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'अफ्रीकी चीता' प्रजाति के 8 चीतों का कुनो नेशनल पार्क में अंततः हो गया 'गृहप्रवेश'

कुनो नेशनल पार्क में अवैध शिकार पर रोक लगाने के लिए भारी सुरक्षा बंदोबस्त किया गया है. प्रत्येक चीते की 24 घंटे देखभाल करने के लिए एक समर्पित मॉनीटरिंग दस्ते का गठन किया गया है.

Updated on: 17 Sep 2022, 04:13 PM

highlights

  • आज की तारीख में सिर्फ 7 हजार चीते ही दुनिया में रह गए हैं, जिनमें से ज्यादातर अफ्रीका के सवाना के जंगलों में पाए जाते हैं
  • ऐसे में कुनो नेशनल पार्क में प्रत्येक चीते की 24 घंटे देखभाल करने के लिए एक समर्पित मॉनीटरिंग दस्ते का गठन किया गया है
  • नामीबिया से लाए गए आठ चीते श्योपुर के खुल जंगलों और घास के मैदानों के पारिस्थितिक तंत्र की बहाली में भी मदद करेंगे 

नई दिल्ली:

1952 में भारत से विलुप्त करार देने के सात दशकों बाद 'ऑपरेशन चीता' के तहत नामीबिया से लाए गए 8 चीतों का शनिवार को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में 'गृहप्रवेश' हो चुका है. चीतों को खासतौर पर लाने के लिए बोइंग के माल वाहक प्लेन में आंतरिक स्तर पर बदलाव किए गए थे. इन्हीं में लकड़ी से बने आठ खास पिंजरों में चीतों को ग्वालियर के सैन्य हवाई अड्डे पर लाया गया. फिर चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए उन्हें कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) ले जाया गया. खासतौर पर बनाए गए मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM  Narendra Modi) ने तीन चीतों को क्वारंटाइन एन्क्लोजर में छोड़ा. शेष चीतों को मौके पर मोजूद अन्य गणमान्य अतिथियों ने ऐसे ही खास बाड़ों में छोड़ा. ये चीते (Cheetah) महीने भर तक यहां रखे जाएंगे, फिर इन्हें खुले जंगलों में छोड़ दिया जाएगा.  इस पूरे प्रोजेक्ट पर कड़ी नजर रखी जा रही है.

