बढ़ता तालिबान, सिमटता अफगान, भारत का निवेश खतरे में
US ने मिडल ईस्ट से खुद को इंडो पैसिफिक में शिफ्ट किया और अफगानिस्तान में भूचाल आ गया.
highlights
- US की बदली रणनीति का नतीजा- तालिबान अफगान में तेजी से पसार रहा पैर
- भारत ने अफगानिस्तान की जमीन पर न सिर्फ भारी भरकम निवेश किया
- पाकिस्तान का ज्यादातर निवेश तालिबान में रहा है
नई दिल्ली:
US ने मिडल ईस्ट से खुद को इंडो पैसिफिक में शिफ्ट किया और अफगानिस्तान में भूचाल आ गया. यूएस की बदली रणनीति का ही नतीजा है कि तालिबान अफगनिस्तान में तेजी से अपना पैर पसार रहा है और आतंक की आहट से डरे सहमे अफगानिस्तान में जम्हूरियत की आस दम तोड़ती नजर आ रही है. यूएस फोर्सेज की वापसी के साथ ही तालिबान ने अपने कदम बढ़ाने शुरू किए और अब 85 फीसदी इलाके पर अपनी पकड़ का दावा कर रहा है. इस बदलाव के नतीजे मिडल ईस्ट सहित साउथ एशिया में गहरा असर डालने वाले हैं, जिसके छीटें भारत पर पड़ने लगे हैं. तालिबान लड़ाके कंधार तक आ पहुंचे तो भारतीय राजनयिकों को सुरक्षा के कारणों से दूतावास खाली करना पड़ा, लेकिन भारत की चिंता यही तक नहीं सिमटती है, बल्कि यहां से शुरू होती है.
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पिछले 2 दशक में भारत ने अफगानिस्तान की जमीन पर न सिर्फ भारी भरकम निवेश किया, बल्कि भारत अफगान संबंधों को नई धार दी है. एक समृद्ध, विकसित और लोकतांत्रिक अफगान का सपना इस समूचे क्षेत्र में था और यह उम्मीद भी की यूएस फोर्सेज अपना मिशन पूरा करके ही वापस लौटेंगी, लेकिन जो अब अफगानिस्तान की ज़मीन पर हो रहा है वह काफी निराशाजनक है.
साल 2001 से अब तक भारत ने अफगानिस्तान में तकरीबन 3 बिलियन यूस डॉलर का निवेश किया है. भारत का अफगानिस्तान में निवेश इंफ्रास्ट्रक्चर, सिचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और एनर्जी सेक्टर में है. भारत और अफगान के बीच गहरी दोस्ती सामरिक रूप से भी समय के साथ मजबूत हुई और यह पाकिस्तान के आंखों में खटकता रहा. उधर, पाकिस्तान का ज्यादातर निवेश तालिबान में रहा है, जिसके जरिये वह अफगानिस्तान की जमीं से भारत को उखाड़ फेंकने का सपना सजाता रहा.
अफगान सरकार की मदद में यूएस के बाद भारत ही ऐसा देश है जिसने कोई कसर नहीं छोड़ी, चाहे वहां की सड़क बनानी हो या संसद, भारत ने अपनी भूमिका बढ़-चढ़कर निभाई. कोविड के इस दौर में भी भारत ने मेडिसिन से लेकर वैक्सीन की सप्लाई में अहम भूमिका निभाई. लेकिन, वक्त का पहिया अब बदल चुका है. अफगानिस्तान में भारत का निवेश खतरे में है. इसकी चिंता रायसीना के माथे पर भी दिख रही है, जिसने अपनी अफगान नीति में परिवर्तन कर बैक डोर से तालिबान के साथ बातचीत का रास्ता भी खोला है, लेकिन मौजूदा वक्त में सारी कवायद ढाक के तीन पात की तरह दिखने लगी है.
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रिकॉर्ड के मुताबिक, अफगानिस्तान के 325 जिलों में 76 तालिबान के कंट्रोल में और 127 अफगान सरकार के कंट्रोल में थे, जबकि शेष बचे 122 जिलो में दोनों के बीच टकराव रहा, अब ये 122 जिले तेजी से तालिबान के कब्जे में जाते दिख रहे हैं. इसके बाद तालिबान का पलड़ा अफगान पर भारी पड़ चुका है. इस समूची तालिबानी विस्तार का मुख्य किरदार पाकिस्तान भारत मुक्त अफगानिस्तान का कम्पैन चला रहा है.
सूत्रों के मुताबिक, इन्हीं तालिबान लड़ाकों की मदद से पाकिस्तान अपने आतंकी संघटनों को भी मजबूत कर सकता है, जिसमें लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठन प्रमुख हैं. यानी अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र की काली छाया भारत के निवेश पर तो साफ है दूसरी तरफ इस क्षेत्र में आतंक के और व्यापक होने की संभावना भी प्रबल दिखाई दे रही है.
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