लता मंगेशकर को सिखाने वाले उस्ताद गुलाम मुस्तफा ने कब्रिस्तान में किया था रियाज
उस्ताद खान के पिता उस्ताद वारिस हुसैन खान और दादा मुर्रेद बख्श भी हिन्दुस्तानी संगीत-गायन के उस्ताद हुआ करते थे. उनकी मां महान संगीतकार उस्ताद इनायत हुसैन खान की बेटी थीं.
नई दिल्ली:
पद्म विभूषण से सम्मानित भारतीय शास्त्रीय संगीत के बड़े स्तंभ उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान का रविवार को 89 की आयु में इंतकाल हो गया. रामपुर सह सहवान घराने से ताल्लुक रखने वाले उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान न सिर्फ बेहतरीन गायक-संगीतकार थे, बल्कि उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोंसले, मन्ना डे, गीता दत्ता, एआर रहमान, हरिहरन, सोनू निगम, शान जैसे कई दिग्गजों को सुर की बारीकियां सिखाई. उनके संगीत सफर की बेमिसाल उपलब्धियां हैं, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने संगीत के रियाज के लिए कब्रिस्तान को चुना था.
घर के शोरगुल से दूर बगैर झिझक रियाज के लिए चुना था कब्रिस्तान
पुत्र-वधू नम्रता गुप्ता खान के साथ मिलकर लिखे गए अपने संस्मरण 'ए ड्रीम आई लिव्ड एलोन' में उस्ताद खान साहब ने अपने जीवन के तमाम अनुभवों को साझा किया. इसी में उन्होंने लिखा कि लड़कपन में वह कब्रिस्तान में रियाज करते थे. वह लिखते हैं, 'कब्रिस्तान बिलकुल सुनसान और सही जगह था मेरी रियाज के लिए. मुझे किसी का डर नहीं था. मैं खुलकर गा सकता था. उस वक्त मेरी उम्र करीब 12 बरस रही होगी. डर और झिझक से बचने के लिए कब्रिस्तान में गाया करता था. मेरे उस्ताद रोजाना दोपहर के खाने के बाद नींद लिया करते थे और मुझसे घर जाकर रियाज करने को कहते थे, लेकिन रियाज के लिए घर सही नहीं था क्योंकि वहां बहुत शोर-गुल था.'
संगीत पूरे परिवार के खून में बहा
उत्तर प्रदेश के बदायूं में तीन मार्च 1931 को जन्मे उस्ताद खान सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. उस्ताद खान के पिता उस्ताद वारिस हुसैन खान और दादा मुर्रेद बख्श भी हिन्दुस्तानी संगीत-गायन के उस्ताद हुआ करते थे. उनकी मां महान संगीतकार उस्ताद इनायत हुसैन खान की बेटी थीं. संगीत उनके परिवार में बहा करता था. इनायत हुसैन खान साहब भी वाजिद अली शाह के दरबार में गाते थे. वह भी ग्वालियर घराने के हद्दू खान के दामाद थे. उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां को 1991 में पद्मश्री, 2006 में पद्मभूषण और 2018 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
संगीत प्रेमी आंख बंद कर सुनते थे उस्ताद साहब को
खान साहब बदायूं से वर्ष 1953 में कानपुर आए थे. यहां पर इफ्तिखाराबाद में अपने रिश्तेदार व अंतरराष्ट्रीय सारंगी वादक गुलाम जाफर व गुलाम साबरी के पास रहा करते थे. कुछ समय बाद उन्होंने रियाज के लिए मछली वाले हाते में एक कमरा किराए पर ले लिया. यहां पर वह साजिंदों के साथ घंटों रियाज किया करते थे. जब वह राग मालकोश व राग चंद्रकोश पेश करते तो श्रोता घंटों अपनी आंखें बंदकर उन्हें सुना करते. यही वजह है कि संगीत के क्षेत्र में उनकी मौत को अपूर्णीय क्षति माना जा रहा है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की सुर कोकिला लता मंगेशकर से लेकर एआर रहमान तो सोनू निगम और अनूप जलोटा तक ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है. पीएम मोदी ने भी उन्हें याद कर विनम्र श्रद्धांजलि दी है.
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