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पीएम मोदी से बेहतरीन श्रोता नहीं, तानाशाही का आरोप तो प्रोपेगंडाः अमित शाह

अमित शाह ने सरकारी न्यूज चैनल संसद टीवी को भी एक खास इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का जीवन सार्वजनिक है. उन्होंने प्रशासन की बारीकियों से समझा है. वह जिद नहीं जोखिम लेकर कोई फैसला करते हैं.

Updated on: 10 Oct 2021, 12:31 PM

highlights

  • पार्टी में सभी फैसले सामूहिक चिंतन से लिए जाते हैं
  • मोदीजी देश हित में जोखिम लेकर ही फैसला करते हैं
  • भारत आज छठे नंबर की अर्थव्यवस्था है, आगे और पड़ाव

नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में दो दशक होने पर खास कार्यक्रम चला रही है. इस कड़ी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरकारी न्यूज चैनल संसद टीवी को भी एक खास इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का जीवन सार्वजनिक है. उन्होंने प्रशासन की बारीकियों से समझा है. वह जिद नहीं जोखिम लेकर कोई फैसला करते हैं और हर फैसले का मकसद देश में बदलाव लाना ही होता है. अमित शाह ने ये भी कहा कि गुजरात में जब पीएम मोदी को संगठन की जिम्मेदारी दी गई, तो वहां बीजेपी की हालत खराब थी. पीएम मोदी ने ही अपने संगठनात्मक कौशल से पार्टी को खड़ा किया. इसके साथ ही अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर चलाए गए या जा रहे प्रोपेगंडा पर भी खुलकर अपनी राय रखी.

पीएम मोदी का सार्वजनिक जीवन तीन हिस्सों में 
प्रधानमंत्री मोदी के जीवन से जुड़ी चुनौतियां पर चर्चा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'उनके सार्वजनिक जीवन के तीन हिस्से हो सकते हैं. एक तो बीजेपी में आने के बाद का उनका पहला कालखंड संगठनात्मक काम का था. दूसरा कालखंड उनके मुख्यमंत्री का रहा और तीसरा राष्ट्रीय राजनीति में आकर प्रधानमंत्री बने. इन तीन हिस्सों में उनके सार्वजनिक जीवन को बांधा जा सकता है.' उन्होंने कहा, 'पीएम मोदी को बीजेपी में संगठन मंत्री बनाया गया. उस वक्त बीजेपी की स्थिति गुजरात में खस्ताहाल थी और देश में दो सीटें आई थीं, तब वो संगठन मंत्री बने और 1987 से उन्होंने संगठन को संभाला. 1987 के बाद सबसे पहला चुनाव आया अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का. पहली बार बीजेपी अपने बूते कॉर्पोरेशन में सत्ता में आई. उसके बाद बीजेपी की यात्रा शुरू हुई. 1990 में हम हिस्सेदारी में सरकार में आए. 1995 में पूर्ण बहुमत में आए और वहां से बीजेपी ने आजतक पीछे मुड़कर नहीं देखा है.'

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गुजरात का भूकंप चुनौती बन कर आया
अमित शाह ने कहा, 'दूसरी बड़ी चुनौती उनके मुख्यमंत्री बनने पर सामने आई. गुजरात में बड़ा भूकंप आया था. सारे चुनाव कांग्रेस जीत गई थी. 70 के दशक के बाद पहली बार बीजेपी राजकोट म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में हारी थी और अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन हम 1987 के बाद पहली बार हारे. पीएम मोदी को कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था, लेकिन गुजरात का सीएम बनने के उन्होंने प्रशासन की बारीकियों को समझा. योजनाएं बनाईं और योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का काम किया. ऐसा लगता था कि जो भूकंप बीजेपी के लिए धब्बा बन जाएगा, उस भूकंप के बाद राहत कामों को लेकर पूरी दुनिया में सराहना हुई.'

यूपीए में हर क्षेत्र में देश का कद गिरा
उन्होंने कहा, 'यूपीए की सरकार में हर क्षेत्र में देश नीचे की ओर था. वैश्विक मंच पर भारत का कोई सम्मान नहीं था. स्थिति यह थी कि नीतिगत फैसले महीनों तक सरकार की आंतरिक कलह में उलझे रहते थे. एक मंत्री महोदय तो 5 साल तक कैबिनेट में नहीं आए. ऐसे माहौल में उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला, आज सारी व्यवस्थाएं अपनी जगह पर सही हो रही हैं.' उन्होंने कहा, 'मोदी जी जोखिम लेकर फैसले करते हैं ये बात सही है. हमारा लक्ष्य देश में परिवर्तन लाना है. 130 करोड़ की आबादी वाले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को दुनिया में एक सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाना है. दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण देश की सुरक्षा भी चाक-चौबंद हुई. भारत एयर स्ट्राइक या सर्जिकल स्ट्राइक कर सकता है. कभी नहीं सोच सकता था कि कोई प्रधानमंत्री कहेगा कि भारत में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने की क्षमता है. हम 11 नंबर से 6वें नंबर की अर्थव्यवस्था बन चुके हैं.' 

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मोदी जी बेहतरीन श्रोता
पीएम मोदी पर तानाशाही का आरोप लगता रहा है, इस सवाल पर अमित शाह ने कहा, 'मैंने उन्हें नजदीक से देखा है. ये बेबुनियाद आरोप हैं. मैंने मोदी जैसा श्रोता देखा नहीं है. कोई भी बैठक हो, कम बोलते हैं और बहुत धैर्य से सुनते हैं और फिर उचित निर्णय लेते हैं. कई बार तो हमें भी लगता है कि क्या इतना सोच-विचार चल रहा है. लेकिन वो सबकी बात सुनते हैं और छोटे से छोटे व्यक्ति के सुझाव को गुणवत्ता के आधार पर महत्व देते हैं. तो ये कह देना कि वो निर्णय थोंप देने वाले नेता है, इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है. ये जानबूझकर परसेप्शन बनाया जाता है. अब फोरम में जो डिस्कशन हुआ वो बाहर नहीं आता है. तो लोगों को लगता है कि फैसला मोदीजी ने ले लिया. होता इसके उलट है, सभी फैसले सामूहिक चिंतन से होते हैं.'