जानिए...क्या है 'चौरी चौरा' कांड, जिस कारण गांधीजी को वापस लेना पड़ा था असहयोग आंदोलन
आज से ठीक 100 साल पहले 'चौरी चौरा' कांड घटित हुआ था. आज इस घटना के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा है, जिसका उद्धघाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे.
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आज से ठीक 100 साल पहले 'चौरी चौरा' कांड घटित हुआ था. आज इस घटना के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा है, जिसका उद्धघाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. नरेंद्र मोदी सुबह 11 बजे इसका उद्घाटन करेंगे. कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी 'चौरी चौरा कांड' पर एक डाक टिकट भी जारी करेंगे, जो आम लोगों को इस घटना की याद दिलाएगी. कार्यक्रम का आयोजन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है, जो अगले एक साल यानी 4 फरवरी 2022 तक राज्य के सभी 75 जिलों में जारी रहेगा. इसके तहत कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी.
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क्या है 'चौरी-चौरा' कांड ?
दरअसल, चौरी-चौरा की घटना 4 फरवरी, 1922 को ब्रिटिश शासन काल में तत्कालीन संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में हुई थी. इसमें असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह ओपन फायर कर रही पुलिस से भिड़ गया था. इससे पहले यह पता चलने पर की चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मार दिया है. जिसके बाद गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई थी. पुलिस की जवाबी कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने थाने पर हमला बोल दिया था.
12 फरवरी 1922 को गांधीजी ने वापस लिया था असहयोग आंदोलन
इस घटना के दौरान अंग्रजों के जुल्म से आक्रोशित लोगों ने स्थानीय थाने को फूंक दिया था. घटना में 23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए थे. जबकि 3 नागरिकों की भी मौत हो गई थी. हिंसा के सख्त खिलाफ महात्मा गांधी ने इस घटना के परिणामस्वरूप 12 फरवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. 16 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा था कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो अन्य जगहों पर भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिल सकती थीं. हालांकि गांधी जी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों ने नाराजगी जाहिर की थी.
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चौरी-चौरा कांड की पृष्ठभूमि 1857 के गदर से ही होने लगी थी तैयार
कहा जाता है कि चौरी-चौरा के इस घटना की पृष्ठभूमि 1857 के गदर से ही तैयार होने लगी थी. जंगे आजादी के पहले संग्राम (1857) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पूवार्ंचल के तमाम रजवाड़ों, जमीदारों (पैना, सतासी, बढ़यापार नरहरपुर, महुआडाबर) की बगावत हुई थी. इस दौरान हजारों की संख्या में लोग शहीद हुए. इस महासंग्राम में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल आवाम पर हुक्मरानों ने अकल्पनीय जुल्म ढाए. बगावत में शामिल रजवाड़ों और जमींदारों को अपने राजपाट और जमीदारी से हाथ धोना पड़ा. ऐसे लोग अवाम के हीरो बन चुके थे. इनके शौर्यगाथा सुनकर लोगों के सीने में फिरंगियों के खिलाफ बगावत की आग लगातार सुलग रही थी. उसे भड़कने के लिए महज एक चिन्गारी की जरूरत थी.
8 फरवरी 1920 को गांधीजी पहली बार पहुंचे थे गोरखपुर
ऐसे ही माहौल में उस क्षेत्र में महात्मा गांधी का आना हुआ. 1917 में वह नील की खेती (तीन कठिया प्रथा) के विरोध में चंपारण आए थे. उनके आने के बाद से पूरे देश की तरह पूर्वांचल का यह इलाका भी कांग्रेस मय होने लगा था. एक अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गांधीजी कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बनकर उभरे. स्वदेशी की उनकी अपील का पूरे देश में अप्रत्याशित रूप से प्रभावित हुआ. चरखा और खादी जंगे आजादी के सिंबल बन गये. ऐसे ही समय 8 फरवरी 1920 को गांधी जी का गोरखपुर में पहली बार आना हुआ. बाले मियां के मैदान में आयोजित उनकी जनसभा को सुनने और गांधी को देखने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा था.
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चौरी-चौरा में जो हुआ वह इतिहास बन गया
उस समय के दस्तावेजों के अनुसार, यह संख्या 1.5 से 2.5 लाख के बीच रही होगी. उनके आने से रौलट एक्ट और अवध के किसान आंदोलन से लगभग अप्रभावित पूरे पूवार्ंचल में जनान्दोलनों का दौर शुरू हो गया. गांव-गांव कांग्रेस की शाखाएं स्थापित हुईं. वहां से आंदोलन के लिए स्वयंसेवकों का चयन किया जाने लगा. मुंशी प्रेम चंद (धनपत राय) ने राजकीय नार्मल स्कूल से सहायक अध्यापक की नौकरी छोड़ दी. फिराक गोरखपुरी ने डिप्टी कलेक्टरी की बजाय विदेशी कपड़ों की होली जलाने के आरोप में जेल जाना पसंद किया. ऐसी ढ़ेरों घटनाएं हुईं. इसके बाद तो पूरे पूर्वांचल में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ माहौल बन चुका था. गांधी के आगमन के बाद 4 फरवरी 1922 को गोखपुर के एक छोटे से कस्बे चौरी-चौरा में जो हुआ वह इतिहास बन गया.
(इनपुट-आईएएनएस)
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