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सीएम नीतीश कुमार के दिल्‍ली आने के निहितार्थ,क्‍या पीएम नरेंंद्र मोदी से होगी सार्थक मुलाकात

बिहार में मंत्रिमंडल विस्‍तार के बाद मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के दिल्‍ली दौरे को लेकर सियासी हल्‍कों में तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. नीतीश के दिल्‍ली प्रवास से बिहार की राजनीति पर पड‌ने वाले असर पर एक नजर.

Updated on: 10 Feb 2021, 01:23 PM

highlights

  • पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार की मुलाकात में क्‍या होगी बात पर है सबकी नजर.
  • सीएम नीतीश कुमार अपने पुराने तेवरों में नजर आ रहे हैं
  • बिहार की सियासत में बदलाव के संकेत 

पटना :

बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार, मंत्रिमंडल विस्‍तार के बाद दो दिन के लिए दिल्‍ली प्रवास पर आ रहे हैं. नीतीश दोपहर 12ः30 बजे की फ्लाइट से दिल्‍ली पहुंचेंगे.  इस दौरे के दौरान उनकी पीएम मोदी से मुलाकात होने की संभावना जताई जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दिल्ली में होने वाली ये मुलाक़ात को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. सियासी कयास है कि इस मुलाकात के दौरान नई सरकार और बिहार के राजनीतिक हालात समेत विकास के मुद्दों पर भी चर्चा हो सकती है. बिहार में हुए विधानसभा चुनाव और नई सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री के साथ ये पहली मुलाक़ात है.

गौरतलब है कि,बिहार चुनाव में मिली जीत के बाद नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी के कई बड़े चेहरे तो आए थे, लेकिन समारोह में पीएम मोदी की गैरमौजूदगी से कई सवाल खडे हुए थे. दरअसल चुनावों के दौरान व सरकार गठन के बाद ऐसे कई अवसर आएं हैं जब बीजेपी और जदयू के बीच राजनीतिक मतभेद सामने आए हैं .

जब होगी मुलाकात तो होगी क्‍या इन मतभेदों पर बात

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों के मन में इस बात को लेकर खासी उत्‍सुकता है कि क्‍या जब मोदी-नीतीश मुलाकात होगी तो उन मसलों पर भी बात होगी जिनको लेकर दानों दलो के बीच मतभेद उभरे थे. माना जा रहा है कि नीतीश अपने दिल्‍ली प्रवास का इस्‍तेमाल पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से संबंध को अधिक मजबूत बनाने के लिए करेंगें. मालूम हो कि चुनावों के दौरान चिराग पासवान की लोकजनशक्‍ति पार्टी की भूमिका को लेकर बीजेपी और नीतीश के बीच खासी रस्‍साकशी चली थी. जदयू का मानना था कि बीजेपी चिराग का इस्‍तेमाल नीतीश को कमजोर करने के लिए कर रही है हालांकि भाजपा ने इस बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया था. इसी तरह सीएए एनआरसी को लेकर भी मोदी और नीतीश के मतभेद सामने आए थे. नीतीश का रूख, भाजपा की आधिकारिक लाइन से अलग था. लेकिन बिहार की राजनीति में नीतीश की अहमियत को देखते हुए बीजेपी ने इस मसले को ज्‍यादा तूल नहीं दिया था.  गौरतलब है कि थोड़ समय के लिए छोड़कर पिछले करीब 15 साल से बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन सत्ता में है.

जानकारों का कयास है कि बिहार में चुनावों के बाद नीतीश कुमार के आत्‍मविश्‍वास में जो कमी आई थी वह अब दूर होती दिखाई दे रही है और मंत्रिमंडल विस्‍तार के बाद वह अपने पुराने तेवरों में नजर आ रहे हैं.  सवाल यह है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान भी वह इन तेवरों को कायम रख पाएंगे.

अरुणाचल से आई थी रिश्‍तों में कडवाहट 

अरुणाचल प्रदेश में 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में जदयू को सात सीटें मिली थीं और भाजपा (41 सीटें) के बाद वह राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई, लेकिन उसके छह विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए. इसके बाद जदयू और बीजेपी के रिश्‍तों में खासी कडवाहट आ गई थी.

बिहार में नई सरकार की गठन के लगभग तीन महीने बाद मंगलवार को कैबिनेट का विस्तार किया गया है. शपथग्रहण के दौरान बीजेपी और जेडीयू के कुल 17 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली थी शपथ लेने के चंद घंटों बाद ही सभी नए मंत्रियों को उनका विभाग भी सौंप दिया गए हैं.  बुधवार को सभी मंत्री पद ग्रहण करेंगे और विभाग की बागडोर अपने हाथों में लेंगे.

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इन अहम नेताओं को मिली ये जिम्मेदारी

मालूम हो कि बीजेपी की ओर से विधान परिषद के सदस्य शाहनवाज हुसैन को मंत्री बनाने के बाद उन्हें उद्योग विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है.  संजय झा को जल संसाधन और सूचना.जनसंपर्क तो वहीं सम्राट चौधरी को पंचायती राज की जिम्मेदारी सौंपी गई है.मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल (युनाइटेड) ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. भाजपा और जदयू ने शाहनवाज हुसैन और जमां खान को मंत्री बनाकर जहां अल्पसंख्यकों को खुश करने की कोशिश की है, वहीं भाजपा ने नितिन नवीन को मंत्री का दायित्व देकर कायस्थ वोट बैंक को साधने की कोशिश की है. 

मंत्रिमंडल विस्तार में ऐसे तो सभी जाति से आने वाले नेताओं को मंत्री बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन सबसे अधिक राजपूत जाति को तवज्जो दी गई है. राजपूत जाति से आने वाले चार लोगों को मंत्री बनाया गया है. भाजपा और जदयू ने दो-दो राजपूत नेताओं को मंत्री बनाकर सवर्णो पर भी विश्वास जताया है. भाजपा ने जहां नीरज कुमार बबलू व सुभास सिंह को मंत्री बनाया, वहीं जदयू ने लेसी सिंह और जमुई से निर्दलीय विधायक सुमित सिंह को मंत्री बनाया है. दोनों दलों ने ब्राम्हण जाति से आने वाले एक-एक नेता को मंत्री बनाया गया है. भाजपा ने जहां आलोक रंजन को मंत्री बनाया है, वहीं जदयू ने संजय कुमार झा पर एकबार फिर विश्वास जताया है.

भाजपा ने दलित समुदाय से आने वाले पूर्व सांसद जनक राम को मंत्रिमंडल में शामिल किया है, जबकि जदयू ने भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे गोपालगंज के भोरे के विधायक सुनील कुमार को मंत्रिमंडल में स्थान देकर दलित कॉर्ड भी खेलने की कोशिश की है.

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