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रायपुर के करीब चंदखुरी में है विश्व का इकलौता कौशल्या माता मंदिर

126 तालाबों के लिए मशहूर रायपुर जिले के चंदखुरी गांव में जलसेन तालाब के बीच में माता कौशल्या का मंदिर है जो दुनिया में भगवान राम की मां का इकलौता मंदिर है. माता कौशल्या के जन्म स्थल के कारण ही इसे रामलला का ननिहाल कहा जाता है.

Updated on: 14 Nov 2020, 12:22 PM

रायपुर:

भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या दीपावली के अवसर पर जगमगा रही है. वहां त्रेता युग जैसा माहौल है. कुछ इसी तरह का माहौल छत्तीसगढ़ में राम वन गमन परिपथ में आने वाले चंदखुरी का है, जिसे भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली होने की मान्यता प्राप्त है. 126 तालाबों के लिए मशहूर रायपुर जिले के चंदखुरी गांव में जलसेन तालाब के बीच में माता कौशल्या का मंदिर है जो दुनिया में भगवान राम की मां का इकलौता मंदिर है. माता कौशल्या के जन्म स्थल के कारण ही इसे रामलला का ननिहाल कहा जाता है. यही कारण है कि दीपावली के अवसर पर चंदखुरी में भी उत्सव होता है. दिये जलाए जाते हैं और लोग राम की विजय और अयोध्या वापसी का जश्न मनाते हैं. और मनाएं भी क्यों नहीं, राम का इस स्थान से अमिट नाता रहा है और कहा जाता है कि उनके बचपन का एक बड़ा हिस्सा यहां बीता है.

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छत्तीसगढ़ सरकार बनवा रही राम वन गमन पथ
यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार राम वन गमन पथ को विकसित करने को लेकर काम कर रही है. छत्तीसगढ़ के कोरिया से लेकर सुकमा तक राम वन गमन पथ का कण कण राममय किया जाएगा. इसके तहत 51 स्थलों का चयन किया गया है, जिसके लिए लगभग 137.75 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लॉकडाउन के बीच पर्यटन में तेजी लाने और युवाओं को रोजगार दिलाने का प्रयास किया है, जिसके चलते छत्तीसगढ़ में भगवान राम के वन गमन से जुड़े सभी स्थलों को भव्य रूप से सजाने की तैयारी चल रही है. उन्होंने कहा, पहले चरण में 8 स्थलों को विकसित किया जाएगा और उसके बाद अगले चरण में राम वनगमन पथ के 16 जिलों के शेष 43 स्थलों का प्लान तैयार होगा.

मुख्यमंत्री ने कहा, व्यापक शोध के आधार पर इन स्थलों को राज्य सरकार ने अपनी सूची में शामिल किया है, जिसमें तीर्थ एवं पर्यटन स्थलों के प्रवेश द्वार से लेकर लैंप-पोस्ट और बेंच तक के सौंदर्यीकरण का विशेष ध्यान रखा गया है.

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पग-पग पर रामलला के दर्शन होंगे
बघेल ने कहा कि श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों को राम वन गमन पथ की यात्रा के दौरान पग-पग पर रामलला के दर्शन होंगे. परिपथ के मुख्य मार्ग सहित उप मार्गों की कुल लम्बाई लगभग 2260 किमी है. इसके किनारे लगाये जाने वाले संकेतकों पर तीर्थ स्थलों एवं भगवान श्री राम के वनवास से जुड़ी कथाओं की जानकारी होगी.

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश सचिव एवं रायपुर के महापौर एजाज ढेबर ने कहा, भगवान रामलला के ननिहाल चंदखुरी का सौंदर्य अब पौराणिक कथाओं के नगरों जैसा ही आकर्षक होगा. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के निकट स्थित इस गांव के प्राचीन कौशल्या मंदिर के मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए, पूरे परिसर के सौंदर्यीकरण की रूपरेखा तैयार कर ली गई है. चंदखुरी, भगवान राम का ननिहाल है, यहां सातवीं सदी में निर्मित माता कौशल्या का प्राचीन मंदिर है. माता कौशल्या मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण और विकास के लिए 15 करोड़ 45 लाख रुपये की योजना तैयार की गई है.

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पहले चरण में 6.70 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे
उन्होंने कहा कि योजना के मुताबिक, चंदखुरी में मंदिर के सौंदर्यीकरण और परिसर विकास का कार्य दो चरणों में पूरा किया जाएगा. पहले चरण में 6.70 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, जबकि दूसरे चरण में 8.75 करोड़ रुपये खर्च होंगे. योजना के मुताबिक चंद्रखुरी को पर्यटन-तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाना है. इसलिए यहां स्थित प्राचीन कौशल्या माता मंदिर के सौंदर्यीकरण के साथ-साथ नागरिक सुविधाओं का विकास भी किया जाएगा.

तय कार्यक्रम के अनुसार राम वन गमन पथ पर पहले चरण में जिन 8 स्थानों का चयन किया गया है, उन सभी में आकर्षक लैंडस्केप तैयार किया जाएगा. सभी स्थानों पर भव्य द्वार बनाए जाएंगे, जिनके शीर्ष पर भगवान राम का धनुष और उसकी प्रत्यंचा पर रखा हुआ तीर होगा. द्वार पर जय श्रीराम के घोष के साथ राम-पताका लहरा रही होगी. एक अन्य डिजाइन में लैंपपोस्ट के शीर्ष पर भी तीर-धनुष स्थापित किया जाएगा.

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हरचौका में राम के वनवास काल का पहला पड़ाव
सीतामढ़ी हरचौका कोरिया जिले में है. भगवान श्री राम के वनवास काल का पहला पड़ाव यही माना जाता है. यह नदी के किनारे स्थित है, जहां गुफाओं में 17 कक्ष हैं. इसे सीता माता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है. जांजगीर चांपा जिले के शिवरीनारायण में रुककर भगवान श्री राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे.

जगदलपुर, बस्तर जिले का मुख्यालय है. चारों ओर वन से घिरा हुआ है. कहा जाता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम जगदलपुर क्षेत्र से गुजरे थे, क्योंकि यहां से चित्रकूट का रास्ता जाता है. पांडवों के वंशज काकतीय राजा ने जगदलपुर को अपनी अंतिम राजधानी बनाया था.