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BJP ने सुशील मोदी के इसलिए कतरे 'पर', वह रहे 'तीर' छाप 'कमल'...

सूबे के राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान ने सुशील मोदी के सही समय पर 'पर' कतरे हैं. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि सुशील मोदी कई मौकों पर बीजेपी के बजाए जदयू की पैरवी करते दिखाई पड़े.

Updated on: 16 Nov 2020, 04:43 PM

नई दिल्ली:

भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की जोड़ी संभवतः एकमात्र उदाहरण है, जिसने एक 'बीमारू' और 'जंगलराज' का दर्जा पाए राज्य को विकास के पथ पर अग्रसर किया. यह अलग बात है कि भारतीय जनता पार्टी आलाकमान ने सूबे के राजनीतिक गलियारों में 'नीकु' व 'सुमो' उपनाम से मशहूर जोड़ी को तोड़ने का फैसला कर लिया. ऐसा पहली बार होगा कि 30 वर्षों से अधिक समय से बिहार में बीजेपी के बड़े चेहरे के रूप में स्थापित रहे सुशील मोदी राज्य सरकार में शामिल नहीं होंगे. गौरतलब है कि बिहार में एनडीए अगर सत्ता का हिस्सा रही है, तो उसके पीछे कहीं न कहीं सुशील मोदी के राजनीतिक कौशल की महती भूमिका रही है. इसके बावजूद सूबे के राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान ने सुशील मोदी के सही समय पर 'पर' कतरे हैं. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि सुशील मोदी कई मौकों पर बीजेपी के बजाए जदयू की पैरवी करते दिखाई पड़े.

जताया दर्द
हालांकि समय को भांपते हुए रविवार को ही एनडीए विधानमंडल दल की बैठक के बाद सुशील मोदी ने ट्वीट कर खुद इसके संकेत दिए थे कि वह डिप्टी सीएम पद से हट रहे हैं. उपमुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के पार्टी नेतृत्व के फैसले से वह थोड़े निराश भी दिखे. अपने ट्वीट में उन्होंने एक ओर आभार जताया तो दूसरी ओर यह भी कहा कि पद रहे या न रहे, कार्यकर्ता का पद कोई नहीं छीन सकता. जाहिर है सुशील मोदी का दर्द छलक रहा है, लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि भाजपा इस फैसले को बड़े फलक में देख रही है. दरअसल सुशील मोदी का यह ट्वीट उनकी पीड़ा का इजहार भी है और भाजपा में किसी नए नेता के उभार का संकेत भी. हालांकि सुशील मोदी को डिप्टी सीएम का पद नहीं देने पर राजनीतिक गलियारों में एक राग यह भी चल रहा है कि समय-समय पर बीजेपी के बजाए नीतीश 'तीर' लेने उन्हें भारी पड़ा.

नीतीश पीएम मैटेरियल
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी के अंदर से नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की मांग उठ रही थी. उधर जेडीयू ने 2012 से ही नीतीश कुमार का नाम एनडीए के पीएम कैंडिडेट के रूप में उभारना शुरू कर दिया था. बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी और जेडीयू की तरफ से नीतीश कुमार के लिए चल रही मुहिम के दौरान सुशील खुल्लम-खुल्ला नीतीश के खेमे में चले गए. उन्होंने पाला ही नहीं बदला, अपने स्टैंड पर टिके भी रहे. उधर, गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे बिहार बीजेपी के धाकड़ चेहरे नीतीश की मुहीम का जोरदार विरोध कर रहे थे. बीजेपी अपने नेता सुशील मोदी के व्यवहार से क्षुब्ध थी. आग में घी का काम किया 2012 में ही सुशील मोदी के एक इंटरव्यू ने जिसमें उन्होंने नीतीश को पीएम मैटेरियल बता दिया.

