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गिरिडीह में 84 सालों से बंद है वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की तिजोरी

गिरिडीह भी तब बंगाल प्रेसिडेंसी के अंतर्गत ही था. यहां जगदीश चंद्र बोस के रिश्तेदार रहते थे.

Updated on: 01 Dec 2021, 02:32 PM

रांची:

यूं तो कहने को यह आज भी विज्ञान भवन है, लेकिन महान वैज्ञानिक की निशानियों और उनसे जुड़े धरोहरों को सहेजने की दिशा में इसके बाद कोई ठोस पहल नहीं हुई है. महान वैज्ञानिक से संबंधित कई निशानियां नष्ट भी हो गयीं. आज भी इस भवन में बोस की कई तस्वीरें, उन्हें जीवन काल में मिले विभिन्न तरह के सम्मान और उनके आविष्कारों की मान्यताओं से संबंधित दस्तावेज भी इस भवन में मौजूद हैं, लेकिन इन्हें कायदे से सहेजने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई है. सबसे ज्यादा जिज्ञासा इस भवन में मौजूद तिजोरी को लेकर है. जगदीश चंद्र बोस पर किताब लिख रहे और गिरिडीह में मौजूद उनसे जुड़े धरोहरों के संरक्षण के लिए सरकारों का ध्यान आकृष्ट कराने वाले स्थानीय पत्रकार रितेश सराक बताते हैं जिला प्रशासन ने पिछले दशक में दो बार इसे खोलने की योजना बनायी. 

प्राप्त जानकारी के मुताबिक तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल को गिरिडीह आमंत्रित किया जाये और उन्हीं के हाथों यह तिजोरी खुलवायी जाये, लेकिन बात आयी-गयी हो गयी. भवन में एक ओर सूक्ष्म तरंग डिटेक्टर की प्रतिकृति का मॉडल है, तो दूसरी तरफ केस्कोग्राफ की प्रतिकृति का मॉडल. इन दोनों का आविष्कार बोस ने ही किया था. बोस की खोज केस्कोग्राफ वह यंत्र है, जिससे पता चला था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है. यहां जगदीश चंद्र बोस की बाल्यावस्था, युवावस्था के साथ-साथ शोध और अनुसंधान के दौरान उनकी विभिन्न गतिविधियों से संबंधित तस्वीरें रखी गयी हैं. उनके माता-पिता सहित परिवार के अन्य सदस्यों और उनके दोस्तों की तस्वीरें भी यहां मौजूद हैं. तस्वीरें बताती हैं कि उनके निधन के बाद उनके अंतिम दर्शन को भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी.

जगदीश चंद्र बोस ने अपने जीवन में फिजिक्स, बायोलॉजी और बॉटनी में कई सफल शोध किए. इटली के वैज्ञानिक गुल्येल्मो माकोर्नी को रेडियो का आविष्कारक माना जाता है, लेकिन बोस पर लिखे गये कई आर्टिकल्स में यह कहा गया है कि उन्होंने माकोर्नी से पहले रेडियो का आविष्कार कर लिया था, पर उन्हें इसका श्रेय नहीं मिला. माकोर्नी ने1901 में दुनिया के सामने पहली बार वह मॉडल पेश किया था, जिससे अटलांटिक महासागर के पार रेडियो संकेत प्राप्त हुआ था, लेकिन इससे पहले ही 1885 में जेसी बोस ने रेडियो तरंगों के बेतार संचार को प्रदर्शित किया था. 

जगदीश चंद्र बोस अपने इस आविष्कार का पेटेंट हासिल नहीं कर सके और रेडियो के आविष्कार का श्रेय माकोर्नी को मिल गया. इसके लिए उन्हें 1909 में नोबेल पुरस्कार भी मिला. इसके बाद ही जेसी बोस पेड़-पौधों के अध्ययन में लग गये. उन्होंने दुनिया को बताया पेड़-पौधे इंसानों की तरह सांस लेते हैं और दर्द को महसूस कर सकते हैं. उनके इस प्रयोग ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों को हैरान करके रख दिया. उन्होंने पौधों की वृद्धि को मापने के लिए 'क्रेस्कोग्राफ' का आविष्कार किया था. कौन जानता है कि गिरिडीह में उनकी 84 वर्षों से बंद तिजोरी में किसी अत्यंत महत्वपूर्ण रिसर्च से जुड़े साक्ष्य हों या फिर कुछ ऐसा हो, जिसके सामने आने से दुनिया चमत्कृत हो जाये.