ओवैसी से हाथ ना मिलाकर भी BJP की मदद कर सकते हैं सिद्दीकी, TMC की बढ़ी टेंशन
Bengal assembly election: बंगाल में मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 31 फीसद है. कहा जाता है कि राज्य में मुस्लिम वोटर जिस तरफ झुकते हैं, सत्ता भी उसी के हाथ लगती है.
कोलकाता:
बंगाल विधानसभा का चुनाव इस बार काफी दिलचस्प हो गया है. यहां इस बार कुछ अलग ही चुनावी समीकरण बन रहे हैं. लगातार दो बार से सत्ता में रहने वाली टीएमसी के सामने इस बार हैट्रिक लगाने की चुनौती है. दो बार से टीएमसी की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले पीरजादा अब्बास सिद्दीकी इस बार टीएमसी से अलग होकर कांग्रेस और लेफ्ट के साथ चुनाव मैदान में हैं. इससे पहले उनका एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन की चर्चा सामने आ रही थी लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस का दामन साध लिया.
सिद्दीकी ने लिया यू टर्न
अब्बास सिद्दीका ने चुनाव से पहले यू टर्न ले लिया. अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) ने कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन में शामिल होने का ऐलान कर दिया. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ओवैसी को क्यों धोखा दिया तो उन्होंने कहा कि वो फुरफुरा शरीफ में मुझसे मिलने आए थे. इसके बाद वो वापस हैदराबाद चले गए. उनसे सीटों को लेकर कोई बात ही नहीं हुई. ऐसे में धोखा देने का सवाल ही नहीं है. किसी भी स्थानीय नेता ने भी मुझसे संपर्क नहीं किया.
आखिर कौन हैं सिद्दीकी?
पीरजादा सिद्दीकी पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ दरगाह के प्रमुख हैं. बंगाल में उनकी काफी लोकप्रियता है. एक बार सिद्दीकी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह ओवैसी के फैन हैं. ओवैसी के लिए सिद्दीकी की तारीफ ने न केवल बंगाल में राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया, बल्कि एआईएमआईएम को भी बंगाल में किस्मत आजमाने का मौका दे दिया. हालांकि बाद में यग गठबंधन परवान नहीं चढ़ सका.
बंगाल में मुस्लिम वोट फैक्टर
बंगाल में मुस्लिम फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. बंगाल के 31 फीसद वोटर मुस्लिम हैं. यहां इतना तय माना जाता है कि मुस्लिम वोटरों का झुकाव जिस तरफ होता है, सत्ता भी लगभग उसी के हाथ लगती है. साल 2011 में ममता की जीत के पीछे मुस्लिम वोटरों का अहम योगदान रहा था. ममता को ये अच्छी तरह पता है कि करीब 90 सीटों पर जीत और हार मुस्लिम वोटर तय कर सकते हैं. बंगाल के अगर बड़े शहरों की बात की जाए तो लगभग 22 प्रतिशत मुसलमान कोलकाता शहर में रहते हैं, जबकि उनमें से अधिकांश (लगभग 67 प्रतिशत) मुर्शिदाबाद जिले में रहते हैं. दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी क्रमशः उत्तरी दिनाजपुर (52 फीसदी) और मालदा (51 फीसदी) में है.
जीत का फैक्टर
अगर बात 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो टीएमसी को 43 प्रतिशत वोट मिले, जो 2014 के चुनावों की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक (मुस्लिम समर्थन के कारण) थे.
टीएमसी को 2014 में 34 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो पार्टी को केवल 22 सीटें ही मिल सकीं. 2016 के विधानसभा चुनावों में, तृणमूल लगभग 90 मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी. आंकड़ों पर गौर करें तो जिन क्षेत्रों में मुसलमानों में 40 प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं, टीएमसी ऐसे 65 विधानसभा क्षेत्रों में से 60 में आगे थी.
बीजेपी के वोट में हुई बढ़ोतरी
बीजेपी को 2016 के विधानसभा चुनाव में 12 फीसद वोट मिले थे. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर 39 हो गया. इस दौरान बीजेपी को वोट में करीब 27 फीसद का इजाफा हुआ. इसने टीएमसी की परेशानी बढ़ा दी है. अगर मुस्लिम वोटर कांग्रेस-लेफ्ट-आईएसएफ गठबंधन की ओर जाता है तो यह टीएमसी के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है. आईएसएफ ने तो नंदीग्राम में ममता बनर्जी के खिलाफ भी उम्मीदवार खड़ा करने का ऐलान कर दिया है.
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