काकोरी कांड के नायक को आज के दिन दी गई थी फांसी, 'बिस्मिल' ने जगाई स्वतंत्रता की अलख
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था. मैनपुरी व काकोरी कांड जैसी कई घटनाओं में प्रमुख किरदार निभाने वाले बिस्मिल स्वतंत्रता आंदोलन के अहम अंग थे.
highlights
- सन् 1916 में 19 वर्ष की उम्र में क्रांति के मार्ग पर कदम रखा
- बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था
नई दिल्ली:
काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आज पुण्यतिथि हैं. 30 वर्ष की आयु में उन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी थी. 19 दिसंबर 1927 की सुबह छह बजे उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी. फांसी देने के कुछ घंटो पहले उनके चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी, बल्कि वह कसरत करते दिखाई दिए. जब सुरक्षकर्मियों ने उनसे पूछा कि अभी कुछ देर में उन्हें फांसी दे दी जाएगी. इसके बाद भी आप कसरत क्यों कर रहे हैं. इस पर बिस्मिल का जवाब था कि भारत माता की चरणों में अर्पित होने वाला फूल मुरझाया हुआ नहीं होना चाहिए. ये स्वस्थ और सुंदर दिखना चाहिए. बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था. मैनपुरी व काकोरी कांड जैसी कई घटनाओं में प्रमुख किरदार निभाने वाले बिस्मिल स्वतंत्रता आंदोलन के अहम अंग थे.
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी होने के साथ लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार और बहुभाषी अनुवादक थे. उन्होंने सन् 1916 में 19 वर्ष की उम्र में क्रांति के मार्ग पर कदम रखा. किताबों के बिक्री से मिले पैसों से उन्होंने ब्रिटिश राज में क्रांति जारी रखने के लिए हथियार खरीदे. उन्होंने पूरे जीवन में कई आंदोलनों में हिस्सा लिया.
काकोरी कांड
काकोरी कांड को आजादी के लिए सबसे बड़ी क्रांतिकारी घटना के रूप में देखा जाता है. उत्तर प्रदेश के लखनऊ के पास चलने वाली काकोरी की ट्रेन को पंडित और उनके तीन साथियों ने लूटा और ब्रिटिश सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर ट्रेजरी में मौजूद पैसों को भी लूट लिया था. इस कारण ब्रिटिश हुकूमत ने पंडित और उनके तीन साथियों को गिरफ्तार लिया और बाद में उन्हें फांसी की सजा सुनाई.
पंडित ने लखनऊ के सेंट्रल जेल में अपनी आत्मकथा लिखी थी. जिसे साहित्य के इतिहास में काफी बड़ी रचना मानी जाती है. जेल में ही उन्होंने मशहूर गीत 'मेरा रंग दे बसंती चोला' भी लिखा था. फांसी से पहले उनके आखिरी शब्द जय हिंद थे. उन्हें 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई और रपती नदी के पास उनका अंतिम संस्कार भी हुआ. बाद में इस जगह को राज घाट के नाम से जाना जाने लगा.
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