भारत के 'BBIN प्रोजेक्ट' के आगे नहीं टिकेगा चीन का 'BRI', साउथ एशिया में हमारी बादशाहत
बात बीआरआई की. जिसमें चीन विकास कार्यों को करने के नाम पर भारी भरकम कर्ज बांटकर देशों को आर्थिक गुलाम बना रहा है. अब बात बीबीआईएन की. बीबीआईएन का मतलब है बांग्लादेश-भूटान-नेपाल और इंडिया रोड प्रोजेक्ट.
highlights
- भारत का बीबीआईएन प्रोजेक्ट पड़ेगा चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट पर भारी
- भारत के पड़ोसी देशों को रेल-रोड परिवहन में होगी आसानी
- चीन कर्ज का जाल बुनता है, भारत सहयोग की भावना रखता है
नई दिल्ली:
चीन पूरी दुनिया में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI Project) के दम पर राज करना चाहता है. उसने भारत को भी इसमें शामिल होने का प्रलोभन दिया. लेकिन नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत सरकार ने इसका हिस्सा बनने से मना कर दिया. वो पाकिस्तान में सी-पैक परियोजना चला रहा है. म्यांमार में वो निवेश कर रहा है. लाओस में उसने निवेश किया. श्रीलंका में चीन का भारी निवेश है. मालदीव में भी हालात कमोवेश वैसे ही हैं. और इन देशों का क्या हाल है, वो दुनिया से छिपा नहीं है. हर देश चीन का भारी कर्जदार हो कर रह गया है. लेकिन भारत अपने पड़ोसियों के लिए कर्ज का जाल नहीं बिछाता. वो सहयोग की भावना रखता है. यही वजह है कि चीनी कर्जजाल में पड़ोसियों को फंसने से बचाने के लिए उसने 7 साल पहले ऐसी योजना को आगे बढ़ाया, तो भारत के साथ भूटान-नेपाल और बांग्लादेश को मालामाल करने की क्षमता रखता है. जी हां, भारत सरकार का बीबीआईएन रोड प्रोजेक्ट (BBIN Road Project- Bangladesh-Bhutan-Nepal-India Road Project) चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की काट है. बल्कि इससे भी आगे बढ़ कर है. न्यूज नेशन अपने इस खास पेशकश में इसी बात पर रोशनी डाल रहा है.
BBIN-BRI में क्या है अंतर, क्यों ये पड़ोसी देशों के साथ भारत को भी पहुंचाएगा फायदा
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में चीन की साफ चाल है, उस देश को भारी भरकम कर्ज से लाद देना. इसके बाद जिस देश की जिस परियोजना में उसने निवेश किया है, उसे भी हथिया लेना. इसके अलावा कर्ज का ब्याज तेजी से बढ़ते चले जाना. और फिर इसकी वसूली के लिए उन देशों की बहुमूल्य परियोजनाओं पर कब्जा कर लेना. लाओस में उसने पॉवर ग्रिड पर कब्जा कर लिया. श्रीलंका में उसने हंबनटोटा बंदरगाह को कब्जे में लेने की कोशिश की. पाकिस्तान में अपने इंजीनियरों, कामगारों से काम कराता है और भुगतान कर्ज की धनराशि से पाकिस्तान से कराता है. उनकी सुरक्षा के लिए भी पाकिस्तान को खर्च करना पड़ता है. मालदीव में भी वो पूरे एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लेने में सफल होने ही वाला था कि भारत ने हस्तक्षेप कर दिया. और वो बच गया. कुछ ऐसा ही भारत को श्रीलंका में भी करना पड़ा. ये रही बात बीआरआई की. जिसमें चीन विकास कार्यों को करने के नाम पर भारी भरकम कर्ज बांटकर देशों को आर्थिक गुलाम बना रहा है. अब बात बीबीआईएन की. बीबीआईएन का मतलब है बांग्लादेश-भूटान-नेपाल और इंडिया रोड प्रोजेक्ट. इस प्रोजेक्ट में भारत विकास कार्यों के नाम पर कोई कर्ज नहीं लाद रहा. बल्कि वो रोड कनेक्टिविटी इतनी बेहतर कर रहा है कि चारों देशों के बीच ट्रांसपोर्ट सिस्टम एकदम पारदर्शी हो. बिना किसी रुकावट के परिवहन हो. सामान आए और जाए. एक-दूसरे की सड़कों का बेहतर इस्तेमाल करें, साथ ही समुद्री पोर्ट्स का भी. जिसके माध्यम से नेपाल-भूटान जैसे देश, जिनके पास अपना समंदर नहीं है, वो भी मुक्त तरीके से चीजों को दुनिया के किसी भी हिस्से में निर्यात कर सके.
