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चीन से दोस्ती ने 'सोने की लंका' को ऐसे बनाया कंगाल, दूसरों के लिए है सबक

सोने की लंका इस वक्त भयंकर बदहाली का शिकार है. या यू कहे कि इस वक्त श्रीलंका (Sri Lanka) बर्बादी के कगार पर है. श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Reserve) में मात्र 6,000 करोड़ रुपए ही बचे हैं.

Updated on: 05 Apr 2022, 12:32 PM

highlights

  • कर्ज देकर चीन ने श्रीलंका को फंसाया
  • कर्ज नहीं देने पर पोर्ट पर किया कब्जा 
  • मुसीबत में भारत ने बढ़ाया मदद का हाथ

नई दिल्ली:

सोने की लंका इस वक्त भयंकर बदहाली का शिकार है. या यू कहे कि इस वक्त श्रीलंका (Sri Lanka) बर्बादी के कगार पर है. श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Reserve) में मात्र 6,000 करोड़ रुपए ही बचे हैं. इस छोटे से देश पर इस वर्ष फरवरी तक जीडीपी का 119 फीसदी यानी 12.55 बिलियन डॉलर का कर्ज था. इनमें से करीब 4 बिलियन उसे इसी साल चुकाना है. चीन ने मुसीबत के इस वक्त में श्रीलंका से मुंह फेर लिया है. वह कर्ज की शर्तों में कोई रियायत देने को तैयार नहीं है. इसके उलट, पिछले कुछ सालों में श्रीलंका ने जिस भारत से दूरियां बढ़ाई, उसी ने दोस्ती निभाते हुए मदद भेजी है. 

 चीन ने खींचा हाथ, भारत ने दिल खोलकर की मदद
आर्थिक बदहाली के शिकार श्रीलंका को चीन ने खूब कर्ज बांटा. अकेले 2021-22 में कोलंबो की चीन को 2 बिलियन डॉलर की  देनदारी थी. राष्‍ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने दिसंबर 2021 में चीन से मदद मांगी थी. हालांकि, बीजिंग ने मुंह फेर लिया. कोलंबो चाहता था कि कर्ज को री-स्‍ट्रक्‍चर किया जाए, ताकि उसे आर्थिक संकट से निपटने में थोड़ी मदद मिल सके. श्रीलंकाई नागरिक भी चीनी प्रोजेक्‍ट्स के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. ऐसे में श्रीलंका ने अपने पुराने दोस्त, भारत से मदद मांगी. भारत ने निराश नहीं किया. मुसीबत के इस वक्त में भारत ने अपने पड़ोसी श्रीलंका की मदद के लिए 40,000 टन डीजल और 40,000 टन चावल भेजा है. इससे पहले दिवालिया होने से बचाने के लिए भारत ने fuel के लिए श्रीलंका को 500 मिलियन डॉलर की creditline दी थी. इससे पहले भारत ने 1 बिलियन डॉलर की क्रेडिट line अलग से दी थी. कुल मिलाकर इस साल अभी तक भारत श्रीलंका को लगभग 2.4 बिलियन डॉलर की मदद कर चुका है.

ये हैं श्रीलंका की बर्बादी की मुख्य वजहें
श्रीलंका के वर्तमान संकट के पीछे टैक्स कटौती, पर्यटन इंडस्‍ट्री का धराशायी होना बड़ी वजह माना जा रहा है. नतीजा यह हुआ कि श्रीलंका का कर्ज प्रबंधन कार्यक्रम ध्वस्त हो गया. श्रीलंका पर फरवरी तक 12.55 बिलियन डॉलर का कर्ज था, जिनमें से करीब 4 बिलियन उसे इसी साल चुकता करना है. श्रीलंका के विदेशी कर्ज में इंटरनेशनल सॉवरेन बॉन्ड, एशियन डेवलपमेंट बैंक, चीन और जापान का बड़ा हिस्सा है. श्रीलंकाई आर्थिक संकट के पीछे एक बड़ी वजह चीन का पिछले दो दशकों में कहां किया गया निवेश है. चीन ने श्रीलंका को खूब कर्ज बांटा. 2021-22 में कोलंबो की चीन को देनदारी 2 बिलियन डॉलर थी. हंबनटोटा पोर्ट पहले ही चीन को 99 साल के लिए लीज पर दिया जा चुका है. ऐसे में श्रीलंका के इस संकट से चीनी कर्ज के मकड़जाल में फंसे देशों के लिए भी सोचने का वक्त आ गया है. 

चीन ने ऐसे फैला रखा है कर्ज का जाल
पिछले दो दशक में चीन ने अफ्रीका के लगभग हर देश में बड़ा इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर खड़ा किया है. 'बेल्‍ट एंड रोड इनिशिएटिव' के जरिए चीन ने ऐसे प्रोजेक्‍ट्स के लिए न सिर्फ अफ्रीकी, बल्कि एशिया व यूरोप के कुछ देशों को भी बड़े पैमाने पर कर्ज दिया. 2020 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अगला पर चीन का 25 बिलियन डॉलर कर्ज है. इथियोपिया पर 13.5 मिलियन डॉलर, जाम्बिया पर 7.4 मिलियन डॉलर, कांगो पर 7.3 मिलियन डॉलर का चीनी कर्ज है. वहीं, एशिया के गरीब और विकासशील देशों को भी चीन ने कर्ज दे रखा है. श्रीलंका पर अरबों डॉलर का कर्ज है, पाकिस्तान को भी चीन ने कर्ज के जाल में फंसा लिया है. मलेशिया में चीन ने 22 बिलियन लगाए हैं. दिसंबर 2019 में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्‍मद रशीद ने कहा था कि उनके देश पर चीन का 3.5 बिलियन डॉलर कर्ज है. यूरोप के कुछ विकासशील देशों को भी चीन ने कर्ज दे रखा है.

