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ये हैं कृषि कानून को लेकर किसानों के विरोध का कारण और भय 

केन्द्र सरकार सितंबर महीने में 3 नए कृषि विधेयक ला आई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे अब कानून बन चुके हैं. लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं.

Updated on: 09 Dec 2020, 08:34 AM

नई दिल्ली:

कृषि बिल को लेकर किसानों का सरकार के साथ गतिरोध बरकरार है. किसान और सरकार के बीच में अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है. किसान तीनों कृषि बिलों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं. केन्द्र सरकार सितंबर महीने में 3 नए कृषि विधेयक ला आई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे अब कानून बन चुके हैं. लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं. किसानों का कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा. इसके साथ किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाने का भी डर सता रहा है.

किसानों के डर का कारण 

1. दरअसल केंद्र सरकार "एक देश एक मंडी" बनाने पर जोर दो रही है. इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है. सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे. दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि सरकार किसी विशेष वर्ग उद्योगपतियों के लिए व्यापार का सरलीकरण कर रही है जिससे उन्हें इसका लाभ मिल सके. केंद्र ने नए कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. इसके जरिये बड़े कॉर्पोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं.

2. केंद्र सरकार आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक पास किया है. इस विधेयक के बाद यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है. यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है. इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी. किसानों का कहना है कि इससे जमाखोरी बढ़ जाएगी. मतलब कितना भी जमा करो कोई नहीं पूछेगा जब मर्जी हो तब बाजार में निकालो. 

3. कांट्रेक्ट फार्मिंग यानि संबिदा खेती को लेकर भी सरकार ने नया कानून बना दिया है. इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा. दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि परंपरा गत खेती की जगह संबिदा खेती का मतलब बड़ी कंपनियां सीधे तौर पर इसका फायदा उठाएंगी. वही हमें बताएंगी कि हमें किया बोना है. अपनी शर्तों पर फसल खरीदेंगी. कंपनी द्वारा संविदा की शर्तो का उल्लंघन किये जाने पर किसान अपनी शिकायत न्यायालय मे दर्ज नहीं करा सकता है, केवल उपखंड अधिकारी के यहाँ दर्ज करबा सकता है. ऐसे मे किसान की न्याय मिलने की उम्मीद ना के बराबर है. 
क्या हैं किसानों की मांगें?


किसानों की मांग 

– तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. इनसे होर्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा.

– एक विधेयक के जरिए किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन ​खरीद सिस्टम खत्म नहीं होगा.

– किसान संगठन कृषि कानूनों के अलावा बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003 की जगह लाए गए बिजली (संशोधित) बिल 2020 का विरोध किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है. इस बिल से किसानों को सब्सिडी पर या फ्री बिजली सप्लाई की सुविधा खत्म हो जाएगी.

– चौथी मांग एक प्रावधान को लेकर है, जिसके तहत खेती का अवशेष जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

– पंजाब में पराली जलाने के चार्ज लगाकर गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा जाए.