिली थी. आज की असफलता इसलिए भी बड़ी हो जाती है, क्योंकि कई वजहों से इस अभियान में वैसे भी देरी हो चुकी थी. तय समय सीमा के मुताबिक इसे बीते साल मार्च के महीने में अंजाम दिया जाना था. पहली बार किसी तकनीकी खामी की वजह से अभियान टला, फिर कोरोना संक्रमण ने इसमें विलंब कर दिया.  

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चंद्रमा मिशन पर पड़ेगा असर
इसका असर भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशन पर पड़ेगा. भारत जीएसएलवी एमके-3 रॉकेट का उपयोग करने मानव अंतरिक्ष मिशन-गगनयान की योजना बना रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने से पहले अपने रॉकेट और मानव कैप्सूल की जांच के लिए दो मानव रहित मिशन भेजने की योजना बना रहा है, लेकिन गुरुवार को क्रायोजेनिक इंजन में समस्या के कारण जीएसएलवी-एफ10 विफल हो गया, जिसके बाद अब इसरो को ज्यादा सावधान रहना होगा.