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बिखरती पार्टी, सिमटता जनाधार, राहुल गांधी के सामने चुनौतियां हजार

कोरोनाकाल में राहुल ने मोदी सरकार को जिस तरीके से घेरा है. उससे पार्टी के वरिष्ठ नेता काफी प्रभावित हुए हैं. पार्टी में एक बार फिर से राहुल को अध्यक्ष बनाने की मांग उठ रही है. लेकिन राहुल के सामने अभी भी चुनौतियां कम नहीं है.

Updated on: 19 Jun 2021, 11:44 AM

highlights

  • नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी हैं राहुल गांधी
  • साल 2004 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था
  • मोदी-शाह से टक्कर लेना आसान काम नहीं

नई दिल्ली:

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) आज 51 साल के हो गए हैं. कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए हालात के मद्देनजर राहुल ने इस साल जन्मदिन नहीं मनाने का फैसला किया है. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे 19 जून को उनके जन्मदिन के मौके पर किसी तरह के जश्न का आयोजन नहीं करें. कोई होर्डिंग या पोस्टर न लगाएं, बल्कि अपने पास उपलब्ध संसाधन का इस्तेमाल जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए करें. राहुल की अपील पर कांग्रेस पार्टी (Congress) ने उनके जन्मदिन को 'सेवा दिवस' (Seva Diwas) के रूप में मनाने का फैसला लिया है. 

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सेवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा जन्मदिन

सेवा दिवस के दिन दिल्ली कांग्रेस के कार्यकर्ता लोगों को मुफ्त में जरूरी सामान बाटेंगे. इसमें फेस मास्क, दवाइयां और पका हुआ खाना शामिल है. शुक्रवार को पार्टी ने इसकी जानकारी दी. पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल (KC Venugopal) ने बताया कि प्रदेश कांग्रेस कमेटियों, पार्टी के विभिन्न संगठनों को पत्र लिखकर राहुल गांधी की इस भावना से उन्हें अवगत करा दिया गया है. पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटियों से कहा कि वे राहुल गांधी के जन्मदिन पर जरूरतमंद लोगों के बीच राशन, मेडिकल किट, मास्क और सैनेटाइजर बांटेंगे. 

नेहरू-गांधी फैमिली की चौथी पीढ़ी हैं राहुल

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, नेहरू-गांधी फैमिली की चौथी पीढ़ी हैं. उनका जन्म नई दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल में 19 जून 1970 को हुआ था. राहुल ने अपनी शुरूआती पढ़ाई दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से की. उसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने देहरादून के 'दून स्कूल' से की. साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद सुरक्षा कारणों के चलते राहुल को अपनी पढ़ाई घर से ही करनी पड़ी. 

सुरक्षा कारणों से कई बार पढ़ाई छोड़नी पड़ी

1989 में राहुल ने दिल्ली का Saint stepehen कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन फिर से स्कूल छोड़ना पड़ा. इसके बाद राहुल ने हावार्ड यूनीवर्सिटी में एडमिशन लिया. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कारणों से उन्होंने यहां भी पढ़ाई छोड़ दी. इसके बाद 1991 से 1994 तक रोलिंस कॉलेज में पढ़ाई की और आर्ट्स से ग्रेजुएशन पास किया. 1995 में यूनीवर्सिटी ऑफ कैंम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में एमफिल से डिग्री ली.

साल 2004 में सक्रिय राजनीति में आए

पढ़ाई कंपलीट करने के बाद राहुल वापस भारत लौट आए, और पार्टी के कामकाज को देखने लगे. शुरुआती दिनों में उन्होंने सिर्फ अपनी मां सोनिया गांधी का हाथ बंटाया और सिर्फ उनके लिए ही चुनाव प्रचार शुरु किया. लेकिन बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने उनको सक्रिय राजनीति में आने की सलाह दी. जिसके बाद वे साल 2004 में सक्रिय राजनीति में आए और अमेठी से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. यहां से राहुल का राजनीतिक जीवन शुरू हुआ.

