चीन को मंदी का डर? अमेरिका से हाथ मिलाने को मजबूर हुआ ड्रैगन? 

क्या चीन बर्बाद होने वाला है? क्या चीन की गिरती हुई अर्थव्यवस्था दुनिया में मंदी लाएगी? क्या चीन अब अपने रुख को बदल रहा है? ये तमाम सवाल इसलिए क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था अब उस मोड़ पर पहुंचती दिख रही है, जहां से वापस लौटना उसके लिए बेहद कठिन होगा.

क्या चीन बर्बाद होने वाला है? क्या चीन की गिरती हुई अर्थव्यवस्था दुनिया में मंदी लाएगी? क्या चीन अब अपने रुख को बदल रहा है? ये तमाम सवाल इसलिए क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था अब उस मोड़ पर पहुंचती दिख रही है, जहां से वापस लौटना उसके लिए बेहद कठिन होगा.

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Deepak Pandey
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xi jinping

xi jinping( Photo Credit : File Photo)

क्या चीन बर्बाद होने वाला है? क्या चीन की गिरती हुई अर्थव्यवस्था दुनिया में मंदी लाएगी? क्या चीन अब अपने रुख को बदल रहा है? ये तमाम सवाल इसलिए क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था अब उस मोड़ पर पहुंचती दिख रही है, जहां से वापस लौटना उसके लिए बेहद कठिन होगा. चीन में भारी बेरोजगारी है, करोड़ों की तादाद में रेडी टू मूव घर खाली पड़े हैं और उस पर भारी-भरकम लोन चढ़ चुका है. अब ऐसे में चीन न केवल नेपाल से लेकर श्रीलंका तक में अपनी पैठ बढ़ा रहा है, आर्थिक सहयोग विकसित कर रहा है बल्कि अपने चिर विरोधी अमेरिका की ओर भी दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है. लेकिन ये सब करने के बाद भी क्या चीन कामयाब हो पाएगा? चलिए समझने की कोशिश करते हैं.

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क्या है चीन की वर्तमान स्थिति?

चीन के प्रॉपर्टी सेक्टर में भारी गिरावट देखी जा रही है. चीन सरकार के एक पूर्व अधिकारी ने भी अपनी सरकार की आलोचना की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, NBS के पूर्व सीनियर ऑफिसर हे केंग ने कहा है कि देश में करोड़ों घर खाली पड़े हैं. ये आंकड़ा कितना है, कोई ठीक से नहीं कह पा रहा लेकिन माना जा रहा है कि तीन सौ करोड़ लोग इन घरों में रह सकते हैं. चीन का एक शहर है डोंग-गुआन. यहां पर केंग ने कहा था जितने घर खाली हैं वो चीन की आबादी से भी दोगुने हैं. उन्होंने कहा कि भले ही ये आंकड़ा काफी अधिक हो लेकिन चीन की पूरी 140 करोड़ की आबादी भी इन घरों को पूरा नहीं भर सकती. नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिक्स यानी NBS की रिपोर्ट बताती है कि 64.8 करोड़ वर्ग मीटर फ्लोर एरिया वाले घर बिना बिके पड़े हैं. यानी 90 स्क्वायर मीटर वाले 72 लाख घर. ये आंकड़ा अगस्त 2023 का है. ये प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं लेकिन लोगों के पास पैसे नहीं हैं जो इन्हें खरीद सकें. हालांकि इससे पहले चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि चीन की अर्थव्यवस्था लचीली है और खतरे में नहीं है. ऐसी टिप्पणियां वक्त वक्त पर आती रहती हैं, लेकिन लोगों को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक केंग का ये बयान सरकार के बयानों से बिल्कुल उल्टी दिशा में है.

क्या है चीन के रियल एस्टेट सेक्टर का हाल?

आपको बता दें कि चीन का रियल एस्टेट सेक्टर भारी परेशानी से जूझ रहा है. ये परेशानी शुरू हुई थी महामारी के दौरान. चीन में घरों की मांग गिर चुकी है और इस वजह से प्रॉपर्टी की कीमतें भी. माना जा रहा है कि ये संकट इतना बड़ा है कि इसे सही होने में कई साल भी लग सकते हैं. पिछले करीब 30 सालों में चीन की अर्थव्यस्था ने तरक्की और सफलता हासिल की. इस दौरान चीन में बड़े पैमाने पर निर्माण के काम किए गए. इससे वहां रोजगार पैदा हुए. लोगों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिली, लेकिन अब निर्माण का ये मॉडल पुराना पड़ने लगा है. जानकारों का मानना है कि चीन को व्यापार पर, सर्विस सेक्टर पर ध्यान देना होगा और नियमों को आसान बनाना होगा. लेकिन चीन की सरकार ऐसा करती नहीं दिख रही. हाल ही में चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रैंड ने अमेरिका में दिवालिया अर्जी दाखिल की थी. 

