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अदालत में जीती जाएगी अमेरिकी चुनाव की जंग!

ट्रंप ने कई राज्यों में काउंटिंग में गड़बड़ी का आरोप लगाया है, साथ ही सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह दी है. कुछ राज्यों में रिकाउंटिंग को लेकर रिपब्लिकन पार्टी (Republican Party) अदालत तक पहुंच भी गई है.

Updated on: 05 Nov 2020, 12:01 PM

नई दिल्ली:

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव (American Presidential Elections 2020) अब फंस चुका है. डेमोक्रेट्स के जो बाइडेन (Joe Biden) अभी इलेक्टोरल वोट की रेस में आगे चल रहे हैं लेकिन डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) हार मानने के लिए तैयार नहीं हैं. ट्रंप ने कई राज्यों में काउंटिंग में गड़बड़ी का आरोप लगाया है, साथ ही सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह दी है. कुछ राज्यों में रिकाउंटिंग को लेकर रिपब्लिकन पार्टी (Republican Party) अदालत तक पहुंच भी गई है. अब ऐसे में सवाल है कि क्या अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट चुनाव के नतीजों को तय कर सकता है. अबतक अमेरिकी इतिहास में ऐसा दो ही बार हो पाया है, जब किसी राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शपथ ली हो.

कब-कब सुप्रीम कोर्ट ने दिया है दखल? 
2000 में जब रिपब्लिकन की ओर से जॉर्ज बुश और डेमोक्रेट्स की ओर से एल गोरे चुनावी मैदान में थे, तो फ्लोरिडा में पेच फंस गया था. उस वक्त यहां पर जॉर्ज बुश कुल 537 वोटों से आगे थे, लेकिन एल गोरे की ओर से दोबारा पूरे राज्य में वोटों की गिनती की मांग कर दी गई थी.  जिसके बाद जॉर्ज बुश की ओर से कोर्ट का रुख किया गया और रिकाउंटिंग रोकने को कहा गया. अंत में सुप्रीम कोर्ट ने बुश के पक्ष में फैसला सुनाया था और रिकाउंटिंग रोक कर, बुश को विजेता घोषित कर दिया था.

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1876 में एक वोट से तय हुई थी हार-जीत
इसके अलावा साल 1876 में जब अंतिम नतीजों के लिए कांग्रेस ने एक कमिशन का गठन किया था. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज, हाउस ऑफ रिप्रेंजेटेटिव, सीनेटर और अन्य लोग शामिल थे. अंत में इन्हीं की वोटिंग के आधार पर राष्ट्रपति का नाम तय हुआ था. तब रुदरफोर्ड बी. हेयस ने अंत में 1 वोट से डेमोक्रेट्स के सैमुअल टिल्डन को हरा दिया था और देश को 19वें राष्ट्रपति बने. अब जब एक बार फिर अमेरिकी चुनाव के नतीजे सुप्रीम कोर्ट की ओर बढ़ रहे हैं, तो हर किसी की चिंताएं भी बढ़ रही हैं. डोनाल्ड ट्रंप की टीम की ओर से अदालत का दरवाजा खटखटाया जा रहा है, जहां कुछ दिन पहले ही डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नामित एमी कोने बेनेट सुप्रीम कोर्ट की जज बनी हैं. हालांकि, टीम ट्रंप की ओर से अभी सिर्फ राज्य स्तर पर ही अदालत में अपील की गई है. 

ट्रंप के भाषण से उलझी बात
गौरतलब है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव खत्म होते ही डोनाल्ड ट्रंप ने जल्दबाज़ी में भाषण दे डाला, जिससे पहेली सी बन गई. मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस से अपने समर्थकों के लिए दिए भाषण में जल्दबाज़ी दिखाते हुए कह दिया कि 'हम चुनाव जीत चुके हैं. डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन हार रहे हैं.'  ट्रंप का भाषण यहीं खत्म नहीं हुआ. ट्रंप ने यह भी कह दिया कि वो अपने दावे को सुप्रीम कोर्ट लेकर जाएंगे. एक वाक्य और कहा कि 'हम चाहते हैं कि सारी वोटिंग बंद हो जाए'! इन तमाम वाक्यों को एक तरतीब में समझने के लिए विशेषज्ञ माथापच्ची कर रहे हैं. चूंकि वोट तो डाले जा चुके हैं और मेल इन बैलट भी संपन्न हो चुका है, ऐसे में माना जा रहा है कि 'वोटिंग बंद' से ट्रंप का मतलब उन वोटों से है, जो मेल इन बैलट में गैरहाज़िर रहे. कयास है कि मिशिगन और पेंसिल्वेनिया में ये वोट काफी अ​हमियत वाले हैं और ट्रंप के प्रतिद्वंद्वदी जो बाइडन को बढ़त दिला सकते हैं. 

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मतगणना रोकने पहुंचे अदालत
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जॉर्जिया में मतगणना रोकने के लिए अदालत पहुंच गए हैं. एसोसिएटेड प्रेस ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. इससे पहले बुधवार को बुधवार को मिशिगन तथा पेंसिल्वेनिया में बैलेट पत्रों की गणना रोकवाने के लिए अदालत में अपील की थी. ट्रंप का कहना है कि उनके पवेर्क्षकों को गैरकानूनी तरीके से चुनावों में प्रवेश करने से वंचित रखा गया. अमेरिकी चुनाव आयोग के हवाले से खबरों में साफ कहा गया कि वोटिंग संपन्न होने की रात को ही अंतिम नतीजे अमेरिका के चुनावी इतिहास में कभी नहीं आए. नतीजे आने में हफ्तों का समय लगता है और खास बात यह है कि सभी जायज़ वोटों की गिनती होती है. 

