ग्लोबल वार्मिंग या भोजन के लिए संघर्ष: गोरिल्ला को मारकर खाने के लिए क्यों मजबूर हैं चिम्पैंजी

ग्लोबल वार्मिंग के भयावह परिणाम अब दुनिया भर में नजर आने लगे हैं. कनाडा जैसे ठंडे देश में भीषण गर्मी पड़ने लगी है, जबकि जंगली जीवों के खान-पान में भी बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं.

ग्लोबल वार्मिंग के भयावह परिणाम अब दुनिया भर में नजर आने लगे हैं. कनाडा जैसे ठंडे देश में भीषण गर्मी पड़ने लगी है, जबकि जंगली जीवों के खान-पान में भी बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं.

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Manoj Sharma
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गोरिल्ला को मारकर खाने के लिए क्यों मजबूर हैं चिम्पैंजी( Photo Credit : News Nation)

ग्लोबल वार्मिंग के भयावह परिणाम अब दुनिया भर में नजर आने लगे हैं. कनाडा जैसे ठंडे देश में भीषण गर्मी पड़ने लगी है, जबकि जंगली जीवों के खान-पान में भी बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं. उदाहरण के लिए चिम्पैंजी और गोरिल्ला एक ही प्रजाति के जीव होते हुए भी एक-दूसरे को मारकर खाने लगें, तो क्या कहा जाएगा. 2019 में अफ्रीका महाद्वीप में ऐसा पहली बार देखने में आया था कि एक चिम्पैंजी ने गोरिल्ला को मारकर उसे खा लिया. उसके बाद भी ऐसी ही एक घटना देखी गई थी. अब वैज्ञानिक भी दुविधा में हैं कि इसे ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम बताएं या फिर भोजन की प्रतिस्पर्धा के कारण घटी घटना का नाम दें.

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दरअसल गैबॉन में अफ्रीका के लोआंगो नेशनल पार्क में रहने वाले चिम्पैंजी पिछले कुछ समय से गोरिल्लाओं पर हमला कर रहे हैं और उन्हें मार रहे हैं. वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का कहना है कि ये घटनाएं अपने आप में अनोखी हैं, क्योंकि पहले ऐसा नहीं होता था.

तो क्या यह मान लिया जाए कि चिम्पैंजी के परंपरागत भोजन के स्रोत कम हो रहे हैं, जिनकी वजह से वे करीब-करीब अपने जैसे ही जीवों को मारकर खाने के लिए मजबूर हो गए हैं.

Osnabrück University और Max Planck Institute के शोधकर्ताओं का कहना है कि चिम्पैंजी के व्यवहार में इस घातक बदलाव से पहले 2014 से 2018 के बीच नौ अवसरों पर चिम्पैंजी और गोरिल्लाओं ने शांति से मामले को सुलझाने की कोशिश की. इस दौरान उन्होंने मिल-जुलकर पेड़ों से तोड़कर फल खाए और वे एक-दूसरे की मौजूदगी से आक्रामक नहीं हुए. उनके इस सद्भावनापूर्ण व्यवहार में एक डरावना मोड़ 2019 में आया, जब दो मौकों पर चिम्पैंजियों के समूह ने गोरिल्लाओं पर हमला बोल दिया. पहली बार दोनों गुटों में 124 मिनट तक मुकाबला हुआ और इस युद्ध का दुखद अंत दो गोरिल्ला शिशुओं की मौत के साथ हुआ.

दूसरी मुठभेड़ और भी भयानक थी, क्योंकि संघर्ष के अंत में एक वयस्क मादा चिम्पैंजी ने मृत शिशु गोरिल्ला के शव को खा लिया. मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के प्राइमेटोलॉजिस्ट टोबियास डेसचनर का आकलन है कि लोआंगो नेशनल पार्क (जंगल) में उपलब्ध फलों और अन्य खाद्यपदार्थों को पहले हाथी, चिम्पैंजी और गोरिल्ला मिलकर खाते थे। खाने की चीजें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने की वजह से इन जीवों के बीच कभी कोई संघर्ष देखने में नहीं आता था. बाद में उपलब्ध भोजन सामग्री में अपना हिस्सा पाने की प्रतियोगिता ने इन जीवों के व्यवहार में बड़ा बदलाव ला दिया.

पिछले कुछ समय से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जलवायु में हो रहे बदलाव को भी फलों और अन्य खाद्य पदार्थों में आ रही कमी की वजह बताया जाने लगा है। हाथी से दोनों ही जीव भिड़ नहीं सकते। इसलिए संघर्ष इन दो महान वानर जातियों के बीच ही होता है और बेकसूर शिशुओं की मौत हो जाती है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.0

Source : News Nation Bureau

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