  • अफ्रीकी देश नामीबिया से शुक्रवार रात यूरोप के मोलडोवा चिशिनॉव की एयरलाइन टेरा अवीवा ने भारत के ग्वालियर की ओर खास उड़ान भरी थी. यह विमान नामीबिया की राजधानी विंडहोक के उत्तर में स्थित एक गेम पार्क से चीतों को लेकर रवाना हुआ था. 8 हजार किमी दूरी का 11 घंटे का सफर तय कर 'कैट प्लेन' नाम के बोइंग 747 विमान ने शनिवार को ग्वालियर के एयरफोर्स अड्डे पर पांच मादा और तीन नर चीतों को लेकर लैंडिंग की. 
  • यहां से इन चीतों को एयर फोर्स के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिये 165 किमी दूर श्योपुर स्थित कुनो नेशनल पार्क लाया गया. इन चीतों की भारत में आमद अंतर महाद्विपीय स्थानातंरण प्रोजेक्ट के तहत हुई है. 
  • कुनो लाए गए प्रत्येक चीते को यात्रा के दौरान कुछ भी खाने को नहीं दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें खास बाड़ों में छोड़ने के कुछ देर बाद सभी को भोजन दिया गया. कुनो में इन चीतों को रिहा करने के लिए एक विशेष मंच तैयार किया गया था. इन चीतों के बाड़े के लिवर को दबा कर पीएम मोदी ने इन्हें खास बाड़ों में रिहा किया. शेष चीतों को उपस्थित अन्य मेहमानों ने दूसरे बाड़ों में छोड़ा.
  • इन सभी चीतों की उम्र दो से ढाई साल के बीच है. इनके मूवमेंट्स पर नजर रखने के लिए इन्हें सेटेलाइट कॉलर पहनाए गए हैं. इन्हें फिलहाल क्वारंटाइन इन्कोल्जर करार दिए खास बाड़ों में एक महीने तक रखा जाएगा. फिर इन्हें नेशनल पार्क के खुले जंगलों में छोड़ दिया जाएगा.
  • कुनो नेशनल पार्क में अवैध शिकार पर रोक लगाने के लिए भारी सुरक्षा बंदोबस्त किया गया है. प्रत्येक चीते की 24 घंटे देखभाल करने के लिए एक समर्पित मॉनीटरिंग दस्ते का गठन किया गया है. 
  • भारत में विलुप्त हो चुके चीतों के पुनर्वास के लिए भारत सरकार ने महत्वकांक्षी 'प्रोजेक्ट चीता' शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसर्वेशन ऑफ नेचर के दिशा-निर्देशों के अनुरूप लांच किया गया है. वास्तव में ये चीते नामीबिया सरकार की ओर से दान में दिए गए हैं. अफ्रीका का यह छोटा सा देश उन चंद देशों में शुमार होता है जहां सबसे तेज गति वाला जानवर चीता ठीक-ठाक संख्या में पाया जाता है. चीता 100 से 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है. 
  • भारत में विलुप्त चीता के पुनर्वास से जुड़े प्रयासों को 2020 में गति मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने चीतों की अलग प्रजाति 'अफ्रीकी चीता' को प्रायोगिक तौर पर सावधानी से चुने गए स्थान पर लाने की अनुमति दी. इसके पहले ऐसे ही प्रयास को रोका जा चुका था. 
  • नामीबिया सरकार से साल के अंत तक दर्जन भर अन्य चीतों को भारत लाने की बातचीत चल रही हैं. इन नए चीतों को गुजरात और अन्य कुछ राज्यों में रखा जाएगा. 
  • 'प्रोजेक्ट चीता' के प्रमुख एसपी यादव के मुताबिक चीतों के लिए कुनो का चयन बहुत सोच-समझकर किया गया है. एक तो कुनो नेशनल पार्क बेहद खूबसूरत है. फिर यहां छोटी पहाड़ियों और जंगलों समेत बड़े-बड़े हरी घास के मैदान फैले हुए हैं. ऐसे में चीतों के पुनर्वास के लिहाज से कुनो नेशनल पार्क आदर्श जगह साबित होगी. कुनो नेशनल पार्क विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के उत्तरी तरफ 344 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ है. 
  • नामीबिया से लाए गए चीते खुल जंगलों और घास के मैदानों के पारिस्थितिक तंत्र की बहाली में भी मदद करेंगे. इनके जरिए भारत में जैव विविधता के संरक्षण में भी मदद मिलेगी. इनकी मदद से जल सुरक्षा, कार्बन के पृथक्करण और मिट्टी की नमी के संरक्षण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को विस्तार देने में भी मदद मिलेगी. 
  • भारत में चीतों के विलुप्त होने के पीछे मुख्यतः अवैध शिकार समेत प्राकृतिक वास का नुकसान बड़ा कारण था. चीते का उसकी खाल के लिए अवैध शिकार किया जाता है. बताते हैं कि महाराज रामानुज प्रताप सिंह ने 1940 के दशक के आखिर में सरकारी आंकड़ों में दर्ज अंतिम तीन चीतों को अपने शौक के लिए मार डाला था. 
  • इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर की जानवरों की खतरे में प्रजातियों की लाल सूची में चीते को वैश्विक स्तर पर शोचनीय और संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है. आज की तारीख में सिर्फ 7 हजार चीते ही दुनिया में रह गए हैं, जिनमें से ज्यादातर अफ्रीका के सवाना के जंगलों में पाए जाते हैं.