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1947 से शुरू हो गया था कश्मीरी हिंदू-सिखों का कत्लेआम, POJK था नरसंहार का केंद्र

भारत के विभाजन के समय आज के पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों (पीओजेके) में एक संपन्न हिंदू और सिख आबादी थी. आज वहां एक भी हिंदू या सिख नहीं मिलेगा.

Updated on: 20 Mar 2022, 09:51 AM

highlights

  • पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में नहीं है एक भी हिंदू-सिख
  • पाकिस्तानी सेना औऱ लश्कर ने 1 लाख 14 हजार हिंदुओं को मारा
  • महिलाओं को रावलपिंडी, झेलम और पेशावर के बाजारों में बेचा गया

नई दिल्ली:

भारत में रिलीज हुई फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) पाकिस्तान प्रायोजित जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और अन्य जिहादी संगठनों द्वारा कश्मीर की घाटी में परदे के पीछे और स्थानीय इस्लामवादियों की एक बड़ी संख्या के अनुरूप किए गए अत्याचारों को उजागर करने का एक साहसी प्रयास है. 1990 के दौरान कश्मीर में रहने वाले स्वदेशी हिंदू अल्पसंख्यक के खिलाफ अत्याचारों को अंजाम दिया गया और घाटी से लगभग 500,000 कश्मीरी हिंदू पंडितों का नरसंहार और जबरन पलायन हुआ. हालांकि फिल्म जो दिखाती है, वह प्याज की ऊपरी परत ही है. सच तो यह है कि कश्मीरी हिंदुओं (Kashmiri Pandits) का नरसंहार 1990 में घाटी में शुरू नहीं हुआ था. इस पर तो 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सेना ने स्वतंत्र राज्य जम्मू और कश्मीर पर हमला बोलने के साथ ही अंजाम देना शुरू कर दिया था.

पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में नहीं बचा एक हिंदू-सिख
भारत के विभाजन के समय आज के पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों (पीओजेके) में एक संपन्न हिंदू और सिख आबादी थी. नीचे दी गई तालिका 1941 में पीओजेके के कई जिलों में हिंदू और सिख जनसांख्यिकी का विवरण देती है. स्नेडेन द्वारा किए गए और 2012 में प्रकाशित एक सर्वेक्षण में उल्लेख किया गया है कि इस क्षेत्र में आज हिंदुओं या सिखों का कोई नहीं बचा है. पूरी आबादी को या तो निष्कासित कर दिया गया या मार दिया गया. शोध विद्वानों द्वारा व्यापक रूप से उद्धृत रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि वे पीओजेके के पूरे क्षेत्र में एक भी हिंदू या सिख को खोजने में सक्षम नहीं थे. ऐसा अनुमान है कि 1947 में पीओजेके पर आक्रमण के दौरान और उसके बाद पीओजेके से लगभग 1,22,500 हिंदू और सिख लापता हो गए थे.

पाकिस्तानी सेना और लश्कर के कट्टरपंथियों ने ढाया जुल्म
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हजारों हिंदू और सिख पंजाब में सांप्रदायिक दंगों से भाग गए थे और उन्होंने पंजाब की सीमा से लगे आज के पीओजेके शहरों में शरण ली थी. इसके परिणामस्वरूप 1947 में पीओजेके में हिंदुओं और सिखों की संख्या बढ़ गई. उदाहरण के लिए भीमबेर को कम से कम 2000, मीरपुर को 15,000, राजौरी को 5,000 और कोटली को हिंदू और सिख शरणार्थियों की एक बेहिसाब आबादी मिली. भिंबर तहसील में हिंदू आबादी 35 फीसदी थी. 1947 के पाकिस्तान प्रायोजित हिंदू-सिख नरसंहार से कोई नहीं बचा है, लेकिन जानकारी के लिए सबसे बुरा अत्याचार मीरपुर में किया गया था. वहां 25,000 हिंदुओं और सिखों को घेर लिया गया, विकृत कर दिया गया, गोली मार दी गई और 'अल्लाह ओ' अकबर' का नारा लगाते हुए हमारी महिलाओं के साथ द्वारा पाकिस्तानी सेना और लश्कर के धार्मिक कट्टरपंथी सदस्यों द्वारा दुष्कर्म किया गया.

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मीरपुर ने देखा सबसे ज्यादा अत्याचार
अब भी 25 नवंबर को उन लोगों के परिवार के सदस्यों द्वारा मीरपुर (नरसंहार) दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो जम्मू पहुंचने में कामयाब हो गए थे. 1947 में उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन पर पाकिस्तानी सेना और भाड़े के कबायली लश्कर ने शहर के कई हिस्सों में आग लगाकर मीरपुर में प्रवेश किया, 'काफिर' की दुकानों और घरों को जला दिया. मीरपुर के पतन से कुछ दिन पहले 2,500 हिंदू और सिखों का एक काफिला जम्मू कश्मीर के राज्य सैनिकों के साथ भागने और सुरक्षित रूप से जम्मू पहुंचने में कामयाब रहा था. जो लोग पीछे रह गए थे, उन्हें घेर लिया गया और अली बेग तक मार्च किया गया, जहां हमलावरों ने कहा कि एक गुरुद्वारा को शरणार्थी शिविर में बदल दिया गया है.

हिंदू-सिख महिलाएं की बाजारों में लगी बोली
जिसे सुरक्षा के लिए मार्च माना जाता था, वह जल्द ही मौत के जुलूस में बदल गया, क्योंकि पाकिस्तानी सेना और भाड़े के लश्कर के सदस्यों ने रास्ते में 10,000 से अधिक हिंदू और सिख मारे. उन्होंने 5,000 और महिलाओं का अपहरण कर लिया, जिनमें से अधिकांश रावलपिंडी, झेलम और पेशावर के बाजारों में बेची गईं. 25,000 हिंदू और सिख बंदियों में से केवल 5,000 ने ही अली बेग को जगह दी. हालांकि बंदी पुरुषों और महिलाओं की हत्या और दुष्कर्म उनके जेल प्रहरियों द्वारा बेरोकटोक जारी रहा. रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति द्वारा बाद में केवल 1,600 को बचाया गया, जो बचे लोगों को रावलपिंडी लाए और जम्मू स्थानांतरित कर दिया.

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द कश्मीर फाइल्स तो सिर्फ ऊपरी परत ही दिखाती है
1951 तक पीओजेके में 1,14,000 हिंदू और सिख की कुल आबादी में से केवल 790 गैर-मुस्लिम जीवित थे. आज कोई नहीं है. मीरपुर नरसंहार में मरने वालों की संख्या 20,000 से अधिक बताई गई है. कई महिलाओं ने जहर खाकर या चट्टान से कूदकर आत्महत्या कर ली. इसी तरह कई पुरुषों ने भी आत्महत्या की. हिंदुओं का नरसंहार राजौरी, बारामूला, मुजफ्फराबाद, भिंबर में दोहराया गया था और कश्मीर में आज भी जारी है. फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने हाल ही में बर्फीले पहाड़ की चोटी का खुलासा किया है. हिंदू नरसंहार की भयावहता सिल्वर स्क्रीन की तुलना में कहीं अधिक गहरी और भयावह है.