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बेहमई हत्याकांडः 40 साल से तारीख पर तारीख, आखिरी गवाह भी मर गया

अंतिम जीवित गवाह जतंर सिंह की मृत्यु के साथ बेहमई मामले में अदालत के फैसले के लिए उनका 40 साल का इंतजार भी समाप्त हो गया है.

Updated on: 23 Oct 2021, 10:37 AM

highlights

  • अंतिम जीवित गवाह जंतर सिंह का लखनऊ में निधन
  • अदालत के फैसले का 40 साल का इंतजार भी समाप्त
  • फरवरी 1981 को बेहमई गांव में हत्याएं की थी फूलन देवी ने

कानपुर:

1981 के बेहमई नरसंहार मामले में अंतिम जीवित गवाह जंतर सिंह का लंबी बीमारी के बाद लखनऊ के एक अस्पताल में गुरुवार को निधन हो गया. जंतर सिंह को बेहमई हत्याकांड के दौरान गोली लग गई थी, जिसमें 14 फरवरी 1981 को दस्यु रानी फूलन देवी और उनके गिरोह द्वारा 21 ठाकुरों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. बेहमई मुकदमे में शामिल जिला सरकार के वकील राजू पोरवाल ने बताया कि जंतार सिंह गंभीर रूप से बीमार थे और उन्हें एसजीपीजीआईएमएस, लखनऊ में भर्ती कराया गया था. उनकी मृत्यु के साथ  मामले में अदालत के फैसले के लिए उनका 40 साल का इंतजार भी समाप्त हो गया है.

पोरवाल ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता राजाराम की मौत के बाद जंतर सिंह मामले को आगे बढ़ा रहे थे. हालांकि उनकी मृत्यु का मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि उनके साक्ष्य पहले ही अदालत द्वारा दर्ज किए जा चुके थे. 14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव तब सुर्खियों में आया था जब फूलन देवी और उसके गिरोह ने अपने प्रेमी विक्रम मल्लाह के अपमान और हत्या का बदला लेने के लिए यमुना नदी के तट पर स्थित गांव पर छापा मारा था. फूलन और उसके गिरोह ने गांव के सभी पुरुषों को घेर लिया और उन्हें गोली मार दी. घटना में दो ग्रामीण भी घायल हुए हैं.

गवाह जंतर सिंह को भी बंदूक की गोली लगी थी, लेकिन वह बच गया था क्योंकि वह एक घास के ढेर में छिप गया था. वह अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह थे. पोरवाल ने कहा, 'उसी गांव के एक ग्रामीण राजाराम ने मामले की प्राथमिकी दर्ज कराई थी. उसकी मौत के बाद जंतर सिंह मामले की पैरवी कर रहा था और हर तय तारीख पर अदालत पहुंचता था.' मुख्य आरोपी फूलन देवी सहित करीब आधा दर्जन कथित डकैतों की पिछले वर्षों में मौत हो चुकी है और उनके खिलाफ मामले खत्म हो गए हैं. कथित डकैतों में से एक पोसा जेल में है जबकि आरोपी श्याम बाबू, विश्वनाथ और भीखा जमानत पर हैं. मामला दो बार अंतिम फैसले के चरण में पहुंच चुका था, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से फैसला नहीं दिया जा सका.

फैसला सुनाने से पहले अदालत ने अभियोजन पक्ष से मूल केस डायरी तलब की थी, लेकिन वह गायब पाई गई. पोरवाल ने कहा, हालांकि मूल केस डायरी का पता नहीं चल पाया था, लेकिन एक जेरॉक्स कॉपी रिकॉर्ड में थी. इस दौरान डकैती रोधी अदालत के पीठासीन अधिकारी का तबादला कर दिया गया. अब कानून और नियमों के मुताबिक नए पीठासीन अधिकारी को मामले की नई दलीलें सुननी होंगी. जल्द ही बहस शुरू होने की संभावना है.