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पंजाब कांग्रेस में रार: आखिर क्या है कैप्टन और सिद्धू के बीच पूरा विवाद? जानिए

पंजाब में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 'कैप्टन बनाम खिलाड़ी' के बीच लड़ाई ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है. वाद विवाद लगातार कैप्टन और खिलाड़ी में और बढ़ता रहा है.

Updated on: 22 Jun 2021, 12:15 PM

highlights

  • पंजाब में कैप्टन बना खिलाड़ी के बीच 'खेला'
  • कैप्टन को सीएम पद से हटाने की हो रही मांग
  • कैप्टन के काम के अंजाम से नाराज हैं विधायक

नई दिल्ली/चंडीगढ़:

पंजाब में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 'कैप्टन बनाम खिलाड़ी' के बीच लड़ाई ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है. वाद विवाद लगातार कैप्टन और खिलाड़ी में बढ़ रहा है. नवजोत सिंह सिद्धू और परगट सिंह समेत कई नेताओं की एक टीम ने मोर्चा खोल दिया है, जो खुलकर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ खड़ी है. कभी जुबानी पलटवार तो कभी पोस्टर वार ने पंजाब की सियासत में भूचाल ला दिया है. पंजाब कांग्रेस की रार सोनिया गांधी की चौखट तक पहुंच चुकी है. पिछले एक पखवाड़े से पंजाब से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है. आज भी कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल्ली में हैं, जहां वह सोनिया गांधी मिल सकते हैं. कैप्टन को आज पार्टी पैनल के सामने भी हाजिर होना है. हालांकि इससे पहले हम इस पूरे विवाद समझते हैं.

क्या है पूरा विवाद

दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह के काम करने के अंजाम से ये नेता नाराज हैं. अभी जिन मुद्दों को लेकर कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोला गया है, उनमें गुरुग्रंथ साहब बेअदबी मामले में नाकामी, बादल परिवार के साथ सांठगांठ के आरोप और 2017 के चुनावी वादे पूरे न करने के आरोप शामिल हैं. बेअदबी की यह घटना तब की है, जब अकाली दल-भाजपा की सरकार थी. हालांकि कार्रवाई के लिए पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में भी वादा किया गया था. करीब 20 विधायक अमरिंदर सिंह की कार्यशैली से नाखुश बताए जा रहे हैं. यहां तक की कैप्टन को सीएम पद से हटाने की मांग हो रही है.

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कुछ दिनों पहले जुबानी जंग में, सिद्धू ने मुख्यमंत्री को अपने 'सहयोगियों के कंधों' से गोलीबारी बंद करने की सलाह दी थी. सिद्धू ने अमरिंदर सिंह को याद दिलाया था कि उनकी आत्मा गुरु साहिब के लिए न्याय मांगती है. उनकी प्रतिक्रिया तब आई जब सात मंत्रियों ने अमरिंदर सिंह पर अनुशासनहीनता और मौखिक हमले शुरू करने के लिए सिद्धू को पार्टी से निलंबित करने की मांग की थी. मंत्रियों ने पार्टी आलाकमान से राज्य पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुले विद्रोह के लिए सिद्धू के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया था.

सिद्धू अपने खिलाफ शिकायत के बाद कैप्टन के खिलाफ मुखर हो गए. जिस कारण कैप्टन और सिद्धू के बीच सीधे जंग और तेज हो गई. हाथ की हाथ इस बात को समझना भी जरूरी है कि क्या वाकई सिद्धू बदलाव के लिए कैप्टन का विरोध कर रहे हैं या फिर उन्हें भी सत्ता का भोज चाहिए. अगर कुछ जानकारों की मानें तो नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी संगठन में बड़ा पद चाहते हैं. यह न मिलने पर वह सरकार में बड़ी जिम्मेदारी चाहते हैं यानी उपमुख्यमंत्री जैसा पद चाहते हैं. हालांकि सूत्र कहते हैं कि सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह सिद्धू को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ हैं, लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए तैयार हैं. सिद्धू अपनी पसंद का पोर्टफोलियो चाहते थे. अब उनकी निगाहें प्रदेश अध्यक्ष पद पर है, जो सुनील जाखड़ के पास है.

कांग्रेस हाईकमान ने क्या कदम उठाए

सिद्धू के नेतृत्व वाले एक समूह ने राज्य नेतृत्व में बदलाव के सुर और तेज किए तो बिगड़ती हालात देख कांग्रेस आलाकमान को मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन करना पड़ा. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा गठित समिति में मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा जेपी अग्रवाल और राज्य के प्रभारी महासचिव हरीश रावत शामिल हैं. पैनल को राज्य में किसी भी गुट को अलग किए बिना इस मुद्दे को हल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. विवाद सुलझाने के लिए कमेटी ने लाख कोशिशें की. पार्टी के अलग गुटों के मुलाकात की और उनका पक्ष सुना. कैप्टन और सिद्धू के साथ भी कमेटी ने अलग अलग वार्तालाप की. तमाम नेताओं को दिल्ली भी तलब किया गया. बाद में 10 जून को कमेटी ने सोनिया गांधी को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

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सूत्र बताते हैं कि पैनल ने पंजाब के मुख्यमंत्री को हटाने की सिफारिश नहीं की है और कैप्टन अमरिंदर सिंह के अगले चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने की संभावना है. इसके बजाय, पार्टी की राज्य इकाई में कई सुधारों का सुझाव दिया गया. सूत्रों ने संकेत दिया कि मुख्यमंत्री को बदलने को लेकर कोई बात नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण नेताओं की बहाली या पुनरूद्धार की बात है. हालांकि नवजोत सिंह सिद्धू का भाग्य अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों कहते हैं कि पैनल पंजाब कैबिनेट में उनकी बहाली चाहता है.

कैप्टन को ही क्यों नहीं हटा सकती कांग्रेस

कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री को बदलने का जोखिम नहीं उठाएगा. राज्य में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में अगर कैप्टन को हटाया तो कांग्रेस की टीम चुनाव में लड़खड़ा सकती है, क्योंकि अकाली दल खासकर बादल परिवार का सामना करने के लिए उनके कद का फिलहाल कोई नहीं है.