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पाकिस्तान को कश्मीर में बेनकाब करेगा भारत, 22 को काला दिवस

भारत 22 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में 1947 के आक्रमण के दिन घाटी में हिंसा और आतंक फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका के विरोध में 'काला दिवस' के रूप में मनाएगा.

Updated on: 21 Oct 2020, 03:02 PM

श्रीनगर:

भारत 22 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में 1947 के आक्रमण के दिन घाटी में हिंसा और आतंक फैलाने में पाकिस्तान (Pakistan) की भूमिका के विरोध में 'काला दिवस' के रूप में मनाएगा. 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने अवैध रूप से जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया और लूटपाट और अत्याचार किए. इस बर्बर दिन की याद ताजा करने के लिए सरकार पाकिस्तान सेना द्वारा समर्थित हमलावरों द्वारा डाले गए छापे और अत्याचार के इतिहास को दिखाने के लिए एक संग्रहालय स्थापित करेगी.

कुल्हाड़ी-तलवारों से लैस होकर किया हमला
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'पाकिस्तानी सेना समर्थित कबायली लोगों के लश्कर (मिलिशिया) ने कुल्हाड़ियों, तलवारों और बंदूकों और हथियारों से लैस होकर कश्मीर पर हमला कर दिया, जहां उन्होंने पुरुषों, बच्चों की हत्या कर दी और महिलाओं को अपना गुलाम बना लिया.' उन्होंने कहा कि इन मिलिशिया ने घाटी की संस्कृति को भी नष्ट कर दिया. अधिकारी ने कहा कि 22 अक्टूबर को श्रीनगर में एक प्रदर्शनी और दो दिवसीय संगोष्ठी की योजना बनाई गई है.

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पाकिस्तान ने ऐसे बनाई आक्रमण की योजना
पाकिस्तान सेना ने प्रत्येक पठान जनजाति को 1,000 कबायलियों वाला लश्कर बनाने की जिम्मेदारी दी. उन्होंने फिर लश्कर को बन्नू, वन्ना, पेशावर, कोहाट, थल और नौशेरा में ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा. इन स्थानों पर पाकिस्तान के ब्रिगेड कमांडरों ने गोला-बारूद, हथियार और आवश्यक कपड़े प्रदान किए. उस समय पूरे बल की कमान मेजर जनरल अकबर खान संभालते थे, जिनका कोड नेम 'तारिक' था. प्रत्येक लश्कर को एक मेजर, एक कैप्टन और दस जूनियर कमीशन अधिकारी प्रदान किए गए थे. मुजफ्फराबाद छोड़ने से पहले प्रति कंपनी के साथ कम से कम चार गाइड भेजे गए थे.

इस तरह बढ़ना था कबालियों को
एयरोड्रम पर कब्जा करने और बाद में बनिहाल दर्रे की ओर आगे बढ़ने के विशेष कार्य के साथ छह लश्कर डोमेल, उरी और बारामूला के रास्ते मुजफ्फराबाद से श्रीनगर पहुंचे. दो लश्कर को हाजीपीर दर्रे से गुलमर्ग तक सीधे जाने के लिए कहा गया था. सोपोर, हंदवाड़ा और बांदीपुर पर कब्जा करने के लिए नास्ताचुन दर्रे के रास्ते से दो लश्करों के एक बल को तितवाल से आगे बढ़ने के लिए कहा गया था. पुंछ, राजौरी पर कब्जा करने और फिर जम्मू में आगे बढ़ाने के इरादे से पुंछ, भीमबार और रावलकोट क्षेत्र में दस लश्करों को ऑपरेट करने के लिए कहा गया.

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पाकिस्तानी सेना का पूरा बैकअप
इसके अलावा पाकिस्तानी सेना के 7 इन्फैन्ट्री डिवीजन ने मुरी-एबटाबाद के क्षेत्र में 21 अक्टूबर, 1947 को ध्यान केंद्रित किया और जनजातीय लश्करों की मदद के लिए और घाटी पर पकड़ मजबूत करने के लिए जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की ओर तुरंत बढ़ने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया गया. जम्मू जाने के लिए सियालकोट में एक इन्फैंट्री ब्रिगेड को भी तत्परता से रखा गया था. पाकिस्तानी सैनिकों को थोड़ी-थोड़ी संख्या में भेजा गया था और नियमित सैनिकों को आक्रमणकारियों के साथ मिलाया गया था.

बारामूला में हर तरफ बिछाई लाशें
26 अक्टूबर को आक्रमणकारियों ने बारामूला में प्रवेश किया और दिल दहला देने वाले अत्याचार किए. भारतीय सेना के एक पूर्व अधिकारी ने याद करते हुए कहा, 'रंग, जाति या पंथ देखे बिना युवा महिलाओं का अपहरण कर लिया गया. प्रत्येक हमलावर ने अधिक से अधिक धन या लड़कियों को हथियाने की कोशिश की.' अपनी सुरक्षा के लिए निवासियों ने अपनी सारी संपत्ति पीछे छोड़ दी और पहाड़ियों में शरण ली. सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था, केवल लश्करों के कदम की आवाज आ रही थी, वे चारों ओर बिखरी लाशों के बीच अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े जा रहे थे. बारामूला को बर्बर पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया और लूट लिया.

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भारतीय सेना ने की मदद
जम्मू-कश्मीर की रियासत पर नवगठित पाकिस्तानी सेना के सैनिकों द्वारा समर्थित कबायली हमलावरों का हमला हुआ था. अत्याचारों के साक्षी महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद की अपील की और कश्मीर को औपचारिक रूप से भारत को सौंप दिया. 27 अक्टूबर  1947 को भारतीय सेना की पहली इन्फैंट्री टुकड़ी पहुंची. 1 सिख की टुकड़ी श्रीनगर एयरफील्ड पर उतरी और कश्मीर को घुसपैठियों से मुक्त कराने के लिए लड़ाई लड़ी.