इमरान खान की विदाई के बाद कैसे होंगे भारत-पाक के रिश्ते? शहबाज के लिए चुनौती
342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में इमरान सरकार के खिलाफ 174 सांसदों ने वोट किया. मगर इस सत्ता परिवर्तन के बाद भारत-पाक के संबंधों को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
highlights
- पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के साथ भारत के रिश्ते सबसे अधिक मायने रखते हैं
- इमरान खान सरकार ने भारत से दूरी बनाने का काम सबसे ज्यादा किया
नई दिल्ली:
पाकिस्तान की सियासत में रविवार का दिन ऐतिहासिक माना जाएगा. अविश्वास प्रस्ताव के जरिए इमरान खान मुल्क में सत्ता गंवाने वाले पहले पीएम बन गए. 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में इमरान सरकार के खिलाफ 174 सांसदों ने वोट किया. मगर इस सत्ता परिवर्तन के बाद भारत-पाक के संबंधों को लेकर सवाल उठने लगे हैं. खासतौर से तब जब सत्ता गंवाने के कुछ दिन पहले ही इमरान ने भारत को सराहा था. सवाल है कि भारत के लिहाज से पाकिस्तान में सरकार बदलने के बाद किस तरह का बदलाव आएगा? पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के साथ भारत के रिश्ते सबसे अधिक मायने रखते हैं. वहीं, इस बार इमरान खान ने विदेश नीति को लेकर भारत की तारीफ की और अपनी विदेश नीति और सुरक्षा नीति को लेकर पाकिस्तानी सेना पर सवाल उठाए. खान के इस कदम ने रावलपिंडी को पहले से ज्यादा परेशान कर दिया था.
क्या खुलेंगे बातचीत के रास्ते?
ऐसा कहा जा रहा है कि इमरान खान सरकार ने भारत से दूरी बनाने का काम सबसे ज्यादा किया. करीब ढाई वर्षों तक उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर निजी तौर पर हमले किए. उन्होंने भारत सरकार पर कई तरह के आरोप लगाए. माना जा रहा है कि उनका सत्ता से बाहर होना नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच कूटनीतिक बातचीत शुरू होना आसान नहीं होगा.
शरीफ परिवार की वापसी
चार साल पहले सत्ता से बाहर हुए शरीफ परिवार की शहबाज के रूप में एक बार फिर से वापसी हुई है. इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में उन्होंने अहम रोल अदा किया है. उनके भाई और पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ लंदन में हैं, मगर उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के बाद अपने भाषण में कई बार उन्हें याद किया. ऐसी खबर है कि शरीफ हमेशा से भारत से बेहतर रिश्ते रखना चाहते थे. मगर इमरान खान के बयानों के कारण अब यह मुश्किल हो सकता है.
कोई पीएम पूरा नहीं कर सका कार्यकाल
पाकिस्तान में अब तक कोई भी पीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. रविवार को यही हुआ और चौथे वर्ष में ही इमरान सरकार को बाहर का रास्ता देखना पड़ा. हालांकि, मतदान के दौरान इमरान नेशनल असेंबली में मौजूद नहीं थे. विपक्ष ने पीएम के खिलाफ 8 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव दाखिल किया था.
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