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राज्यसभा; विदा हुए 72 सदस्य, यूपी से कांग्रेस साफ-शून्य पर अकाली दल

राज्यसभा से विदा हुए सदस्यों में सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा, एके एंटनी, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, एमसी मैरीकॉम और स्वप्न दासगुप्ता शामिल हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, सुरेश प्रभु, एमजे अकबर, जयराम रमेश, विवेक तन्खा, वी. विजयसाई रेड्डी का कार्यकाल जून में समाप्त होगा.

Updated on: 01 Apr 2022, 08:12 AM

highlights

  • राज्यसभा से 72 सदस्यों की विदाई
  • बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी
  • यूपी से सफा हो गई कांग्रेस 

नई दिल्ली:

आज राज्यसभा से 72 सदस्यों की विदाई हो गई. इन सभी सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है. सभापति एम. वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर सदस्यों को विदाई दी. सदन के नेता पीयूष गोयल और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद रहे. सेवानिवृत्त होने वाले इन सदस्यों में सात मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं. सभापति नायडू ने घोषणा की थी कि गुरुवार को सदन में शून्यकाल और प्रश्नकाल नहीं होगा. विभिन्न दलों के नेता और सदस्यों को विदाई समारोह में बोलने का मौका दिया जाएगा.

राज्यसभा से विदा हुए सदस्यों में सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा, एके एंटनी, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, एमसी मैरीकॉम और स्वप्न दासगुप्ता शामिल हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, सुरेश प्रभु, एमजे अकबर, जयराम रमेश, विवेक तन्खा, वी. विजयसाई रेड्डी का कार्यकाल जून में समाप्त होगा. जुलाई में सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों में पीयूष गोयल, मुख्तार अब्बास नकवी, पी. चिदंबरम, अंबिका सोनी, कपिल सिब्बल, सतीश चंद्र मिश्रा, संजय राउत, प्रफुल्ल पटेल और केजे अल्फोंस शामिल हैं. इन्हीं में एक नाम कांग्रेस के जी-23 ग्रुप के नेता कपिल सिब्बल का है, उनका कार्यकाल पूरा होने के साथ ही यूपी से कांग्रेस का राज्यसभा प्रतिनिधित्व भी खत्म हो गया. वो यूपी से कांग्रेस के आखिरी और इकलौते बचे राज्यसभा सदस्य थे.  सभी सदस्यों ने विदाई से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, उप सभा पति हरिवंश और लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला के साथ तस्वीरें खिंचवाईं.

फिलहाल ये है राज्यसभा स्थिति

राज्यसभा में 31 मार्च के बाद पार्टियों की स्थिति की बात करें तो भाजपा के पास संख्या बल 99 की हो जाएगी. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस 31 मार्च के बाद 30 सदस्यों तक सिमट जाएगी. टीएमसी के पास 13 सीटें हैं जो बरकरार रहने जा रही हैं इसी तरह डीएमके 10, आप 8 सीटों पर पहुंच जाएगी और टीआरएस 6 सीटों, वाईएसआर कांग्रेस 6 भी सीटों के आंकड़े पर रहेगी. हालांकि जुलाई में कांग्रेस की सीटें और भी ज्यादा घट जाएंगी, ऐसे में मुमकिन है कि वो मुख्य विपक्षी पार्टी का भी दर्ज खो दे. 

राज्यसभा में विपक्ष के नेता की स्थिति

राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद का अत्यधिक सार्वजनिक महत्त्व है. इसका महत्त्व संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष को दी गई मुख्य भूमिका से उद्भूत होता है. विपक्ष के नेता का काम बेहद कठिन होता है. दरअसल, राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर उसे हर मुद्दे का बेहद गहरा ज्ञान होना जरूरी है. सरकार के हर बिल की गलती निकालना, उसमें ऐड-ऑन का सुझाव देना भी विपक्ष के नेता का काम होता है. ऐसे में विपक्ष का नेता यदि अक्षम हुआ, तो सरकार गैर-जरूरी और जनता के नुकसान वाले बिल भी पास करा सकती है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष का नेता सरकार की हर गलती को सामने रखता है. राज्यसभा में साल 1969 तक दलीय स्थिति में कोई विपक्ष का नेता नहीं होता था. उस समय सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को ही समूचे विपक्ष का नेता मान लिया जाता था. लेकिन मौजूदा समय में विपक्ष के नेता की कुर्सी उस पार्टी के नेता को दी जाती है, जो विपक्ष में हो. जिसके पास समूचे सदन का कम से कम 10 फीसदी सीट हो. राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद लिए तीन मुख्य शर्ते हैं.

  • उसे राज्य सभा का सदस्य होना चाहिए.
  • सर्वाधिक सदस्यों वाले दल की सरकार के विपक्ष में राज्य सभा का नेता होना चाहिए.
  • इस आशय से राज्य सभा के सभापति द्वारा उसे मान्यता प्राप्त होनी चाहिए.

वर्तमान समय में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में विपक्ष के आधिकारिक नेता हैं.

हर दो साल में एक तिहाई सदस्यों का निर्वाचन, कभी नहीं भंग होती राज्यसभा

राज्यसभा (Rajyasabha) के सभापति भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं. इसके सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं. इनमें से एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल प्रत्येक दो साल में पूरा हो जाता है. इसका मतलब है कि प्रत्येक दो साल पर राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य बदलते हैं न कि यह सदन भंग होता है. यानी राज्यसभा हमेशा बनी रहती है. इस तरह से ये प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है. इस बीच किसी सदस्य ने इस्तीफा दे दिया, तो उसके बचे हुए कार्यकाल के लिए ही नए सदस्य को चुना जाता है, न कि पूरे 6 साल के लिए. इसे ऐसे समझें कि राज्यसभा के किसी सदस्य ने 4.5 साल का कार्यकाल पूरा किया, फिर अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. उसकी जगह आने वाला सदस्य बाकी बचे समय तक के लिए ही चुना जाएगा, न कि पूरे 6 साल के लिए.