कौन हैं किरोरी सिंह बैंसला, जिनके एक इशारे पर रुक जाता है पूरा राजस्थान
राजस्थान में एक बार फिर गुर्जर आंदोलन शुरू हो गया है. गुर्जर समाज के लोगों ने पटरियों पर डेरा डाल लिया है. एक बार फिर किरोरी सिंह बैंसला को मनाने के लिए राजस्थान की सरकार ने कोशिश शुरू कर दी है.
जयपुर:
गुर्जर आरक्षण आंदोलन को लेकर राजस्थान एक बार फिर ठहर गया है. लोगों ने रेलवे लाइन पर कब्जा कर लिया है. कई ट्रेनों के रूट को बदल दिया गया है. पिछले दो दशकों में कई बार गुर्जर आरक्षण आंदोलन समय-समय पर सरकारों की धड़कनें बढ़ाता रहा है. राजस्थान में जब भी गुर्जर आंदोलन शुरू होता है तो किरोरी सिंह बैंसला का नाम जरूर सामने आता है. इस बार भी कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में गुर्जर पटरी पर बैठ गए हैं.
कौन हैं किरोरी सिंह बैंसला
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ. गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोरी सिंह ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर ही थी लेकिन पिता के फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज की तरफ थी. उन्होंने भी सेना में जाने का मन बना लिया. वह सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए. बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे और सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से वतन के लिए जौहर दिखाया.
सिपाही से कर्नल तक का सफर
किरोरी सिंह बैंसला एक पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे. उन्हें दो उपनामों से भी उनके साथी जानते थे. सीनियर्स उन्हें 'जिब्राल्टर का चट्टान' और साथी कमांडो 'इंडियन रेम्बो' कह कर बुलाते थे. वो किरोरी सिंह की जाबांजी ही थी कि सेना में मामली सिपाही के तौर पर भी तरक्की पाते हुए वह कर्नल की रैंक तक पहुंचे. बैंसला के चार संतान हैं. एक बेटी रेवेन्यु सर्विस और दो बेटे सेना में हैं और एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है. बैंसला की पत्नी का निधन हो चुका है और वे अपने बेटे के साथ हिंडौन में रहते हैं.
रिटायर होने के बाद शुरू किया गुर्जर आंदोलन
सेना से रिटाटर होने के बाद किरोरी सिंह राजस्थान लौट आए और गुर्जर समुदाय के लिए अपनी लड़ाई शुरू की. आंदोलन के दौरा कई बार उन्होंने रेल रोकी, पटरियों पर धरना दिया. आंदोलन को लेकर उन पर खई आरोप भी लगे. उनके आंदोलन में अब तक 70 से अधिक लोगों की मौत भी हो चुकी है. किरोरी सिंह कई बार कह चुके हैं कि उनके जीवन को मुगल शासक बाबर और अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, दो लोगों ने प्रभावित किया है. उनका कहना है कि राजस्थान के ही मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है और इससे उन्हें सरकारी नौकरी में खासा प्रतिनिधित्व मिला. लेकिन गुर्जरों के साथ ऐसा नहीं हुआ. गुर्जरों को भी उनका हक मिलना चाहिए.
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