2007 यूपी चुनाव में पार्टी को जीत नहीं दिला सके

साल 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों राहुल गांधी ने प्रमुख भूमिका अदा की. हालांकि उन्हें वो कामयाबी हासिल नहीं हो सकी. उस चुनाव में कांग्रेस ने 8.53% मतदान के साथ केवल 22 सीटें ही जीतीं. लेकिन यहां से राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग उठने लगी. 24 सितंबर 2007 में पार्टी-संगठन के एक फेर-बदल में राहुल को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया. 2009 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी ने पूरे दमखम के साथ पूरे देश में चुनाव प्रचार किया और यूपीए एक बार फिर से सरकार बनाने में सफल रही. इस चुनाव में राहुल को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. इतना ही नहीं उन्होंने सरकार में हिस्सा बनने से भी इंकार कर दिया था. 

दिसंबर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बने

साल 2013 में राहुल को कांग्रेस का उपाध्यक्ष चुना गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया लेकिन मोदी लहर में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में कांग्रेस के खाते में सिर्फ 44 सीटें आईं. दिसंबर 2017 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन तब तक कांग्रेस का जनाधार काफी खिसक चुका था. मोदी लहर में बीजेपी ने कांग्रेस मुक्त भारत अभियान चलाया. और एक के बाद एक कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भगवा फहराने लगा.

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पार्टी को एकजुट करना बड़ी चुनौती

राहुल ने पार्टी की कमान संभाली तो पार्टी का जनाधार खिसक चुका था. पूरी तरह से बिखर चुकी थी. और एक के बाद एक कई राज्य से कांग्रेस के हाथ से निकल रहे थे. राहुल गांधी ने पार्टी को फिर से मजबूत करने की कोशिश की. पार्टी में युवाओं को तरजीह दी. कांग्रेस को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने वाले चुनावों में इसका फायदा भी देखने को मिला. तीनों ही राज्यों में राहुल ने युवा नेताओं को आगे करके चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. लेकिन युवाओं को ज्यादा तरजीह देने से वरिष्ठ नेता नाराज होने लगे. जिससे पार्टी में फूट पड़ने लगी. 

मोदी लहर में मिली करारी हार 

कांग्रेस पार्टी दिन-प्रतिदिन कमजोर हो रही थी, उधर पीएम मोदी की अगुवाई में मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो जनता को काफी पसंद आए. और बीजेपी को इसका फायदा मिल रहा था. कांग्रेस पार्टी ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव भी राहुल के नेतृत्व में लड़ा था, लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी के आगे राहुल एक बार फिर नहीं टिक पाए और पार्टी को एक बार फिर से करारी हार का सामना करना पड़ा. इस करारी हार के बाद पहले तो आलाकमान ने हार की जिम्मेदारी राज्य स्तरीय नेताओं पर थोपने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा आलोचना होते देख राहुल ने हार की जिम्मेदारी ली और अध्यक्ष पद छोड़ दिया.  

इस बार भी हैं कई चुनौती

कोरोनाकाल में राहुल ने मोदी सरकार को जिस तरीके से घेरा है. उससे पार्टी के वरिष्ठ नेता काफी प्रभावित हुए हैं. पार्टी में एक बार फिर से राहुल को अध्यक्ष बनाने की मांग उठ रही है. लेकिन राहुल के सामने अभी भी चुनौतियां कम नहीं है. पार्टी पूरी तरह से बिखर चुकी है. एक के बाद एक राहुल के कई करीबी नेताओं ने पार्टी को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद का नाम सबसे आगे है. जबकि राजस्थान में सचिन पायलट पार्टी से नाराज चल रहे हैं. तो वहीं पंजाब में भी पार्टी के अंदर काफी घमासान मचा हुआ है. अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव हैं, लेकिन प्रदेश स्तर पर पार्टी काफी कमजोर है. यदि राहुल पार्टी की कमान संभालते हैं तो उन्हें यूपी चुनाव का सामना करना पड़ेगा. और अभी पार्टी चुनाव जीतने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं है.