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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद केस में सामने आया नया मोड़, कोर्ट ने स्वीकार की याचिका

काशी विश्वनाथ व ज्ञानवापी मस्जिद का मामला हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट, दोनों में ही चल रहा था. बाद में हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमा एक ही कोर्ट में चलेगा और सेशन कोर्ट में जारी रहेगा.

Updated on: 23 Mar 2021, 01:46 PM

highlights

  • काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद केस में आया नया मोड़
  • कोर्ट ने आदि विशेश्वर श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार वाली याचिका की स्वीकार

वाराणसी:

18  मार्च को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद केस में नया मोड़ सामने आ गया. वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन के कोर्ट ने आदि विशेश्वर श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार वाले याचिका को स्वीकार कर लिया है. आदि विशेश्वर मां श्रृंगार गौरी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन सहित कुल 9 लोगों ने वाराणसी के सिविल जज के कोर्ट में पूजा के अधिकार वाली याचिका को दाखिल किया था. वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र कुमार सिंह की कोर्ट ने इस मामले में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड से पक्ष मांगा था.

दोनों ने आपत्ति जताते हुए इस याचिका को खारिज करने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने उनके आपत्तियों को दरकिनार कर इस याचिका को स्वीकार कर लिया. आदि विशेश्वर श्रृंगार गौरी के पक्ष के वकील मनमोहन यादव ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद-25 में पूजा स्थल पर हिंदुओं के पूजन-दर्शन को उनका मौलिक अधिकार में शामिल किया है. इसी अनुच्छेद के तहत ज्ञानवापी मस्जिद को हटाकर वहां स्थापित मंदिरों में पूजा के अधिकार के लिए अनुमति मांगी गई है। जिस पर कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गई है. आदि विशेश्वर श्रृंगार गौरी वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दाखिल याचिका में केंद्रीय गृह सचिव, श्री विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, अंजुमन इंतजामिया, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, वाराणसी डीएम सहित कुल 8 लोगों को इसमें पार्टी बनाया गया है.

क्या चाहता था सुन्नी वक्फ बोर्ड
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस मामले को वाराणसी सिविल कोर्ट से लखनऊ ट्रिब्यूनल कोर्ट में सुनवाई करने की मांग रखी थी. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में नहीं हो सकती है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने 18 सितंबर को एक सिविल रिवीजन दाखिल किया था. स्वयंभू विशेश्वर का पक्ष जानने के लिए कोर्ट ने 28 सितंबर की तारीख दी थी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. इसी साल 25 फरवरी को वाराणसी की सिविल जज कोर्ट ने आदेश दिया था कि ये केस लोअर कोर्ट में ही चलेगा. मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को जिला न्यायाधीश की अदालत में चुनौती दी थी. मुस्लिम पक्ष की मांग है की मामले की सुनवाई सिविल कोर्ट की बजाय लखनऊ ट्रिब्यूनल कोर्ट में हो.

एएसआई से सर्वे कराना चाहता है मंदिर पक्ष  
मामला ज्ञानवापी परिक्षेत्र का धार्मिक स्वरूप का पता लगाने को लेकर है. स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की तरफ से एएसआई से सर्वे की मांग की गयी है. सर्वे कर पता लगाया जाना है की ज्ञानवापी परिक्षेत्र का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 को क्या था. मंदिर पक्ष का दावा है की मंदिर परिसर पर कब्जा कर मस्जिद बना दी गई. मुस्लिम पक्ष का दावा है की देश की आजादी के दिन विवादित परिसर का स्वरूप मस्जिद का था. अभी ज्ञानवापी परिक्षेत्र में काशी विश्वनाथ मंदिर और मस्जिद दोनों हैं. मंदिर पक्ष की तरफ से विजयशंकर रस्तोगी ने अदालत में अपना पक्ष रखा है. मुस्लिम पक्ष की तरफ से अंजुमन इंतजामिया मस्जिद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के लड़ रहा है.

काशी विश्वनाथ व ज्ञानवापी मस्जिद का मामला हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट, दोनों में ही चल रहा था. बाद में हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमा एक ही कोर्ट में चलेगा और सेशन कोर्ट में जारी रहेगा. मंदिर पक्ष की तरफ से पूरे ज्ञानवापी परिसर के एएसआई द्वारा भौतिक सर्वे कराने के लिए आवेदन दिया गया था. मुस्लिम पक्ष की तरफ से इस पर आपत्ति जताई गयी थी. मुस्लिम पक्ष का कहना था की हाईकोर्ट के 1998 में दिए गए आदेश के अनुसार इस मामले में स्टे लगा हुआ है. इससे जुड़े विवाद की सुनवाई वर्ष 1991 से जिले की अदालत में चल रही है. भगवान विश्वेश्वर के पक्षकारों की ओर से कहा गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का अंश है. 1991 के मुक़दमे में ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने की मांग की गयी थी. इस मुकदमे में वर्ष 1998 में हाई कोर्ट के  STAY  से सुनवाई स्थगित हो गई थी. मुकदमा दर्ज कराने वाले पंडित सोमनाथ व्यास और डॉ. रामरंग शर्मा की मौत हो चुकी है

हिंदुओं के एक धड़े का मानना है कि औरंगजेब ने 16वीं शताब्दी में विश्वनाथ मंदिर के साथ करीब 60 मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई थी. इस पक्ष में यह धड़ा कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी में रखे औरंगजेब के उस पत्र को पेश करते हैं, जिसे अप्रैल 1667 में लिखा गया था. दरअसल इस पत्र के मुताबिक औरंगजेब ने अपने सेनापति को आदेश दिया था कि वह विश्वनाथ का मंदिर तुड़वा दे.