logo-image

विधानसभा बैठकों के मामले में केरल शीर्ष पर, बाकी राज्यों की यह रही रेटिंग

केरल में 2016 से एलडीएफ यानी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है. अब जिस रिकॉर्ड का सेहरा उसके सिर बंधा है, उसकी एक और उपलब्धि भी 2021 में बनी है. 2021 में केरल विधानसभा ने 144 अध्यादेशों की घोषणा की.

Updated on: 30 Jul 2022, 03:35 PM

highlights

  • 2021 में केरल विधानसभा सत्र में कुल 61 दिन काम हुआ
  • उसके बाद ओडिशा, कर्नाटकऔऱ तमिलनाडु का नंबर

नई दिल्ली:

संसद ही नहीं विभिन्न राज्यों के विधानसभा (State Assembly) सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ते हैं. फिर भी कुछ राज्य ऐसे हैं, जो विधानसभा सत्र और उस दौरान होने वाले कामकाज के मामले में मिसाल पेश करते हैं. केरल (Kerala) विधानसभा का ही उदाहरण लें. कोरोना कहर के पहले चरण में ठप पड़ी जिंदगी की वजह से 2020 में विधानसभा सत्र की बैठकों के लिहाज से देश भर में केरल आठवें स्थान पर था. अब वह फिर शीर्ष पर लौट आया है. 2021 में केरल विधानसभा सत्र में कुल 61 दिन काम हुआ, जो समग्र देश में सबसे अधिक है. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि 2021 में भी कोरोना (Corona Epidemic) की दूसरी लहर अपने चरम पर थी. यही नहीं 2016 से 2019 के बीच भी केरल विधानसभा बैठकों के मामले में शीर्ष पर रहा. इस अवधि में औसतन 53 दिन सत्र चला. यह आंकड़े पीआरएसइंडिया डॉट ऑर्ग ने जुटाए हैं. 

144 विधेयकों की केरल विधानसभा में घोषणा
केरल में 2016 से एलडीएफ यानी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है. अब जिस रिकॉर्ड का सेहरा उसके सिर बंधा है, उसकी एक और उपलब्धि भी 2021 में बनी है. 2021 में केरल विधानसभा ने 144 अध्यादेशों की घोषणा की. संख्या के लिहाज से यह भी देश में सबसे ज्यादा हैं. प्रख्यापित अध्यादेश के तहत राज्य सरकार कुछ नियमों की घोषणा कर देती है. ऐसा तब किया जाता है जब विधानसभा के दो सत्रों के बीच समय होता है और उस अवधि में कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं. 

यह भी पढ़ेंः  अब राजनीतिक दल वोटर्स को नहीं बांट सकेंगे मुफ्त का सामान, वित्त आयोग ने लगाई रोक

विधानसभा बैठकों के लिहाज से शीर्ष तीन राज्य
दिल्ली के थिंक टैंक पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) ने 2021 के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश वार विधानसभा सत्र और उसमें हुए काम के आधार पर विभिन्न राज्यों की रेटिंग दी है. इसमें केरल शीर्ष पर है, जबकि उसके बाद ओडिशा (43 दिन), कर्नाटक (40 दिन) औऱ तमिलनाडु (34 दिन) का नंबर आता है. हालांकि शीर्ष तीन राज्य हालिया 21 दिन की बैठकों के पैमाने से काफी नीचे हैं. 28 विधानसभा और एक केंद्र शासित विधानसभा में 17 तो 20 दिन से कम समय के लिए आहूत हुई. इनमें भी पांच क्रमश आंध्र प्रदेश, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा औऱ दिल्ली में 10 दिन से कम बैठक हुईं. उत्तर प्रदेश, मणिपुर और पंजाब विधानसभा की क्रमशः 17, 16 और 11 बैठक रिकॉर्ड की गईं. 

विधानसभा बैठकों का पैमाना
पूर्व प्रधान न्यायाधीश एम एन वेंकटलैया की अध्यक्षता में गठित आयोग ने 2000-02 में संवैधानिक कार्यों की समीक्षा की थी. इसके बाद उन्होंने एक रिपोर्ट दी थी. इसके तहत 70 से कम सदस्यों वाली विधानसभा, उदाहरण के लिए पुडुचेरी विधानसभा के लिए साल में कम से कम 50 दिन का विधायी सत्र जरूरी है. तमिलनाडु सरीखे अन्य राज्यों के लिए साल में 90 दिन की विधानसभा बैठक जरूरी है. गौरतलब है कि 50 दिन की विधानसभा बैठकों वाली श्रेणी में 10 राज्य आते हैं, जबकि दूसरी श्रेणी में 20 राज्यों की विधानसभा आती हैं. 

यह भी पढ़ेंः Parliament Monsoon Session: हंगामे की भेंट चढ़े Taxpayers के 100 करोड़

पीठासीन अधिकारियों ने 60 दिन का दिया था सुझाव
जनवरी 2016 में गांधीनगर, गुजरात में पीठासीन अधिकारियों की कांफ्रेस में सुझाव दिया गया कि राज्यों की विधानसभा के लिए कम से कम 60 दिन की बैठक जरूरी है. इसके बावजूद पीआरएस के आंकड़े बताते हैं 2016 से 2021 के बीच 23 राज्यों की विधानसभाओं की औसत विधानसभा बैठक 25 दिन ही रही. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक विशेष परिस्थितयों में राज्य विधानसभा अध्यादेश जारी कर सकती हैं. इस लिहाज से देखें तो केरल के बाद आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र ने 15 अध्यादेशों की घोषणा की.