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अति आत्मविश्वास से SP-AAP को नुकसान, कानून-व्यवस्था ने दिलाई BJP को जीत

रामपुर समाजवादी पार्टी के फायरब्रांड नेता आजम खान और आजमगढ़ सपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है.सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को आजमगढ़ पर बहुत भरोसा रहा है.

Updated on: 27 Jun 2022, 04:01 PM

नई दिल्ली:

देश के कुछ राज्यों में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के परिणाम से राजनीतिक हलकों में खलबली मची है. राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिक दलों को ऐसे परिणाम अप्रत्याशित लग रहे हैं. पंजाब के संगरूर लोकसभा के साथ ही उत्तर प्रदेश के रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव जीतकर भाजपा ने सपा के गढ़ को भेद दिया है. रामपुर समाजवादी पार्टी के फायरब्रांड नेता आजम खान और आजमगढ़  सपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को आजमगढ़ पर बहुत भरोसा रहा है. लेकिन भाजपा ने आजमगढ़ में सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को पटखनी देकर यह साबित कर दिया कि अब उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ का गढ़ बन चुका है. आजमगढ़ हो या रामपुर, अब यहां योगी और भाजपा की चलेगी.   

रामपुर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी घनश्याम लोधी की जीत ने आजम खान के माथे पर बल ला दिया है. सपा रामपुर में आजम खान के भरोसे थी. लेकिन जनता ने सपा के भरोसे के साथ ही आजम खान के आभामंडल को भी तोड़ दिया है. आजमगढ़ में अखिलेश यादव ने सपा के किसी स्थानीय नेता की बजाय अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को उतारा था. इससे यह साफ जाहिर है कि यूपी में अब सपा और मुलायम परिवार की राजनीतिक जमीन खिसक गयी है.
 
दरअसल, अति आत्मविश्वास ने लोकसभा उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को उसके गढ़ आजमगढ़ और रामपुर में और साथ ही आम आदमी पार्टी को पंजाब के संगरूर में हार का स्वाद चखा दिया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रामपुर या आजमगढ़ में प्रचार करने नहीं गए. आजमगढ़ सीट अखिलेश यादव के इस्तीफा देने से ही रिक्त हुई थी. जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आक्रामक तरीके से प्रचार किया.  

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सपा के रामपुर के मजबूत विधायक आजम खान दो साल से अधिक समय से जेल में थे, लेकिन उन्होंने रामपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं रखा, जिसे उन्होंने 2019 में जीता था. रामपुर से हार का कारण पिछले दो वर्षों से राजनीतिक परिदृश्य से आजम खान की अनुपस्थिति को दर्शाता है. लेकिन यह कहना पूरे मामले को सरलीकरण है. आजम खान रामपुर में किसी दूसरे मुस्लिम नेता को उभरने नहीं देना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने चुनाव वह ताकत नहीं लगाई, जो जीत के लिए जरूरी थी.

भारतीय जनता पार्टी  इसे उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ अपनी "बुलडोजर कार्रवाई" और "सख्त दृष्टिकोण" के लिए सार्वजनिक मान्यता के रूप में देखेगी, जिसमें विपक्ष ज्यादातर सोशल मीडिया पर ही नाराजगी जताता है. भाजपा इस जीत को 2019 के लोकसभा चुनावों की गति के उलट होने के रूप में भी देख रहा है. जब 2014 में जीती 73 सीटों में से उसकी संख्या 80 में से 64 सीटों पर आ गई थी. यूपी में एनडीए की लोकसभा की संख्या अब बढ़ गई है. 

सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने यूपी में इस साल के विधानसभा चुनावों में 125 सीटें जीतकर राज्य में अपनी पार्टी के पुनरुद्धार का दावा किया था, जबकि एनडीए की 2014 में 325 सीटों से घटकर 273 सीटें हो गईं, फिर भी राज्य में विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत कम सम्मानजनक नहीं है. भाजपा अब दो लोकसभा उपचुनावों की जीत को सबूत के तौर पर बताएगी कि सपा का तथाकथित आधार मजबूत होने की बात अफवाह से ज्यादा कुछ नहीं है. और सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा बेहद मजबूत बनी हुई है.

साथ ही, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सपा ने 2019 में बसपा के साथ गठबंधन में रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीटें जीती थीं. इस बार, बसपा ने अलग से चुनाव लड़ा और आजमगढ़ में उसके उम्मीदवार शाह आलम को लगभग 30% वोट मिले, जिससे यहां समाजवादी पार्टी की संभावना कम हो गई. रामपुर में बीजेपी का सपा से सीधा मुकाबला था और उसके प्रत्याशी घनश्याम लोधी ने जीत हासिल की थी.

आप के लिए संगरूर का सदमा

तीन महीने पहले पंजाब में क्लीन स्वीप के बाद, सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड ने पंजाब के लोगों पर आम आदमी पार्टी के प्रभाव को कम कर दिया है और संगरूर में वोट राज्य में खराब कानून व्यवस्था के खिलाफ लगता है. यह हार मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए राजनीतिक रूप से बड़ा अपमान है, जिन्होंने इस लोकसभा सीट पर दो बार कब्जा किया, 2019 में भी जीत हासिल की, जब पंजाब में आप की हार हुई थी.

तीन महीने पहले मान द्वारा जीती गई संगरूर सीट के धुरी विधानसभा क्षेत्र में भी आप का प्रदर्शन खराब रहा. उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को संगरूर उपचुनाव में प्रचार करने और रोड शो करने के लिए कहा, लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका था. आप पदाधिकारियों को संदेह है कि कांग्रेस और भाजपा ने अपने वोट शिअद (अमृतसर) प्रमुख और विजयी उम्मीदवार सिमरनजीत सिंह मान को हस्तांतरित कर दिए, जिससे आप को चौंकाने वाली हार का सामना करना पड़ा.

यह नुकसान पंजाब में आप के लिए एक वेक-अप कॉल के रूप में आता है और कानून- व्यवस्था की स्थिति को सुधारने की तत्काल जरूरत को दर्शाता है. हालांकि, AAP दिल्ली में मजबूत बनी हुई है, राजिंदर नगर सीट आराम से जीत गयी, जिसे राघव चड्ढा ने खाली कर दिया था.

त्रिपुरा में बीजेपी की जमीन बरकरार, टीएमसी का प्रचार फ्लॉप

पिछले महीने मुख्यमंत्री बिप्लब देब को बदलने और माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद, भाजपा राज्य में विधानसभा चुनाव से एक साल पहले चार विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर जीतने में सफल रही. इन उप-चुनावों को विधानसभा चुनावों से पहले एक तरह के सेमीफाइनल के रूप में देखा गया था और टीएमसी और कांग्रेस दोनों ने पार्टी द्वारा अपने मुख्यमंत्री को बदलने पर तीखा हमला किया था.  

त्रिपुरा में कांग्रेस एक विधानसभा सीट जीत सकी है. राज्य में टीएमसी का जोरदार प्रचार उसके नेता अभिषेक बनर्जी के हाई-प्रोफाइल दौरों के बावजूद फ्लॉप रहा. टीएमसी इन चार उपचुनावों में सभी वोटों में से सिर्फ 2.8% वोट हासिल कर पायी.