पीएम की सुरक्षा में चूक से बदलेंगे पंजाब के सियासी समीकरण, राष्ट्रीय सुरक्षा पहले ही कांग्रेस के गले की फांस
कांग्रेस आलाकमान ने कैप्टन की हिंदू सीएम बनाए जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दलित कार्ड खेला था. ऐसे में यह घटना हिंदू वोटरों को बीजेपी की तरफ धकेलने का बड़ा जरिया बन सकती है.
highlights
- पीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक को बीजेपी बनाएगी बड़ा मुद्दा
- जाने-अनजाने कांग्रेस ने चुनाव से पहले थमा दिया एक मसला
- राष्ट्रीय एकता पर कांग्रेस को पहले से घेरती आ रही है बीजेपी
नई दिल्ली:
पंजाब के बठिंडा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक और फिर एयरपोर्ट पर पीएम का सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को दिया गया धन्यवाद ज्ञापन वास्तव में विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की बिसात में शह-मात का खेल बनकर उभर आया है. जिस तरह से आम आदमी पार्टी समेत पंजाब कांग्रेस के बड़े नेता सुनील जाखड़ ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, वह बानगी भर है कि इस एक घटना ने बीजेपी के राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को तो हवा दी ही. साथ ही सूबे के हिंदू और जट सिख मतदाताओं को भी हिला कर रख दिया है. संभवतः हिंदू और जट सिख वोटरों की अहमियत भांप कर ही बीजेपी ने शुरुआत से राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला उठाया. इस मसले को भूतपूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के नवजोत सिंह सिद्धू पर पाकिस्तानी परस्ती औऱ इमरान खान समेत पाक सैन्य प्रमुख जनरल बाजवा से नजदीकी ने सूबे की सियासत को और गर्मा दिया है. सुरक्षा में चूक के मसले ने कांग्रेस को जहां बैकफुट पर ढकेल दिया है, वहीं बीजेपी को एक बड़ा चुनावी मुद्दा दे दिया है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर सुनवाई औऱ पीएम मोदी की राष्ट्रपति से मुलाकात ने साफ कर दिया है कि बीजेपी इस मसले को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
हिंदू वोटरों के लिए मन बनाने का मौका बन सकता है सुरक्षा में चूक का मसला
गौरतलब है कि भले ही पंजाब में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच माना जा रहा हो, लेकिन बीजेपी और कैप्टन की गलबहियों ने चुनावी समर को त्रिकोणीय बना दिया है. खासकर हिंदू वोट, जो अभी तक साइलेंट है को अपना पाला तय करने का एक मौका दे दिया है. खासकर यह देखते हुए जट सिख और हिंदू वोटरों में सीधी-सीधी खेमेबंदी होने से हिंदू वोट अलग-थलग महसूस कर रहे थे. गौरतलब है कि कांग्रेस आलाकमान ने कैप्टन की हिंदू सीएम बनाए जाने की मांग को सिरे से खारिज कर दलित कार्ड खेला था. ऐसे में यह घटना हिंदू वोटरों को बीजेपी की तरफ धकेलने का बड़ा जरिया बन सकती है. आंकड़ों की भाषा में बात करें तो 38 फीसदी हिंदू वोट अगर एकतरफा किसी भी पार्टी की तरफ झुक गए तो सारे समीकरण ध्वस्त हो सकते हैं. यही वजह है कि इन्हें लुभाने का प्रयास सभी दल कर रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस और आप भी इस मामले में काफी मुखर है. जट सिख वोटों को लुभाने के बजाय बीजेपी अब हिंदू मतदाताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को तरजीह देगी. पीएम मोदी की सुरक्षा में चूक के बाद शुरू हुए आरोप-प्रत्यारोप के दौर ने इसे जाहिर भी कर दिया है.
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अंतर्कलह से जूझती कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं
गौर करें कि कैप्टन अमरिंदर सिंह नई पार्टी बनाने और पंजाब चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तय कर वह मास्टर स्ट्रोक खेल चुके हैं. इसके पहले बीजेपी ने कृषि कानूनों को वापस लेकर कैप्टन की नई राजनीतिक पार्टी के हाथों बहुत बड़ा मुद्दा पकड़ा दिया है, जिसे कैप्टन अपनी जीत बतौर पेश करेंगे. इसके साथ ही बीजेपी अकाली दल से अलग होने के बाद अपने दम पर खड़े होने की कोशिशों को कैप्टन की मदद से अब और परवाज दे सकेगी. यही बात कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है. वजह यह है कि पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी औऱ सूबे में कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की अनबन खुले में आ चुकी है. ऐसे में आंतरिक कलह से जूझती कांग्रेस के लिए कृषि कानून की वापसी औऱ हिंदू वोटरों की नाराजगी राजनीति के लिहाज से शुभ संकेत नहीं है.
साइलेंट वोटर है सूबे की हिंदू आबादी
पंजाब के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो हिंदू वोटरों की संख्या 38 फीसदी है. इस बार बीजेपी-शिअद के अलग होने समेत कांग्रेस से अमरिंदर सिंह का किनारा करने से आसन्न विधानसभा चुनाव चतुष्कोणीय प्रतीत हो रहा है. एक समय कांग्रेस को सीधी टक्कर आम आदमी पार्टी से मिलती दिख रही थी, लेकिन उक्त दो घटनाक्रमों ने हिंदू वोटरों में एक सनसनी सी मचा दी है. परंपरागत तौर पर पंजाब की हिंदू आबादी साइलेंट वोटरों में शुमार होती है. ऐसे में राजनीतिक दलों ने उन्हें अपने-अपने पाले में करने की कोशिशें शुरू कर दी है. इसके लिए मंदिर परिक्रमा का दौर शुरू होने से हिंदू मतदाताओं में भी एक किस्म की बेचैनी है. वह अपनी जगह अलग तलाशने के लिए इस बार आसन्न विधानसभा चुनाव में अलग रुख अपना सकता है. कांग्रेस आलाकमान की हिंदू सीएम के प्रति बेरुखी और दलितों की हत्या से समीकरण बदल सकते हैं.
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कट्टरता को तरजीह नहीं देता है हिंदू वोटर
मोटे तौर पर हिंदुओं का ज्यादातर वोट अकाली दल-बीजेपी गठबंधन के मुकाबले कांग्रेस को मिलता रहा है. बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सरकार बनाती दिख रही थी, क्योंकि हिंदू मतदाताओं में उसके लिए क्रेज था. यह अलग बात है कि साइलेंट वोटर होने के साथ-साथ सूबे का हिंदू वोटर बहुत ज्यादा कट्टर भी नहीं है. ऐसे में उसे जैसे ही लगा कि आम आदमी पार्टी सरकार से कट्टरवादी तत्वों को बढ़त मिल जाएगी, उसने आप से दूरी बना कांग्रेस को वोट कर दिया. इस तरह ऐन मौके आम आदमी पार्टी का खेल बिगड़ गया. यह अलग बात है कि 2022 के विधानसभा चुनाव आते-आते राज्य के स्थायी समीकरण बिगड़ चुके हैं. ढाई दशक पुराना अकाली-बीजेपी गठबंधन टूट गया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग हो अलग पार्टी बना चुके हैं. सिद्धू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं और एक दलित चेहरा चन्नी सीएम के पद पर बैठा है. अकाली दल बीएसपी के साथ चुनाव लड़ेगा. कैप्टन बीजेपी के साथ चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में इन नए राजनीतिक समीकरणों में हिंदू वोटर्स भी अपनी जगह बनाने में लग रहा है.
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