इमरजेंसीः जब सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कांग्रेस ने कर लिया था कब्जा, ऐसे थे हालात
26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल था. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. आपातकाल में लोगों के मूल अधिकार ही निलंबित नहीं किए गए, बल्कि उन्हें जीवन के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया.
नई दिल्ली:
इमरजेंसी, आजादी के बाद का वह दौर जब लोगों के सभी अधिकार छीन लिए गए. सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जेल भेज दिया गया. जेल जाने वालों में सिर्फ नेता ही शामिल नहीं थे. कई छात्रों को भी सिर्फ इसलिए जेल भेजा गया कि उन्होंने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. आपातकाल के उस दौर को लोग अभी तक नहीं भूल पाए हैं. कांग्रेस आज भले ही बीजेपी पर संस्थाओं को बर्बाद करने का आरोल लगाए लेकिन इमरजेंसी में जिस तरह सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कांग्रेस ने कब्जा किया वह दौर इतिहास में दर्ज है.
25-26 जून, 1975 की दरम्यानी रात को देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन 'आंतरिक अशांति' के तहत देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. 26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल था. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. आपातकाल में लोगों के मूल अधिकार ही निलंबित नहीं किए गए, बल्कि उन्हें जीवन के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया.
इंदिरा गांधी का रद्द हुआ था निर्वाचन
आपातकाल की रूपरेखा दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद ही शुरू हो गई थी. समाजवादी नेता राज नारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव (1971) में जीत को चुनौती दी. इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में राज नारायण को रायबरेली से हराया था लेकिन राज नारायण का आरोप था कि चुनावी फ्रॉड और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के चलते इंदिरा गांधी ने वह चुनाव जीता. इस मामले में 12 जून, 1975 को फैसला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया. इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 24 जून, 1975 को जस्टिस वीके कृष्णा अय्यर ने इस फैसले को सही ठहराते हुए सांसद के रूप में इंदिरा गांधी को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर रोक लगा दी. उनको संसद में वोट देने से रोक दिया गया. हालांकि उनको प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की छूट दी गई.
जनता ने लिया आपातकाल का बदला
आपातकाल के खिलाफ लड़ाई के सबसे बड़े नायक रहे जयप्रकाश नारायण. आपातकाल में जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया. पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया. सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी. अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए. संजय गांधी की मनमानियां सीमा पार कर गई थीं. उनके इशारे पर न जाने कितने पुरुषों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी. जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ. 1977 में फिर आम चुनाव हुए. 1977 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. 23 मार्च 1977 को इक्यासी वर्ष की उम्र में मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने. ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी.
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