ज्ञानवापी विवाद में लागू नहीं Places of Worship Act,क्या है पूरा कानून?
अनिल काबोत्रा की तरफ से दायर इस याचिका में दावा किया गया है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ है.
नई दिल्ली:
ज्ञानवापी-शृंगार गौरी केस को वाराणसी जिला अदालत ने सुनवाई योग्य माना है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी. दरअसल मुस्लिम पक्ष ने वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में 7 रूल 11 का एक प्रार्थना पत्र लगाया और यह कहा कि यह वाद सुनने योग्य नहीं हैं.सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालत को निर्देश दिया था कि वह केस की पोषणीयता निर्धारित करे. इस मामले में अब जिला जज ने केस को सुनवाई के योग्य माना है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि वर्शिप एक्ट क्या है?
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में पीवी नरसिंह राव (P. V. Narasimha Rao) के प्रधानमंत्रित्तव काल में अस्तित्व में आए पूजास्थल कानून-1991 (Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991) की संवैधानिक वैधता को लेकर बहस चल पड़ी है. वाराणसी के ज्ञानवापी मामले की वजह से ये कानून एक बार फिर से चर्चा में आया है.
इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय, वाराणसी निवासी रुद्र विक्रम, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, वृंदावन निवासी देवकीनंदन ठाकुर जी और एक धार्मिक गुरु पहले ही याचिकाएं दायर कर चुके हैं. समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, इस याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. कहा गया है कि यह संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है. इस कानून की धारा 2, 3 और 4 ने अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार भी छीन लिया है.
याचिकाओं में कहा गया है कि इस कानून की धारा 3 पूजा स्थलों का स्वरूप बदलने पर रोक लगाती है. इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को अलग धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजास्थल में परिवर्तित नहीं करेगा. धारा 4 किसी भी पूजा स्थल की 15 अगस्त 1947 को मौजूद धार्मिक चरित्र से अलग स्थिति में बदलने के लिए मुकदमा दायर करने या कोई कानूनी कार्रवाई शुरू करने पर रोक लगाती है. वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों को वक्फ अधिनियम की धारा 107 के तहत दावा करने की अनुमति देता है.
याचिकाओं में दावा किया गया है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 कई कारणों से गैरकानूनी और असंवैधानिक है. यह कानून हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के अपने धर्म की प्रार्थना करने, उसे मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने के अधिकार (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन करता है. यह कानून इनके तीर्थस्थलों के प्रबंधन और प्रशासन के अधिकारों (अनुच्छेद 26) के भी खिलाफ है. ये पूजा स्थल कानून इनको अपने देवता से संबंधित ऐसी धार्मिक संपत्तियों के मालिकाना हक वंचित करता है, जिन पर दूसरे समुदायों ने गलत तरीके से अधिकार जमा लिया है.
याचिका में दलील दी गई है कि 1991 का पूजास्थल कानून आक्रमणकारियों की बर्बरतापूर्ण हरकतों को वैध बनाता है. यह हिंदू कानून के उस सिद्धांत के भी खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि मंदिर की संपत्ति कभी नष्ट नहीं होती, भले ही वह वर्षों तक अजनबियों के अधिकार में रही हो. यहां तक कि कोई राजा भी ऐसी किसी संपत्ति को नहीं ले सकता क्योंकि देवता भगवान का रूप होते हैं और न्यायिक व्यक्ति है. इसे समय की बेड़ियों में सीमित नहीं किया जा सकता. याचिकाओं में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 1991 के इस कानून में मनमाने और तर्कहीन तरीके से एक तारीख तय कर दी है. ऐसे में पूजा स्थल कानून 1991 की इन धाराओं को संविधान के खिलाफ होने के लिए शून्य और असंवैधानिक घोषित किया जाना जाए.
क्या कहता है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?
प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 या उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है. यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था. 1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी. यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था.
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा- 2
यह धारा कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा.
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 3
इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है. इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए.
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (1)
इस कानून की धारा 4(1) कहती है कि 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा.
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4 (2)
धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे.
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 5
में प्रावधान है कि यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा.
कानून के पीछे का मकसद
यह कानून (Pooja Sthal Kanon, 1991) तब बनाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर भी पहुंचा था. इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा. उस वक्त अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे. बस फिर क्या था इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Arti Singh Wedding: सुर्ख लाल जोड़े में दुल्हन बनीं आरती सिंह, दीपक चौहान संग रचाई ग्रैंड शादी
-
Arti Singh Wedding: दुल्हन आरती को लेने बारात लेकर निकले दीपक...रॉयल अवतार में दिखे कृष्णा-कश्मीरा
-
Salman Khan Firing: सलमान खान के घर फायरिंग के लिए पंजाब से सप्लाई हुए थे हथियार, पकड़ में आए लॉरेंस बिश्नोई के गुर्गे
धर्म-कर्म
-
Aaj Ka Panchang 26 April 2024: क्या है 26 अप्रैल 2024 का पंचांग, जानें शुभ-अशुभ मुहूर्त और राहु काल का समय
-
Eye Twitching: अगर आंख का ये हिस्सा फड़क रहा है तो जरूर मिलेगा आर्थिक लाभ
-
Guru Gochar 2024: 1 मई के बाद इन 4 राशियों की चमकेगी किस्मत, पैसों से बृहस्पति देव भर देंगे इनकी झोली
-
Mulank 8 Numerology 2024: क्या आपका मूलांक 8 है? जानें मई के महीने में कैसा रहेगा आपका करियर