चीन में बेरोजगारी की क्या स्थिति है?

रिपोर्ट बताती है कि देश में बेरोजगारी चरम पर है. जुलाई 2023 के आंकड़े बताते हैं कि 16 से 25 साल के बीच के 21.3 प्रतिशत युवा नौकरी तलाश कर रहे हैं. यानी बेरोजगारी दर 21 फीसद से अधिक है. ये खबर इतनी बड़ी सुर्खी बनी कि चीन की सरकार ने रोजगार के आंकड़े देने ही बंद कर दिए. यही नहीं चीन के 40 फीसदी लोग अभी भी गावों में रहते हैं. यानी एक बड़ा तबका ऐसा है जो विकास से वंचित है. आपको बता दें कि 90 के दशक से अब तक चीन की औसत विकास दर करीब 9 फीसद रही है, लेकिन अब 2023 में ये विकास दर साढ़े चार फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है. चीन का निर्यात अब कम हो रहा है. हालांकि. चीन को अभी भी व्यापार घाटे का सामना नहीं करना पड़ा है. जून 2023 में चीन ने 285 अरब डॉलर का निर्यात किया और 215 अरब डॉलर का आयात किया. साल दर साल के आधार पर देखें तो चीन के निर्यात में 14 फीसद की गिरावट आई है. अब या तो दुनिया चीन का सामान कम खरीद रही है या फिर उसे नए निर्यातक मिल गए हैं. हो सकता है कि आने वाले वक्त में चीन से होने वाला निर्यात और भी कम हो जाए. 

सिंगल चाइल्ड पॉलिसी से नुकसान?

एक बात ये भी समझनी होगा कि चीन या कोई और देश में विकास दर हमेशा एक जैसी नहीं रह सकती. चीन के पास अब वर्क फोर्स की भी कमी है. वहां सिंगल चाइल्ड पॉलिसी से काफी नुकसान हुआ है. चीन पर कर्ज भी जीडीपी की तुलना में काफी है. चीन पर जीडीपी की तुलना में 282 प्रतिशत कर्ज है. चीन ने दुनिया के कई देशों को कर्ज दिए हैं, लेकिन इसका खुद उसकी अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा असर हुआ है. अब चीन में अगर आर्थिक मंदी आती है या स्लोडाउन आता है तो इसका असर उसके सहयोगी देशों पर भी होगा. चीन में मांग घटेगी तो भी इसका असर उन देशों पर होगा जो चीन को निर्यात करते हैं. चीन में औद्योगिक उत्पादन भी घट रहा है. यानी एक ओर वहां रियल एस्टेट संकट है, बेरोजगारी है, निर्यात कम हो रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार भी कंपनियों पर कार्रवाई कर रही है, नियमों को सख्त बना रही है और आयात भी कम कर रही है. 

अमेरिका से दोस्ती क्यों कर रहा चीन?

अब शायद चीन अपनी नीतियों में बदलाव चाह रहा है, और शायद इसीलिए नेपाल से लेकर अमेरिका तक से हाथ मिला रहा है. नेपाल के पीएम पुष्प कमल दहल प्रचंड सात दिनों के चीन दौरे पर हैं. इस दौरान उन्होंने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनके मुताबिक नेपाल और चीन कृषि से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तक में एक-दूसरे का सहयोग करेंगे. साथ ही नेपाल और चीन के बीच सड़क संपर्क भी बेहतर किया जाएगा. अब इस तथ्य को देखिए कि अमेरिका और चीन के डिप्लोमैट्स भी एक के बाद एक कई बार मुलाकात कर चुके हैं. इस दौरान न तो चीन के जासूसी गुब्बारों का जिक्र हुआ और न ही जो बाइडेन के बयानों का. शायद अमेरिका इस तथ्य को भी समझता है कि अगर चीन डूबा तो असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. क्योंकि चीन में मंदी आई तो दुनिया भर में मांग और आपूर्ति की चेन प्रभावित हो जाएगी. अब देखना ये होगा कि चीन और अमेरिका की बढ़ रही नजदीकियां क्या रंग दिखाएंगी. यानी चीन बेशक लाख बुरा हो लेकिन उसकी मंदी दुनिया भर को परेशान कर सकती है. उम्मीद है कि ये बात चीन की सरकार समझे और अपने देश पर ध्यान दे ताकि वहां के हालात, वहां की अर्थव्यवस्था बेहतर हो सके.

Source : News Nation Bureau

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