अर्जित शाश्वत कांड 
मार्च 2018 में भागलपुर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान भी सुशील कुमार मोदी की गतिविधियों से बीजेपी बहुत आहत हुई. इस हिंसा में सीधे-सीधे अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत का नाम जुड़ा. वह गिरफ्तार हुए और अदालत ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. नीतीश सरकार के इस एक्शन से बीजेपी में रोष था. सरकार बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की थी, लेकिन अर्जित पर एक्शन का फैसला अकेले जेडीयू ने लिया. पूरी बीजेपी इसके खिलाफ थी, लेकिन सुशील मोदी परेशान क्या उलझन में भी नहीं दिखे. स्वाभाविक है कि उन्होंने फिर से बीजेपी के खिलाफ नीतीश कुमार को तवज्जो दी.

​दंगे पर नीतीश के पक्ष 
2017 में बिहार में कई जगहों पर सांप्रदायिक दंगे हुए. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि उस साल बिहार दंगों के मामले में देश में अव्वल रहा था. आंकड़े बताते हैं कि 2017 में देशभर में कुल 58,729 दंगे हुए जिनमें अकेले 11,698 घटनाएं बिहार में दर्ज की गईं. बात अगर सांप्रदायिक दंगों की हो तो आंकड़ों के मुताबिक 2017 में देश में कुल 723 सांप्रदायिक दंगे हुए जिनमें 163 बिहार में हुए. बिहार इस मामले में देशभर में टॉप पर रहा. बड़ी बात यह है कि 2016 के मुकाबले 2017 में अन्य राज्यों में इस तरह की वारदातें कम हुई हैं. हालांकि, बिहार में इसका उल्टा हुआ और वहां वर्ष 2016 में 139 सांप्रदायिक दंगों की तुलना में वर्ष 2017 में 24 अधिक दंगे हो गए. इसी तरह मार्च-अप्रैल 2018 में भागलपुर, औरंगाबाद, समस्तीपुर, मुंगेर, शेखपुरा, नालंदा और नवादा में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं घटीं. विपक्ष नीतीश कुमार को निशाना बना रहा था, लेकिन सुशील मोदी वहां भी ढाल बनकर खड़े हो गए.

बीजेपी के सीएम की मांग 
बीजेपी नेता सुशील मोदी पर बड़ा आरोप यह है कि उन्होंने नीतीश कुमार के साथ अपना उपमुख्यमंत्री का बर्थ कन्फर्म करवा रखा है, इसलिए वह कभी राज्य में बीजेपी के पक्ष में यथास्थिति को बदलना ही नहीं चाहते थे. फिलहाल बीजेपी के बिहार अध्यक्ष संजय पासवान ने 2019 में कहा था कि बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनना चाहिए. उनके साथ ही कुछ और नेताओं ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बीजेपी कोटे से बनाए जाने की मांग की. सुशील मोदी यहां भी नीतीश के पक्ष में डट गए. उन्होंने ट्वीट किया, 'नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में अगले विधानसभा चुनाव के दौरान भी कैप्टन रहेंगे. जब कैप्टन चौका, छक्का जड़ते हुए विरोधियों को पारी दर पारी मात दे रहा हो तो बदलाव का सवाल ही कहां उठता है.' 

​अब निपट गए मोदी
बीजेपी इन्हीं सब कारणों से सुशील मोदी को निपटाने का मौका ढूंढ रही थी. और वह मौका मिल गया इस बार के चुनाव परिणाम में जब बीजेपी 74 सीटें लाकर एनडीए में 43 सीटें लाने वाले जेडीयू के बड़े भाई के तौर पर उभरी. नीतीश का कद कमजोर हुआ तो सुशील मोदी का नपना भी तय ही था. वो हो गया। दरअसल, उपमुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार की पहली पसंद सुशील मोदी ही होते थे. नीतीश जब तक ताकतवार रहे सुशील मोदी की कुर्सी बरकरार रही है. 15 सालों में पहली बार नीतीश कुमार एनडीए के अंदर कमजोर हुए हैं. नीतीश कुमार के कमजोर होते ही सुशील मोदी को बिहार की सत्ता से बेदखल कर दिया गया है. ऐसे में अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी है कि सुशील मोदी कहां एडजस्ट होते हैं!!!