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लक्षद्वीप का आखिर क्या है मामला? जानिए क्यों मचा है सियासी बवाल

अरब सागर में बसे भारत के एक हिस्से लक्षद्वीप में इन दिनों सियासी बवाल मचा हुआ है. जिसकी वजह वहां के प्रशासक  प्रफुल्ल पटेल द्वारा लाए गए नए नियम हैं.

Updated on: 01 Jun 2021, 12:47 PM

highlights

  • लक्षद्वीप के प्रशासक को हटाने की मांग
  • प्रफुल्ल पटेल हैं लक्षद्वीप के प्रशासक
  • विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा

नई दिल्ली:

अरब सागर में बसे भारत के एक हिस्से लक्षद्वीप में इन दिनों सियासी बवाल मचा हुआ है. जिसकी वजह वहां के प्रशासक  प्रफुल्ल पटेल द्वारा लाए गए नए नियम हैं. इन कानूनों को लेकर जहां लक्षद्वीप वासियों में कई आशंकाएं हैं तो इनके खिलाफ लोगों का गुस्सा भी बढ़ने लगा है. साथ ही तमाम विपक्षी राजनीतिक दल भी इन कानूनों को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को निशाना बना रहे हैं. देशभर में विपक्षी दल के नेता लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल को हटाने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए तमाम विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र भी लिखा है. विरोधी इसे लक्षद्वीप की संस्कृति में अनावश्यक सरकारी दखल और आरएसएस एजेंडे को लागू करने का आरोप लगा रहे हैं.

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लक्षद्वीप के बारे में जानिए

लक्षद्वीप भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित राज्य है. लक्षद्वीप एक द्वीपसमूह है, जिस पर 36 द्वीप हैं. इसे भारत का मालदीव भी कहा जाता है, क्योंकि यहां सुंदर, मनोहरी और सूरज से चमकते समुद्र तय हैं. साथ में यहां हरे भरे प्राकृतिक नजारे देखने को मिलते हैं. लक्षद्वीप की राजधानी करवत्ती है. लक्षद्वीप में लगभग 75 से 80 हजार लोग रहते हैं. यह क्षेत्र सामाजिक व सांस्कृतिक तौर पर केरल के नजदीक है और इसे रणनीतिक तौर पर भारत के लिए बेहद अहम माना जाता है.

प्रावधानों में क्या है?

दरअसल, केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में वहां के प्रशासक प्रफुल्ल भाई पटेल ने कुछ प्रावधान बनाए हैं. इनमें पहला है- लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021. इस मसौदे में प्रशासक को विकास के उद्देश्य से किसी भी संपत्ति को जब्त करने और उसके मालिकों को स्थानांतरित करने या हटाने की अनुमति होगी. मसौदे को इस साल जनवरी में पेश किया गया था. दूसरा मसौदा है- असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम के लिए प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टीविटीज (PASA) एक्ट. इसके तहत किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से गिरफ्तारी का खुलासा किए बिना सरकार द्वारा उसे एक साल तक हिरासत में रखने की अनुमति होगी.

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तीसरा मसौदा पंचायत चुनाव अधिसूचना से जुड़ा हुआ है. इसके तहत दो बच्चों से ज्यादा वालों को पंचायत चुनाव की उम्मीदवारी से बाहर किया जा सकता है. यानी ऐसे व्यक्ति को पंचायत चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं होगी, जिसके दो से ज्यादा बच्चे हैं. चौथा मसौदा है- लक्षद्वीप पशु संरक्षण विनियमन. इस मसौदे के तहत स्कूलों में मांसाहारी भोजन परोसने पर प्रतिबंध और गोमांस की बिक्री, खरीद या खपत पर रोक का प्रस्ताव है. पांचवा मसौदा है- शराब पर प्रतिबंध हटाना. इसके तहत शराब के सेवन पर रोक हटाई गई है. बताया जाता है कि अभी इस द्वीप समूह के केवल बंगरम द्वीप में ही शराब मिलती है, मगर वहां कोई स्थानीय आबादी नहीं है. ऐसे में अब द्वीप के कई अंचलों से शराब पर प्रतिबंध हटाया गया है.

विवाद क्यों है?

हालांकि इन प्रस्तावों से लोग डर हुए हैं. खासकर लोगों में लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 से खौफ है तो लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथारिटी रेगुलेशन (असामाजिक गतिविधि विनियमन विधेयक, 2021) को लेकर गुस्सा है. लोगों को डर है कि इन कानूनों से आने वाले समय में उनकी जमीनें छीनी जा सकती हैं. जबकि नए कानूनों के विरोध में खड़े होने वाले लोगों को चुप कराने के लिए यह अधिनियम (असामाजिक गतिविधि विनियमन विधेयक, 202) लाया जा रहा है. इसके अलावा आरोप यह भी लग रहे हैं कि सरकार ने निर्वाचित जिला पंचायत की स्थानीय प्रशासनिक शक्तियों का नियंत्रण भी अपने हाथ में ले लिया है. नया प्रस्ताव पंचायत नियमों में भी बदलाव लाएगा और दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को पंचायत चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य बना देगा.

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गोमांस पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव का भी विरोध किया जा रहा है. इसके पीछे की भी एक वजह है, क्योंकि द्वीपसमूह की लगभग 96 फीसदी आबादी मुस्लिम है और बीफ ही इनका मुख्य भोजन है. फिर भी मिड डे मील को शुद्ध शाकाहारी कर दिया गया है. आरोप है कि प्रशासक इन कानूनों के जरिए लक्षद्वीप की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं. आम जनता भी इन सभी कानूनों को वापस लेने की मांग कर रही है.

कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल विरोध में आए

अब इन दिशानिर्देशों के खिलाफ लक्षद्वीप में शुरू हुआ विरोध देश की मुख्यभूमि तक पहुंच गया है. कांग्रेस, एनसीपी और माकपा समेत तमाम विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं. विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को खत लिखकर प्रशासन प्रफुल्ल पटेल को हटाने की मांग की है. यहां तक की केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने लक्षद्वीप की जनता के साथ एकजुटता प्रकट करते हुए विधानसभा में भी प्रस्ताव पेश कर दिया. विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि लक्षद्वीप के प्रशासक वहां आरएसएस का ऐजेंडा लागू करना चाहते हैं.

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प्रफुल्ल पटेल 2020 में प्रशासक बने

आपको बता दें कि गुजरात के पूर्व मंत्री प्रफुल्ल पटेल को दिसंबर 2020 में लक्षद्वीप का प्रशासक बनाया गया था. तत्कालीन प्रशासक दिनेश्वर शर्मा के निधन बाद उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई थी. दिनेश्वर शर्मा इस द्वीपसमूह के 34वें प्रशासक नियुक्त किए गए थे. 2020 में फेफड़ों की समस्या के चलते उनका निधन हो गया था. उल्लेखनीय है कि प्रफुल पटेल विवादित शख्सियत के रूप में जाने जाते रहे हैं. इससे पहले भी वह कई बार विवादों में आ चुके हैं. प्रफुल्ल पटेल को नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है. गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री रहते वह उनकी सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे.