Exclusive: आजाद हिंद फौज का आखिरी 102 साल का जिंदा सिपाही, जिन्होंने छुड़ाए थे अंग्रेजों के छक्के
आजादी के 73 साल पूरे होने पर आज जहां देश आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले अपने देशभक्तों को याद कर रहा है. वहीं जम्मू के आरएस पूरा बॉर्डर में आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाला आज़ाद हिंद फौज का एक जिंदा सिपाही ना केवल जय हिंद के नारे लगता है बल्कि आज़ादी की लड़ाई
जम्मू:
आजादी के 73 साल पूरे होने पर आज जहां देश आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले अपने देशभक्तों को याद कर रहा है. वहीं जम्मू के आरएस पूरा बॉर्डर में आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाला आज़ाद हिंद फौज का एक जिंदा सिपाही ना केवल जय हिंद के नारे लगता है बल्कि आज़ादी की लड़ाई की कहानियां सुना कर बॉर्डर के नौजवानों को प्रेरित भी करता है. हम बात कर रहे हैं आरएस पूरा के कोटली भगवानपुर इलाके के रहने वाले पंजाब सिंह की. सुभाष चंद्र बोस के साथ आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले पंजाब सिंह को देश की आज़ादी में योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने समानित करते हुए एक मैडल के साथ अंगवस्त्र भेजा है. जिसके बाद पंजाब सिंह के साथ उनका पूरा गांव गर्व महसूस कर रहा है.
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पंजाब सिंह का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है
उम्र के इस पड़ाव में भी आज़ादी की लड़ाई की कहानियों को याद करते हुए पंजाब सिंह का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. पंजाब सिंह आज़ादी से पहले लुधियाना में जाकर आज़ाद हिंद फौज में भर्ती हुए थे. जिसके बाद उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इस दौरान दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्हें सिंगापुर में भेजा गया. जहां वो पकड़े गए और उन्हें कैद कर लिया गया. इस दौरान उन्हें कई यातनाओं का सामना करना पड़ा. दो-दो दिन तक भूखा रहना पड़ा. जो खाना मिला उसमें चुना और कीड़े हुआ करते थे. इन सब हालातों में भी वो लड़ते रहे और 6 साल के बाद वो यहां से निकल पाए.
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सुभाष चंद्र बोस के साथ लड़ी थी आजादी की जंग
इस दौरान कई बार उनकी सुभाष चंद्र बोस से भी मुलाकात हुई. हर मुलाकात में सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें अंग्रेज़ों से हर हाल में आज़ादी लेने के लिए प्रोत्साहित किया. पंजाब सिंह के मुताबिक उस दौर में सुभाष अंग्रेज़ों के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके थे. एक किस्से का बयान करते हुए पंजाब सिंह बताते हैं कि उस समय सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेज़ों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए हवाई जहाज़ के जरिए पम्पलेट फेंके. जिनमें अंग्रेज़ों के खिलाफ लोगों से खड़ा होने की अपील की थी. जब ये पम्पलेट अंग्रेज़ी सरकार तक पहुंचे. उन्होंने लोगों से इन्हें उठाने के लिए मना किया. कहा कि जो इन्हें पढ़ता नज़र आया उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा.
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पंजाब सिंह गांववालों को सुनाते रहते हैं किस्से
वही पंजाब सिंह के मुताबिक सुभाष के रहस्मय तरके से हुई गुमशुदगी से वो भी हैरान थे. उनके मुताबिक आखिरी बार जब वो उनसे मिले तो उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई को जारी रखने के लिए कहा. लेकिन उसके बाद वो गायब हो गए. पंजाब सिंह ने अपने साथियों के साथ उन्हें तलाशने की भी कोशिश की. लेकिन उसके बाद सुभाष का कोई पता नहीं चला. बहरहाल पंजाब सिंह की बहादुरी और देश प्रेम को आज भी बॉर्डर के लोग सलाम करते हैं. पंजाब सिंह आये दिन गांव के लोगों को अपनी आजादी की लड़ाई की कहानियां सुनाते रहते हैं. गांव के लोग खास कर बच्चे और नौजवानों के लिए वो आदर्श है. यही कारण है कि बॉर्डर के ज्यादातर लोग उनसे प्रेरणा लेकर फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते हैं.
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