Galwan Violence: दो साल बाद भी बातचीत से नही निकला समाधान, तनाव बरकरार
सैन्य कमांडर स्तर की 15 दौर की बातचीत के बावजूद चीन की एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाली रणनीति से गतिरोध में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आ सका है.
highlights
- एलएसी के कोंगका-ला इलाके पर भारत-चीन के बीच फंसा है अभी भी पेंच
- इनपुट कह रहे रूस-यूक्रेन युद्ध की आड़ में ड्रैगन फिर कर सकता दुस्साहस
- मोदी सरकार ने उकसावे पर मुंहतोड़ कार्रवाई का दे रखा है सेना को आदेश
नई दिल्ली:
पूर्वी लद्दाख (Ladakh) की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों और चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) जवानों के बीच हुई हिंसक झड़प के दो साल पूरे हो गए हैं. इसके बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने के लिए कूटनीतिक और सामरिक स्तर पर कई राउंड की वार्ता हो चुकी हैं. यह अलग बात है कि देपसांग और डेमचोक में गश्त को लेकर न सिर्फ गतिरोध बरकरार है, बल्कि चीन इस दौरान कई मौकों पर भारत (India) को उकसाने वाली कार्रवाई कर चुका है. इनमें भी प्रमुख है भारतीय सीमा से लगे कई इलाकों में चीनी सेना के लिए स्थायी आवास सेना को रसद औऱ हथियारों की आपूर्ति के लिए पुल बनाना समेत नए गांवों को स्थापित करना. एक लिहाज से देखें तो दो साल बाद भी पूर्वी लद्दाख में 1597 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दोनों में गतिरोध कायम है.
अप्रैल 2020 वाली यथास्थिति पर पेंच
भारत इस बात पर कायम है कि ड्रैगन एलएसी पर अप्रैल 2020 वाली यथास्थिति कायम रखे. यह अलग बात है कि सैन्य कमांडर स्तर की 15 दौर की बातचीत के बावजूद चीन की एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाली रणनीति से गतिरोध में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आ सका है. सबसे बड़ी बात है कि भारत की तमाम आपत्तियों के बावजूद कोंगका-ला इलाके में चीनी सैनिक मौजूद हैं. सामरिक जानकारों के अनुसार गलवान हिंसा के बाद चीनी सेना ने 17-18 मई को कुगरांग नदी, श्योक नदी की एक सहायक नदी, गोगरा और पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे के क्षेत्रों में घुसपैठ की थी. हालांकि भारत-चीन की सेनाएं पैंगोंग त्सो, गलवान और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स इलाकों में 2020 की पूर्वस्थिति में लगभग पहुंच गई हैं. यह अलग बात है कि कोंगका-ला पर बात अटकी हुई है.
एलएसी पर भारतीय सेना भी डटी
चीन के इसी रुख के कारण मोदी सरकार ने एलएसी पर भारतीय सैनिकों और आधुनिक विमानों-हथियारों के जमावड़े को और बढ़ा रखा है. भारत ने इस क्षेत्र में सैनिकों की कोई कमी करने के बजाय बख्तरबंद, रॉकेट, तोपखाने और मिसाइलें तैनात कर रखी हैं. यही स्थिति ड्रैगन की तरफ से भी है. इसकी वजह भी साफ है कि खुफिया इनपुट के मुताबिक चीन 71वें दिन में प्रवेश कर चुके रूस-यूक्रेन युद्ध की आड़ में एलएसी पर नए क्षेत्रों में घुसपैठ कर सकता है. यही वजह है कि मोदी सरकार की ओर से सख्त निर्देश दिए गए हैं कि एलएसी पर चीन के किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए.
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