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Health Hazard: वाराणसी की हवा में मिले माइक्रोप्लास्टिक्स के कण

बीएचयू के पर्यावरण और सतत विकास संस्थान के सहायक प्रोफेसर तीर्थंकर बनर्जी ने कहा,

Updated on: 25 Jun 2022, 06:57 PM

नई दिल्ली:

प्लास्टिक कैसे मानव जीवन के लिए खतरा बन सकता है, इसका अंदाजा वाराणसी की हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के कण से लगाया जा सकता है. यह केवल विषैला कण नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी के 10 लाख से अधिक निवासी शहर की हवा में व्यापक रूप से मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के कण को सांसों के साथ अंदर ले रहे हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU)के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में इस बात के सबूत मिले हैं कि बनारस की हवा को माइक्रोप्लास्टिक के कण विषैला बना चुके हैं.

नवीनतम निष्कर्ष ऐसे समय में सामने आए हैं, जब देश 1 जुलाई से कुछ एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं को चरणबद्ध तरीके से पुनर्नवीनीकरण करने के लिए पहला कदम उठाने के लिए कमर कस रहा है.  जबकि सचाई यह है कि प्लास्टिक का अधिकांश भाग लैंडफिल में डंप कर दिया जाता है. चूंकि, प्लास्टिक को खराब होने में हजारों साल लगते हैं, यह धीरे-धीरे छोटे माइक्रोप्लास्टिक (5 मिमी से कम) कणों में विभाजित हो जाता है, और फिर हवा में बिखर जाता है, जिसके गंभीर हानिकारक परिणाम होते हैं.

बीएचयू की दीपिका पांडे और तीर्थंकर बनर्जी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने बनारस की हवा में माइक्रोप्लास्टिक की पहचान करने और इसकी मात्रा निर्धारित करने के लिए शोध किया.अप्रैल से जून 2019 के बीच  वाराणसी के विभिन्न भागों से नमूने एकत्र किए गए. शोध में यह पाया गया कि वायुमंडल और सड़क धूल में माइक्रोप्लास्टिक के कण मौजूद हैं.

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इन धूल के नमूनों को 5 मिमी की छलनी का उपयोग करके भी छलनी किया गया था और आगे दूरबीन माइक्रोस्कोपी, प्रतिदीप्ति माइक्रोस्कोपी और स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (एसईएम) द्वारा भौतिक रूप से पहचाना गया था. उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी इस अध्ययन का हिस्सा थे.

उन्होंने विभिन्न आकार-प्रकार और विभिन्न रंगों के प्लास्टिक के छोटे टुकड़ों की पहचान की - गुलाबी, पीला, हरा, लाल और यहां तक ​​​​कि पारदर्शी जो ज्यादातर ज्ञात नहीं होता है. जबकि सड़क की धूल के नमूनों में टुकड़ों (42%) का प्रभुत्व था, हवा में निलंबित धूल में फाइबर (44%) सामान्य देखे गए थे.

शोधकर्ता बताते हैं कि इसके अलावा, टुकड़े (28%), फिल्में (22%), और गोलाकार बूंदें (6%) थीं. जबकि, इनमें से अधिकांश फाइबर कपड़े और वस्त्रों से आते हैं, फिल्म / टुकड़े डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग और मोटे प्लास्टिक उत्पादों से उत्पन्न होते हैं. 2020 में नागपुर में किए गए इसी तरह के एक अध्ययन ने भी यही रुझान आया था.

बीएचयू के पर्यावरण और सतत विकास संस्थान के सहायक प्रोफेसर तीर्थंकर बनर्जी ने कहा, "हमने पाया कि इनमें से अधिकतर कण आकार में 1 मिमी से कम थे जो उन्हें सांस लेने के साथ आसानी से अंदर चले जाते हैं, और शायद फेफड़ों में सूजन पैदा कर सकता है."

दुनिया भर में किए गए अध्ययनों ने इस बात पर चिंता जताई है कि हवा में मौजूद सूक्ष्म प्लास्टिक कण आसानी से श्वसन रक्षा प्रणाली से कैसे गुजर सकते हैं और ब्रोन्किओल्स में गहराई तक पहुंच सकते हैं. हालांकि, मानव शरीर के लिए इस तरह के अंतर्ग्रहण हवाई कणों का संभावित जोखिम अभी तक पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, वैज्ञानिक इस बात पर कहते हैं कि ये जोखिम कण आकार, सोखने वाले रसायन, एकाग्रता, जमाव और निकासी दर जैसे कई कारकों पर निर्भर करते हैं.

हालांकि, यह सिर्फ प्लास्टिक नहीं है, बल्कि उनके बड़े सतह क्षेत्र और हाइड्रोफोबिक संपत्ति के कारण उनकी सतह पर जहरीले रसायनों को सोखने की उनकी क्षमता उनके प्रभाव को और खराब कर देती है, बनर्जी ने कहा. "वे फेफड़ों में रोगजनकों या सूक्ष्मजीवों को ले जाने के लिए एक माध्यम के रूप में भी कार्य कर सकते हैं और संभवतः मनुष्यों में संक्रमण का कारण बन सकते हैं."

आगे की जांच से पता चला है कि इन माइक्रोप्लास्टिक्स पर धातु के तत्वों जैसे जहरीले अकार्बनिक संदूषकों को ले लिया, विशेष रूप से एल्यूमीनियम, कैडमियम, मैग्नीशियम, सोडियम और सिलिकॉन जैसे तत्व जो उनकी सतह पर सोख लिए जाते हैं. ये तत्व प्लास्टिक निर्माण में उपयोग किए जाने वाले एडिटिव्स, प्लास्टिसाइज़र, स्टेबलाइजर्स, पिगमेंट और डाई की उपस्थिति के कारण भी हो सकते हैं.

पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, अधिकांश माइक्रोप्लास्टिक मुख्य रूप से पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्टाइनिन, पॉलीइथाइलीन, पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट, पॉलिएस्टर और पॉलीविनाइल क्लोराइड प्रकार के थे. पॉलीइथाइलीन (पीई) आमतौर पर रोजाना उपयोग किए जाने वाला प्लास्टिक था, जो हमारे दिन-प्रतिदिन में विभिन्न पीई-निर्मित वस्तुओं जैसे खिलौने, दूध और शैम्पू की बोतलें, पाइप, पैकेजिंग फिल्म, किराने की थैलियों और अन्य बैगों के व्यापक उपयोग के कारण हो सकता है.  

बनर्जी ने मानव स्वास्थ्य पर उनके सटीक प्रभावों पर और शोध की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, "हमारा अध्ययन उत्तरी भारत के एक विशिष्ट शहरी क्षेत्र में निलंबित और जमी हुई धूल दोनों में सूक्ष्म प्लास्टिक कणों की उपस्थिति पर पहला सबूत देता है." “यह न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी चिंता का एक प्रमुख कारण है. हवा, पानी और मिट्टी में उनकी मौजूदगी पहले ही एक गंभीर चुनौती पेश कर चुकी है. वर्तमान में हम जो कर सकते हैं, वह उनके स्रोत पर कार्य करना है - जो कि सिंगल-यूज प्लास्टिक है."