Heros of 2020: राहुल दुबे का इंसान पर भरोसा ही सबसे बड़ा कानून
भारतीय अमेरिकी राहुल दुबे आज इंटरनेट पर सबसे अधिक खोजी जाने वाली हस्तियों में शामिल हो गए हैं. पूरी दुनिया में उनकी प्रशंसा हो रही है.
नई दिल्ली:
भारतीय अमेरिकी राहुल दुबे आज इंटरनेट पर सबसे अधिक खोजी जाने वाली हस्तियों में शामिल हो गए हैं. पूरी दुनिया में उनकी प्रशंसा हो रही है. नस्लवाद के खिलाफ अमेरिका में जारी प्रदर्शनों के दौरान उन्होंने 70 से अधिक प्रदर्शनकारियों को अपने घर में जगह दी और मानवता के प्रति इसी प्रेम भाव को लेकर प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने राहुल दुबे को 'हीरोज ऑफ 2020' की सूची में शामिल किया है. टाइम मैगजीन उन लोगों का नाम प्रकाशित करती है जो अपना फर्ज निभाने के लिए साहस दिखाते हैं.
टाइम पत्रिका ने दिया स्थान
टाइम ने दुबे के बारे में लिखा, 'वह शख्स जिसने जरूरत के समय लोगों को आसरा दिया.' स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले 46 वर्षीय राहुल ने बाद में कहा कि उन्होंने कुछ महान काम नहीं किया, बल्कि संकट के समय में यह सहज मानवीय स्वभाव से प्रेरित होकर उठाया गया कदम था. उन्होंने एक भारतीय समाचार पत्र के साथ बातचीत में यह भी स्वीकार किया कि उन्हें भी एक समय अमेरिका में नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा था. उन्हें आज भी नस्लवाद और वर्गभेद को लेकर गुस्सा आता है और उनका कहना है कि ये समस्याएं मानव निर्मित हैं जिन्हें खत्म किया जा सकता है.
पहली पीढ़ी के भारतीय अमेरिकी
अमेरिका के डेट्रायट के उपनगरीय इलाके में पले बढ़े राहुल पहली पीढ़ी के भारतीय अमेरिकी हैं और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता 1960 के दशक के उत्तरार्ध में अमेरिका में जा बसे थे और उन्होंने ऑटोमेटिव उद्योग में अपने कॅरियर की शुरूआत की थी. राहुल को उत्तर प्रदेश में अपने पैतृक गांव के घर में आए हुए करीब 20 साल हो गए हैं और उनके दादा-दादी के निधन के बाद तो वहां रहने वाले नाते-रिश्तेदारों से संपर्क और भी कम हो गया है. वह भारत में हो रहे भू- राजनीतिक बदलावों के बारे में जानकारी रखते हैं, लेकिन भारतीय राजनीति में उनकी कोई रूचि नहीं है.
प्रेम ही दुनिया का सबसे बड़ा कानून
राहुल का कहना है कि इंसान का इंसान पर भरोसा और प्रेम ही दुनिया का सबसे बड़ा कानून है. वह कहते हैं कि अगर आज भी नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए लोगों को प्रदर्शन करना पड़ता है तो यह सोचने की बात है. राहुल का 13 साल का बेटा है और वह चाहते हैं कि वह भी इससे प्रेरणा लेकर लोगों की मदद करे और एक अच्छा इंसान बने जो अपने अधिकारों के साथ ही दूसरों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष करे. 17 साल से अमेरिका में रह रहे राहुल एक हेल्थ केयर इनोवेशन कंपनी चलाते हैं और उन्होंने मिशिगन यूनिवर्सिटी से बिजनेस और इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में स्नातक किया है.
राहुल गांधी ने भी की तारीफ
उनकी उदारता और मानवता के प्रति प्रेम की इस कहानी के सुर्खियों में छा जाने के बाद दुनियाभर से लोग उनकी तारीफ करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर संदेश भेज रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी उनकी तारीफ करते हुए लिखा, 'कमजोर और दबे-कुचले लोगों के लिए अपने घर और अपने दिल का दरवाजा खोलने के लिए आपका धन्यवाद राहुल.'
प्रदर्शनकारियों को दी घर में जगह
अमेरिका में एक जून को अफ्रीकी अमेरिकी जार्ज फ्लॉयड की मौत के बाद वॉशिंगटन डीसी की सड़कें प्रदर्शनकारियों से भर गई थीं. दुबे उस समय स्वान स्ट्रीट पर अपने 1,500 वर्ग फुट में बने तीन मंजिला घर पर ही थे. उनका घर व्हाइट हाउस से बहुत ज्यादा दूर नहीं है. शाम करीब सात बजे कर्फ्यू लग गया. तब उन्होंने महसूस किया कि भीड़ अभी भी सड़क पर है और पुलिस ने बेरिकेड लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी कर ली है. यही नहीं, पुलिस उन पर मिर्ची का स्प्रे भी कर रही थी. राहुल ने अपने घर का दरवाजा खोलते हुए चिल्लाकर लोगों से भीतर आने को कहा और पूरा रेला उनके तीन मंजिला घर में शरण लेने के लिए उमड़ पड़ा. घर में उस समय वह अकेले थे. उनका 13 साल का बेटा कहीं बाहर गया हुआ था. उनके घर में चारों ओर लोग ही लोग थे, जो आंसू गैस के गोलों के असर के कारण खांस रहे थे, अपनी आंखों को मल रहे थे, घायल हालत में इधर-उधर पड़े थे.
रंग, धर्म, नस्ल बकवास मानते हैं राहुल
उनके घर में शरण पाने वाली बार टेंडर 34 वर्षीय ऐलिसन लेन ने बाद में बताया था कि राहुल बेहद शांत थे और उन्होंने सब लोगों के रहने-खाने का पूरा इंतजाम किया. शरण लेने वालों में 16 साल का एक लड़का भी था. राहुल ने अपने फ्रिज में से निकाल कर उसे आईसक्रीम दी और उससे चिंता नहीं करने को कहा. उनके घर में चारों ओर यहां तक कि बाथटब में लोग बैठे हुए थे. राहुल ने न केवल ऐसे करीब 70 लोगों को अपने घर में शरण दी बल्कि उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम भी किया. किसी तरह से उनके लिए पिज्जा भी मंगवाया. उनके पड़ोसियों ने भी उनकी मदद की. सब अलग-अलग उम्र के लोग थे, लेकिन राहुल ने उन लोगों को आसरा देने में किसी रंग, धर्म और नस्ल की परवाह नहीं की.
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