बीबीआईएन प्रोजेक्ट में क्या है खास?
इस प्रोजेक्ट का ब्लू-प्रिंट तैयार हो चुका है. सभी देशों में सहमति बन चुकी है. अब हस्ताक्षर होने भर की देर है. इस प्रोजेक्ट के शुरू होने का मतलब है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जाने वाला सामान के पश्चिमी बंगाल के उत्तरी हिस्से से गुजरने की कोई मजबूरी नहीं होगी. विशाखा पत्तनम से पानी के जहाज पर लदा सामान मांग्लादेश के चिटगांव पोर्ट पर उतरेगा और वो सीधे मेघालय-त्रिपुरा-मणिपुर जैसे राज्यों तक पहुंच जाएगा. ठीक ऐसा ही होगा भूटान या नेपाल में बने सामान के लिए. भूटान में बने सामान का कोलकाता तक सड़क मार्ग से आने में कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन वो कोई सामान म्यांमार को भेजना चाहेगा, तो भारत का म्यांमार के साथ अलग से ऐसा ही समझौता है. जिसके माध्यम से वो अपने सामान को सीधे म्यांमार को निर्यात कर पाएगा. भारत और बांग्लादेश के बीच इसके लिए 9 हाट भी बनाए जाए रहे हैं. 4 पहले से चल रहे हैं. 6 मार्गों पर रेल सेवा भी शुरू होने वाली है, जो दशकों से बंद थी.
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कैसे काम करेगा बीबीआईएन प्रोजेक्ट?
BBIN मोटर वाहन समझौते (MVA) पर जून 2015 में थिम्पू, भूटान में BBIN परिवहन मंत्रियों की बैठक में हस्ताक्षर किए गए थे. BBIN MVA इन चार देशों को कार्गो और यात्रियों के परिवहन के लिए एक दूसरे के देश में अपने वाहनों को चलाने की अनुमति देगा. दूसरे देश के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए, वाहनों को एक ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक परमिट प्राप्त करने की आवश्यकता होती है. इस समझौते के तहत, सीमा पर एक देश के ट्रक से दूसरे देश के ट्रक में माल के ट्रांस-शिपमेंट की कोई आवश्यकता नहीं है। मालवाहक वाहनों पर इलेक्ट्रॉनिक सील लगेगी ताकि उन्हें ट्रैक किया जा सके. हर बार कंटेनर का दरवाजा खुलने पर रेगुलेटर अलर्ट हो जाएंगे. चूंकि कार्गो वाहनों में GPS ट्रैकिंग डिवाइस के साथ इलेक्ट्रॉनिक सील लगी होती है, इसलिए सीमा पर सीमा शुल्क निकासी की आवश्यकता नहीं होती है. बांग्लादेश, भारत और नेपाल ने इस समझौते की पुष्टि की है. विपक्षी दलों की आपत्तियों के कारण भूटान ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है. नवंबर 2016 में भूटानी संसद के ऊपरी सदन ने इस समझौते को खारिज कर दिया था. भूटान अपने देश में प्रवेश करने वाले वाहनों की संख्या को सीमित करना चाहता है. भूटान को पर्यावरण को होने वाले नुकसान और भूटानी ट्रक ड्राइवरों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता है. भूटान और भारत के बीच पहले से ही एक द्विपक्षीय समझौता है जो दोनों देशों के बीच वाहनों की निर्बाध आवाजाही की अनुमति देता है. इसलिए, BBIN समझौते की पुष्टि नहीं करने के भूटान के फैसले का असर केवल नेपाल और बांग्लादेश के साथ उसके व्यापार पर पड़ेगा. इस तरह से चारों देशों में व्यापार सीमलेस तरीके से जुड़ जाएगा. यही नहीं, इस देशों का सामान भारत के अन्य समझौतों के दम पर ईस्टर्न एशियाई बाजारों तक भी पहुंचेंगे, तो मोदी सरकार के लुक-ईस्ट नीति के तहत ही है.