श्रीलंका से बढ़ने लगी है दूरी
श्रीलंका की आर्थिक बदहाली को लेकर कई लोग चीन को दोषी ठहराते आए हैं. अब खुद श्रीलंका में भी चीन के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं. श्रीलंका के प्रमुख सांसद डॉ विजय दास राजपक्षे ने चीन पर श्रीलंका में आर्थिक हमले, भ्रष्टाचार और देश को कर्ज-जाल में फंसाने का आरोप लगाया है. हॉन्गकॉन्ग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, डॉ राजपक्षे श्रीलंका के उन कुछ नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने चीनी कर्ज के जाल के खिलाफ बात की और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहयोग बढ़ाने और पारस्परिक विश्वास के पुनर्निर्माण को लेकर पत्र लिखने का साहस किया. डॉ विजय दास राजपक्षे श्रीलंका की सरकार में न्याय मंत्री और शिक्षा मंत्री रह चुके हैं. इससे पहले उन्होंने चेतावनी दी थी कि देश का अगला चुनाव, चाहे वो राष्ट्रपति का हो या प्रधानमंत्री का, सभी को जनमत संग्रह के साथ जोड़ा जाएगा ताकि लोगों से उन सभी समझौतों और अनुबंधों के निर्धारण या उन्हें रद्द करने के लिए जनादेश प्राप्त किया जा सके जो श्रीलंका के लिए हानिकारक या नुकसानदेह हैं. 

पड़ोसियों में बढ़ी भारत की स्वीकार्यता          
चीन की चाल को समझने के बाद श्रीलंका ने पिछले दिनों भारत सरकार को कई प्रोजेक्ट्स में भागीदार बनाया है. कई स्ट्रेटेजिक projects भारत को दिए हैं और ऐसा लग रहा है कि धीरे धीरे चीन का प्रभुत्व श्रीलंका से कम हो रहा है.  कुछ ऐसा ही माहौल मालदीव और नेपाल का भी है. दोनों ही देशों में पहले चीन के समर्थन से भारत विरोधी गतिविधियां चल रही थी. लेकिन, अब धीरे धीरे दोनों ही पड़ोसी देशों को चीन की चाल समझ आ गयी है. ये दोनों देश फिर से भारत की तरफ रुख कर रहे हैं. अभी हाल ही में नेपाल और भारत के प्रधानमंत्री ने झंडी दिखाकर 45 किलोमीटर लम्बी भारत नेपाल रेल लाइन का उद्घाटन किया. वहीं, मालदीव में भारत विरोधी प्रदर्शन करने को एक अपराध बना दिया गया है. वहीं, नेपाल ने भारत के साथ कई समझौते (agreement)किए है. जिसमें Rupay कार्ड को नेपाल में शुरू करना, UPI को वहां के banking system से जोड़ने जैसे कदम हैं. वहीं, भारत ने पिछले दिनों बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ मिलकर BBIN agreement किया है, जिससे इन चारों देशों में बेहतर connectivity हो सकेगी. इसकी मदद से  इन देशों के बीच व्यापार ( business) में आसानी होगी. अब उम्मीद जताई जा रही है कि बांग्लादेश भी जल्दी ही चीन के इरादों को समझेगा और उस से उचित दूरी बना लेगा. इसके अलावा अफगानिस्तान को अनाज और अन्य चीजें भेज कर भारत ने उसका  Strategic इस्तेमाल करने का इरादा साफ कर दिया है. उसकी मदद से Durand Line, CPEC और बलूचिस्तान पर लगातार pressure बनाया जाता रहेगा. इसके अलावा पूर्वी देशों, जैसे वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापान और ताइवान के साथ भारत Aggressive सम्बंध बना कर चीन की 'String Of Pearl' नीति को तोड़ने के लिए 'Necklace Of Diamond' की नीति पर चल रहा है. 

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कुल मिलाकर आप ये समझिए कि भारत ने जो पिछले 20 सालों में खोया था, अब वो वापस आ रहा है और अब  आगे के लिए रणनीति तैयार की जा रही है. आप पिछले कुछ हफ़्तों से भारतीय सरकार और विदेश मंत्रालय के रुख में आई aggressiveness को देखिए. इनके बयान, ट्वीट और interviews देखिए. पश्चिमी देशों में एकाएक भारत को लेकर अजीब सा हाहाकार मचा हुआ है. रूस-यूक्रेन की लड़ाई हो रही है, लेकिन दुनिया भारत के दरबार में हाजिरी लगा रही है, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसे देखकर यह सहज ही कहा जा सकता है कि अगले 5-7 साल में बहुत कुछ बदलने वाला है. शायद जो स्थिति हम 2035-40 तक पाना चाहते थे, वो महत्व 2025 तक ही मिल जाए. आशा है कि जल्द ही POK और LAC के मुद्दे सुलझेंगे. इसके साथ ही भारत दक्षिण एशिया की regional power के Tag को हटा कर भारत एक Global Power बनेगा. ऐसी संभावना है कि अगले 5 साल भारत में दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा Opportunities होंगी.