न पक्ष समझ पा रहा है न विपक्ष, आख़िर शरद पवार के मन में चल क्या रहा है?
चाचा-भतीजे की ये मुलाक़ात एनसीपी में फूट को ख़त्म करने के लिए हो रही है. दोनों ही चाहते हैं कि पार्टी एक रहे, इसलिए मेल-मुलाक़ात का दौर चल रहा है.अजित चाहते हैं कि शरद पवार ख़ुद राजनीति से रिटायरमेंट ले लें और सुप्रिया केंद्र की राजनीति में आए.
नई दिल्ली:
पहले सुप्रिया सुले और फिर शरद पवार... 24 घंटे के अंदर बाप-बेटी के दिल में अजित पवार के लिए उमड़े प्यार ने महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर भूचाल ला दिया है. गुरुवार को सुप्रिया सुले ने पुणे में कहा कि अजित पवार हमारे सीनियर नेता हैं, वो एनसीपी के ही नेता हैं. इतना ही नहीं सुप्रिया सुले ने ये कहकर सबको हैरत में डाल दिया कि हमारी पार्टी में कोई टूट नहीं है, सब एक हैं, बस कुछ नेताओं ने अलग राह ली है. इसके अगले ही दिन शरद पवार ने भतीजे अजित पवार को अपना बताकर सुप्रिया सुले की बात पर मुहर लगा दी. शरद पवार ने भी हू-ब-हू वही बात कही जो एक दिन पहले बेटी ने कही थी. बारामती में सीनियर पवार ने कहा कि- 'अजित हमारे नेता हैं, पार्टी में किसी तरह का विभाजन नहीं हुआ. उन्होंने अलग रुख़ अपनाया है, लेकिन उसे फूट नहीं कहा जा सकता है. भतीजे के साथ किसी भी तरह के मतभेद को ख़ारिज करते हुए शरद पवार ने कहा कि लोकतंत्र में पार्टी के नेता अलग रुख़ अपना सकते हैं.
पहले सुप्रिया सुले और फिर शरद पवार के इस बयान को समझना पॉलिटिकल पंडितों के लिए भी मुश्किल हो रहा है. कोई नहीं समझ पा रहा है कि आख़िर शरद पवार के मन में चल क्या रहा है? हाल ही में शरद पवार और अजित पवार के बीच पुणे के एक उद्योगपति के घर सीक्रेट मीटिंग भी हुई थी. ये कोई पहली मुलाक़ात नहीं थी. बग़ावत के डेढ़ महीने के अंदर चाचा-भतीजे चार बार मिल चुके हैं, कभी चुपके तो कभी सार्वजनिक तौर पर. इस बीच न्यूज़ नेशन को सूत्रों के हवाले से पता चला है कि चाचा-भतीजे की ये मुलाक़ात एनसीपी में फूट को ख़त्म करने के लिए हो रही है. दोनों ही चाहते हैं कि पार्टी एक रहे, इसलिए मेल-मुलाक़ात का दौर चल रहा है. सूत्र ये भी बता रहे हैं कि अजित पवार चाहते हैं कि शरद पवार ख़ुद राजनीति से रिटायरमेंट ले लें और सुप्रिया सुले को केंद्र की राजनीति में सक्रिय करें. अजित पवार ख़ुद को राज्य की राजनीति तक ही रखना चाहते हैं। वैसे भी पांच बार उप मुख्यमंत्री रहे अजित पवार कई बार मुख्यमंत्री बनने की हसरत ज़ाहिर कर चुके हैं.
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पुणे की सीक्रेट मीटिंग पर सहयोगी दल उठा चुके हैं सवाल
इधर चाचा-भतीजे की मुलाक़ातों पर सहयोगियों को भी शक होने लगा है. महाविकास अघाड़ी के सहयोगी कांग्रेस और शिवसेना उद्धव गुट ने सवाल भी उठाए थे. पुणे वाली सीक्रेट मीटिंग के बाद तो ऐसी भी ख़बर आई थी कि अजित पवार ने चाचा शरद पवार को बीजेपी का बड़ा ऑफ़र दिया है. ये बात ख़ुद सीनियर कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण ने एक अंग्रेज़ी अख़बार से बातचीत में कही थी. चव्हाण के मुताबिक़ बीजेपी ने सीनियर पवार को केंद्र में कृषि मंत्री और नीति आयोग के अध्यक्ष का पद ऑफ़र किया था. बाद में ऐसी ख़बरें भी आईं कि सुप्रिया सुले को भी केंद्रीय मंत्री का पद ऑफ़र हुआ है। हालांकि सुप्रिया सुले ने इसे सिरे से नकार दिया था.
शरद पवार आखिर चाहते हैं क्या?
अब बाप-बेटी दोनों के बयान बिल्कुल एक होना, संयोग तो नहीं ही कहा जा सकता है. उस भतीजे से इतनी नज़दीकि जिसने पार्टी ही तोड़ दी, ये बात किसी के गले नहीं उतर रही है. राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि शरद पवार ज़रूर कुछ बड़ा खेल करने वाले हैं. ये शक इसलिए भी गहरा रहा है क्योंकि पार्टी टूटे दो महीने होने जा रहे हैं और अभी तक एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि वो अजित पवार या बग़ावत कर गए दूसरे नेताओं से कोई दूरी बना रहे हों. न ही पार्टी को फिर से जोड़ने की कोई कोशिश दिखी. मामला भले ही चुनाव आयोग में हो, लेकिन सीनियर पवार पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर भी कोई ख़ास सीरियस नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या पिछले दिनों जो कुछ हुआ वो शरद पवार के इशारे पर ही हुआ? कहीं उनके बदले तेवर बीजेपी के साथ जाने का इशारा तो नहीं है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच पर पहुंचकर शरद पवार ने इन अटकलों को हवा तो ज़रूर दे दिया है, वो भी तब, जब सहयोगी दल रोकते रह गए.
शरद पवार के इस रवैये से विपक्ष भी कन्फ्यूज
हालांकि, इसका दूसरा पहलू भी हो सकता है. ऐसा भी माना जा रहा है कि शरद पवार की इस चाल के पीछे भी कोई अलग रणनीति हो सकती है. हो सकता है कि पवार ऑल इज़ वेल का जाप इसलिए भी कर रहे हों ताक़ि पार्टी में और कोई टूट न हो. इतना ही नहीं अपने कोर वोटरों तक भी यह संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहे हों कि पार्टी और परिवार में कोई फूट नहीं है, सब एक हैं. इधर 30-31 अगस्त को मुंबई में I.N.D.I.A की बैठक होनी है, लेकिन उससे पहले शरद पवार के रवैये ने विपक्षी दलों की धड़कनें तेज़ कर दी है. हक़ीक़त क्या है वो तो पवार ही जानते हैं, लेकिन इतना तो तय है कि पवार जो कह और कर रहे हैं उससे पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए कन्फ्यूजन वाली स्थिति पैदा हो गई है. कुल मिलाकर इस मराठा क्षत्रप को समझना नामुमकिन सा बन गया है.
सरोज कुमार की रिपोर्ट
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