भारत के विदेश मंत्री ने शनिवार को भी रखी इस मुद्दे पर बात
इस बारे में गुवाहाटी में आयोजित नाडी कॉन्क्लेव में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ये शनिवार को कहा भी, कि भारत भौगोलिक चुनौतियों से पार पाकर नए सिरे से इतिहास लिख सकता है, यदि हम केवल नीतियों और अर्थशास्त्र को सही कर लेते हैं. भारतीय विदेश मंत्री ने बताया कि कैसे वाणिज्यिक स्तर पर म्यांमार के साथ भूमि संपर्क और बांग्लादेश के साथ समुद्री संपर्क मार्ग, वियतनाम और फिलीपींस तक पहुंचने का रास्ता खोल सकते हैं. हाइफोंग से हजीरा और मनीला से मुंद्रा एक दूसरे से जुड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर यह काम करता है (उपरोक्त योजना), तो एशिया महाद्वीप के लिए व्यापक लाभ के साथ एक पूर्व-पश्चिम पार्श्व का निर्माण होगा.’ उन्होंने कहा, यह न केवल आसियान देशों और जापान के साथ हमारी साझेदारी को मजबूत करने में सहयोग करेगा, बल्कि वास्तव में इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क में भी अंतर लाएगा, जो अब बन रहा है.
‘बांग्लादेश के साथ 6 रेल लिंक’
एस जयशंकर ने कहा कि हमें बांग्लादेश के साथ संपर्क बढ़ाना होगा, विशेष रूप से भारत के नॉर्थ ईस्ट राज्यों के साथ, जो उसके पड़ोसी हैं. बांग्लादेश के साथ उन 6 ऐतिहासिक क्रॉस बॉर्डर रेल लिंक की बहाली करनी होगी, जो 1965 से निष्क्रिय पड़ी हैं. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, ‘इन रेल लिंक के एक बार चालू होने के बाद, महिषासन (असम) से शाहबाज़पुर (बांग्लादेश) लिंक को बांग्लादेश के भीतर विस्तारित किया जाएगा और कुलुआरा-शाहबाजपुर रेल लाइन से जोड़ा जाएगा, जिसका वर्तमान में आधुनिकीकरण किया जा रहा है.’ विदेश मंत्री ने कहा कि चिलाहाटी-हल्दीबाड़ी (पश्चिम बंगाल) लाइन, जिसका दिसंबर 2020 में उद्घाटन किया गया था, यात्री यातायात सहित न्यू जलपाईगुड़ी के माध्यम से बांग्लादेश से असम की कनेक्टिविटी को और बढ़ाएगी. अखौरा (बांग्लादेश) से अगरतला (त्रिपुरा) के बीच एक रेल लिंक विकसित किया जा रहा है, जिसके बारे में जयशंकर ने कहा कि इससे पहले ही भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार में वृद्धि हुई है. विदेश मंत्री ने बांग्लादेश और पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच निर्बाध वाहनों की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए बीबीआईएन मोटर वाहन (Bangladesh, Bhutan, India, Nepal Motor Vehicle Agreement) समझौते को लागू करने के लिए बातचीत पर बड़ी उम्मीदें लगाई हैं.
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