logo-image

Russia से दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे... US समेत पश्चिमी देशों को India की दो टूक

वरिष्ठ भारतीय नेतृत्व ने अमेरिकी डिप्टी एनएसए की धमकी का तीखा विरोध कर आंतरिक मामलों में दखलंदाजी से बाज आने को कहा. इसमें विदेश मंत्री, निर्मला सीतारमण से लेकर कई लोग शामिल रहे

Updated on: 02 Apr 2022, 10:09 AM

highlights

  • अमेरिका के डिप्टी एनएसए की धमकी पर भारत ने दी तीखी प्रतिक्रिया
  • एस जयशंकर ने यूरोप को दिखाया आईना, कहा-खुद खरीदो दूसरों को रोको
  • वित्त मंत्री ने कहा ऊर्जा सुरक्षा और अपने देश के हित को सबसे पहले 

नई दिल्ली:

यूक्रेन (Ukraine) से युद्ध के बीच रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (Sergie Lavrov) के भारत आगमन से पहले अमेरिका के डिप्टी एनएसए दिलीप सिंह (Dalip Singh) ने अमेरिकी प्रतिबंधों (Sanctiona) के नाम पर अपरोक्ष रूप से भारत को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली. हालांकि ब्रिटिश विदेश मंत्री एलिजाबेध ट्रुस (Elizabeth Truss) ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की भूमिका पर सधे शब्दों में टिप्पणी की. यह अलग बात है कि पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात में भारत का पक्ष फिर से साफ कर दिया. उन्होंने रूस-यू्क्रेन युद्ध के जल्द खत्म होने की संभावना जता अपनी मध्यस्थता की पेशकश भी कर डाली. इसके पहले वरिष्ठ भारतीय नेतृत्व ने अमेरिकी डिप्टी एनएसए की धमकी का तीखा विरोध कर आंतरिक मामलों में दखलंदाजी से बाज आने को कहा. इसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन तक शामिल रहे.

रूस-भारत ने जताई संबंध निभाने की प्रतिबद्धता
गौरतलब है कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से पीएम नरेंद्र मोदी ने मुलाकात कर भारतीय मदद का आश्वासन दिया. रूसी विदेश मंत्री ने भारत के तटस्थ रुख की सराहना की. साथ ही भारत को आश्वस्त किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध से व्यापारिक और सामरिक साझेदारी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लावरोव भारत की दो दिवसीय यात्रा पर हैं, जहां उन्होंने कच्चे तेल की पेशकश, रुपये-रूबल भुगतान, चल रहे हथियारों के सौदे, यूक्रेन संकट और अफगानिस्तान और ईरान की स्थिति पर अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर के साथ विचार-विमर्श किया. लावरोव ने कहा, 'भारत एक महत्वपूर्ण और गंभीर देश है. भारत हमारा साझा भागीदार है और अगर भारत समाधान प्रदान करने वाली भूमिका निभाता है, तो हम यूक्रेन की सुरक्षा गारंटी के लिए हैं. पश्चिम ने अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया है. अगर भारत अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रति न्यायसंगत और तर्कसंगत दृष्टिकोण के साथ है तो ऐसी प्रक्रिया का समर्थन कर सकता है.'

यह भी पढ़ेंः देश में कोयले की कमी से बिजली संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध से है ये कनेक्शन

वित्ती मंत्री ने कहा लेते रहेगा रूस से सस्ता तेल
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से पहले अमेरिकी डिप्टी एनएसए दिलीप सिंह ने रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को नहीं मानने वाले देशों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली थी. इसका तीखा विरोध करती सबसे पहली प्रतिक्रिया संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने अपनी ट्वीट में दी. उन्होंने लिखा, 'तो ये हमारे दोस्त हैं, यह कूटनीति की भाषा कतई नहीं है... यह दबाव की भाषा है... कोई इस शख्स को बताए कि एकतरफा दंडात्मक प्रतिबंध वास्तव में अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हैं.' इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका के डिप्टी एनएसए को दो टूक समझा दिया कि रूस से सस्ते तेल का आयात जारी रहेगा. मुंबई में एक कार्यक्रम में सीतारमण ने कहा, 'हमने रूस से तेल खरीदना शुरू कर दिया है और कम से कम 3 से 4 दिनों की आपूर्ति खरीदी है. मैं अपनी ऊर्जा सुरक्षा और अपने देश के हित को सबसे पहले रखूंगी. अगर आपूर्ति छूट पर उपलब्ध है, तो मुझे इसे क्यों नहीं खरीदना चाहिए?'

यह भी पढ़ेंः  घुटने पर आया भारत को अंजाम भुगतने की धमकी देने वाला अमेरिका

एस जयशंकर ने यूरोप को दिखा दिया आईना
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिटिश विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रुस से मुलाकात में कहा कि यूरोप ने रूस से एक महीने पहले की तुलना में 15 फीसदी अधिक तेल और गैस खरीदी है. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि देशों के लिए बाजार में जाना और यह देखना स्वाभाविक है कि उनके लोगों के लिए क्या अच्छे सौदे हैं.' उन्होंने कहा, 'अगर हम दो या तीन महीने तक प्रतीक्षा करें और वास्तव में देखें कि रूसी गैस और तेल के बड़े खरीदार कौन हैं, तो मुझे संदेह है कि सूची पहले की तुलना में बहुत अलग नहीं होगी.' गौरतलब है कि भारत की तेल जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात किया जाता है और इसमें से 2 फीसद से भी कम आयात रूस से होता है. ट्रुस और जयशंकर के बयान अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह की ओर से चेतावनी दिए जाने के बाद सामने आए, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका रूस से भारत के आयात में तेजी नहीं देखना चाहेगा.