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भारत के इस कदम से तो और हिल जाएगा चीन, दिसंबर से कांपेगा

आधुनिक भारत के साथ पंगा लेकर चीन बुरी तरह से फंस गया है. सीमा पर भारत के आक्रामक रुख से चीन बैकफुट पर है. चीन बुरी तरह से घबराया हुआ है.

Updated on: 20 Oct 2020, 09:40 AM

नई दिल्ली:

आधुनिक भारत के साथ पंगा लेकर चीन बुरी तरह से फंस गया है. सीमा पर भारत के आक्रामक रुख से चीन बैकफुट पर है. चीन बुरी तरह से घबराया हुआ है. अब वह अपने ही लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा है कि उसकी सेना युद्ध लड़ सकती है. चीन मौजूदा हालात की तुलना 1962 के युद्ध से कर रहा है. मगर वह भूल गया है कि यह आधुनिक भारत है और विश्व में उसका डंका बज रहा है. दुनिया की बड़ी शक्तियों का समर्थन भारत को मिला है और इस बार ड्रैगन पर नकेल कसने की पूरी तैयारी है. भारत अब जो कदम उठाने जा रहा है, उससे चीन अभी से हिल चुका है.

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चीन अपनी सामरिक ताकत के गुमान में चूर है और भारत उसके इस घमंड को चकनाचूर करने की फुल-टू-फुल तैयारी कर चुका है. भारत-चीन सीमा विवाद के बीच महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत ने बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अगले महीने होने वाले मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास में अमेरिका और जापान के साथ ऑस्ट्रेलिया के भी हिस्सा लेने की घोषणा की है. भारत समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है और ऑस्ट्रेलिया के साथ रक्षा के क्षेत्र में बढ़ते सहयोग की पृष्ठभूमि में मालाबार-2020 नौसेना युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलियाई नौसेना की भागीदारी देखने को मिलेगी.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति और आक्रामकता से उत्पन्न परिस्थिति विश्व नेताओं के बीच चर्चा का केंद्र बनी हुई है. अमेरिका, चीन की बढ़ती हठधर्मिता को नियंत्रित करने के लिए ‘क्वॉड’ को एक सुरक्षा ढांचे में तब्दील करने का समर्थक रहा है. तो उधर, भारत द्वारा नौसेना युद्धाभ्यास में शामिल होने के ऑस्ट्रेलियाई अनुरोध को ऐसे समय स्वीकार किया गया जब पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सीमा को लेकर तनाव बढ़ रहा है. इस युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के जुड़ने के साथ ही पहली बार समुद्र में 'क्वाड' देशों की नौसैनिक शक्ति देखने को मिलने वाली है.

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भारत के इन कदमों से चीन के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. 'क्वाड' देशों के विदेशमंत्रियों की हाल ही में हुई बैठक के बाद से चीन बौखलाया हुआ है. इस बैठक पर चीन ने चारों देशों को चेतावनी दी कि वे 'विशेष गुट' न बनाएं, जिससे तीसरे पक्ष के हितों को खतरा हो. मगर चीन को सख्त संदेश देते हुए चारों क्वाड देश पहली बार एक साथ नौसैनिक युद्धाभ्यास करने जा रहे हैं.

मगर भारत यहीं नहीं रुकने वाला है. दिसंबर के महीने की शुरुआत में चीन बुरी तरह से कांपने लग जाएगा. भारत और अमेरिका के बीच 2+2 वार्ता दिल्ली में होने वाली है. दोनों ही देशों के बीच यह तीसरी टू प्लस टू वार्ता है और इसमें हिस्सा लेने के लिए अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भारत आएंगे. इस दौरान सैन्य सहयोग और आगे दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधी खरीद, प्रशिक्षण, संयुक्त सैन्य अभ्यास और क्षमताओं के विस्तार पर चर्चा होगी.

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इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट' (बीईसीए) होगा. इस समझौते पर साइन करने के लिए दोनों देश तैयार हैं. जिसका सबसे ज्यादा फायदा भारत को होगा. सूत्रों के मुताबिक, बीईसीए भारत का एक महत्वपूर्ण अग्रदूत है, जो अमेरिका से एमक्यू-9बी जैसे मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) को पाने में मदद करेगा. यह समझौता लद्दाख में चीन के भारी सैन्य निर्माण के मद्देनजर एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है. इससे पहले अमेरिका के साथ भारत ने ऐसे रक्षा समझौते किए, जो काफी महत्वपूर्ण हैं. जिनमें लेमोआ और कोमकासा (COMCASA) समझौता शामिल है.

लेमोआ समझौता

इस रक्षा करार के प्रावधान का उदाहरण हाल ही में देखने को मिला था. पिछले कुछ दिन पहले एक भारतीय जंगी जहाज ने उत्तरी अरब सागर में अमेरिकी नौसेना के टैंकर यूएसएनए यूकोन से ईंधन भरा था. यह इसी समझौते के बाद संभव हो पाया. दरअसल, 2016 में भारत और अमेरिका ने साजो-सामान विनिमय सहमति ज्ञापन (लेमोआ) पर हस्ताक्षर किया था, जिसके तहत दोनों सेनाएं एक दूसरे को मरम्मत और अन्य सेवा संबंधी जरूरतों के लिए एक दूसरे के अड्डे का उपयोग करेंगे. भारत फ्रांस, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया और जापान से ऐसा करार कर चुका है.

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COMCASA समझौता

साल 2018 में भारत और अमेरिका के बीच कॉमकासा (COMCASA-कम्युनिकेशंस कम्पैटबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) पर अहम समझौता हुआ. यह करार भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इसके तहत भारत अब अमेरिका की अति-आधुनिक रक्षा तकनीक का इस्तेमाल कर सकता है. दोनों देश अति आधुनिक लड़ाकू विमानों (C-17, C-130 और P-8I एयरक्रॉफ्ट) के हार्डवेयर की अदला-बदली भी कर सकते हैं. अमेरिका के अति आधुनिक रक्षा संचार उपकरणों का भी भारत उपयोग कर सकता है. इस करार से दोनों देशों के बीच टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में कानूनी अड़चनें भी नहीं रही हैं.