गुरु तेग बहादुर का 401वां प्रकाश पर्व, जानें- 'हिंद दी चादर' का बचपन और बलिदान
यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) लाल किला से सूर्यास्त के बाद देश को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर के बजाए लॉन से अपना संबोधन देंगे.
highlights
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात में साढ़े नौ बजे देश को संबोधित करेंगे
- सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का 401 वां प्रकाश पर्व
- नौंवे गुरु गैर मुस्लिमों का इस्लाम में जबरन धर्मांतरण का विरोध रहे थे
New Delhi:
पूरे देश और दुनिया भर में आज गुरुवार को सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का 401 वां प्रकाश पर्व ( The 401st Birth Anniversary of Guru Tegh Bahadur) मनाया जा रहा है. इस दिन गुरु साहिब के इतिहास और शहादत को आदर के साथ याद किया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) सिख गुरु तेग बहादुर के 401वें प्रकाश पर्व के अवसर पर बृहस्पतिवार को लाल किले से देश को संबोधित करेंगे. यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री लाल किला से सूर्यास्त के बाद देश को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर के बजाय लॉन से अपना संबोधन देंगे.
लाल किले को आयोजन स्थल के रूप में चुनने के बारे में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहीं से सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर की जान लेने का आदेश दिया था. इसलिए इसी जगह को गुरु के भव्य प्रकाश पर्व मनाने के लिए चुना गया है. अधिकारियों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात में साढ़े नौ बजे देश को संबोधित करेंगे. उनके भाषण में विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच आपसी सौहार्द पर जोर रहेगा.
'हिंद दी चादर' गुरु तेग बहादुर के बारे में जानें
एक क्रांतिकारी युग पुरुष गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म साल 1621 में वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में गुरु हरगोविंद जी के पांचवें पुत्र के रूप में हुआ था. गुरु तेग बहादुर खालसा पंथ शुरू करने वाले दसवें गुरु गोविन्द सिंह के पिता भी थे. आठवें गुरु हरिकृष्ण राय जी के निधन के बाद इन्हें 9वां गुरु बनाया गया था. उन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और वहीं रहने लगे थे. 'हिंद दी चादर' कहे जाने वाले गुरु तेग बहादुर 1665 से 1675 में अपने बलिदान तक सिखों के गुरु रहे.
बचपन से ही आध्यात्मिक रूचि और वीरता की मिसाल
गुरु तेग बहादुर सिंह का बचपन का नाम त्यागमल था. वे बचपन से ही बहादुर, निर्भीक स्वभाव के और आध्यात्मिक रुचि वाले थे. उन्होंने मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया. इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार का धनी रख दिया था.
इस्लाम स्वीकर नहीं करने की वजह से हत्या
गुरु तेग बहादुर लगातार हिंदुओं, सिखों, कश्मीरी पंडितों और गैर मुस्लिमों का इस्लाम में जबरन धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे. मुगल शासक औरंगजेब इससे खासा नाराज था. गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धारण नहीं किया. औरंगजेब ने गुरु पर अनेक अत्याचार किए, लेकिन उन्हें विचलित नहीं कर पाया. उन्होंने पूरी दृढ़ता के साथ तमाम जुल्मों का सामना किया. औरंगजेब के इस्लाम कबूल करने के फरमान पर उन्होंने कहा कि शीश कटा सकते हैं, केश नहीं.
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आठ दिनों की यातना के बाद शीश का बलिदान
लगातार आठ दिनों की यातना देने के बाद औरंगजेब की ओर से दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर के शीश काट देने यानी सिर कलम करने का फरमान जारी कर दिया गया. बाद में अनुयायियों ने बलिदान स्थल पर गुरु तेग बहादुर की याद में गुरुद्वारा बनाया. इसे ही आज गुरुद्वारा शीशगंज साहब नाम से जाना जाता है. विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है. गुरु तेग बहादुर के बाद उनके बेटे गुरु गोविंद सिंह को सिख पंथ का दसवां गुरु घोषित किया गया.
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