ट्रंप लगातार रहे हैं पिछड़
विशेषज्ञों के मुताबिक सभी 21 राज्यों में डाले गए वोट गिने जाते हैं और नियत तिथि के बाद भी जो वोट पोस्टमार्क सिस्टम से मिलते हैं, उन्हें भी काउंट किया जाता है. इस बार पेंसिल्वेनिया, नेवाडा और उत्तरी कैरोलिना में ऐसा होगा और पोस्टमार्क वोटों के लिए राज्य के हिसाब से अलग अलग अंतिम तिथि की जाती है. इलेक्टोरल वोट की रेस में डेमोक्रेट्स की ओर से उम्मीदवार जो बाइडेन बहुमत के करीब आ गए हैं, वहीं डोनाल्ड ट्रंप पिछड़ते हुए दिख रहे हैं. हालांकि, कुछ राज्यों में काउंटिंग चल रही है जहां डोनाल्ड ट्रंप आगे चल रहे हैं. लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां काउंटिंग खत्म हो गई है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने नतीजे पर सवाल खड़े कर दिए हैं. 

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पेंसिल्वेनिया में ट्रंप ने फंसाया पेंच
डोनाल्ड ट्रंप का आरोप है कि पेंसेलवेनिया में उनको पांच लाख वोटों की लीड थी, जिन्हें खत्म करने की कोशिश की जा रही है. बता दें कि पेंसिल्वेनिया में कुल 20 इलेक्टोरल वोट हैं जो नतीजों में अहम भूमिका निभा सकते हैं. जो बाइडेन ने सबसे अंत में मिशिगन और विस्कॉन्सिन में जीत हासिल की है. इन दोनों राज्यों में कुल 26 इलेक्टोरल वोट हैं. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की ओर से यहां बड़े आरोप लगाए गए हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया कि मिशिगन में काउंटिंग स्थल पर उनकी टीम को जाने नहीं दिया जा रहा है, जबकि उम्मीदवारों के एजेंट को एक निश्चित एंट्री देनी चाहिए. 

कोर्ट में लड़ी जाएगी लड़ाई?
इस बारे में डैश विले की खबर की मानें तो जर्मनी में अमेरिका के राजदूत रहे पीटर विटिंग का कहना है कि अमेरिका में अलग अलग इलाकों में 4000 से ज़्यादा कोर्ट केस फाइल किए जा चुके हैं. इस बार चुनाव में आप अदालत में लड़ाई देख सकते हैं. लेकिन, बुश बनाम गोर की लड़ाई से यह लड़ाई अलग होगी. कहा जा सकता है कि दुनिया के सबसे मज़बूत लोकतंत्र कहे जाने वाले अमेरिका के सिस्टम की साख इस बार इम्तिहान से गुज़रेगी. ट्रंप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में उनके समर्थन का माहौल है क्योंकि कंज़र्वेटिव बहुमत है और पिछले ही दिनों ट्रंप द्वारा नामित जज एमी बैरे ने शपथ ग्रहण की है. लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट अमेरिका की इस सियासी लड़ाई में पक्षपात करेगा?

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चुनाव परिणामों में देरी का इतिहास
2000 और इससे पहले भी अमेरिका के चुनावी परिणाम में देरी हो चुकी है. अगर 2000 की बात करें तो चुनाव के एक महीने बाद 12 दिसंबर को अमेरिका और दुनिया के लोगों को चुनावी नतीजों की जानकारी मिल पाई थी. तब अमेरिका सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि फ्लोरिडा को वोटों की गिनती बंद करनी चाहिए और जॉर्ज डब्ल्यू बुश बनाम अल गोर के लिए चुनाव कराया जाए. वर्ष 1937 तक, अमेरिकी राष्ट्रपति जनवरी के बजाय मार्च महीने में सत्ता की गद्दी संभालते थे, क्योंकि मुख्य रूप से मतगणना में ही लंबा समय बीत जाता था.

1918 में फ्लू ने कराए देर से मध्यावधि चुनाव
1918 में स्पैनिश फ्लू के दौरान चुनाव आयोजित किए गए थे, लेकिन वे राष्ट्रपति चुनाव नहीं बल्कि मध्यावधि चुनाव थे. अमेरिकी इतिहास की जानकारी रखने वाले इतिहासकारों का मानना है कि थॉमस जेफरसन बनाम जॉन एडम्स की 1800 में हुई चुनावी लड़ाई नौ महीने तक चली थी. हालांकि वर्तमान चुनाव में नौ महीने का समय किसी और परिदृश में सामने आया है. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को ठीक नौ महीने पहले ही कोरोना वायरस महामारी के बारे में पता चला और अभी तक महामारी ने अमेरिका में ऐसी तबाही मचाई कि इसकी वजह से 231,000 से अधिक अमेरिकी अपनी जान गंवा चुके हैं.

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इस बार कई चीजें पहली बार
यह चुनाव कई मायनों में खास है, क्योंकि इसमें कई चीजें पहली बार देखने को मिल रही हैं. इस बार के चुनाव में एक बात पहली बार देखी जा रही है, वह यह है कि एक अश्वेत और भारतीय अमेरिकी महिला कमला हैरिस एक प्रमुख पार्टी के टिकट पर उप-राष्ट्रपति की दावेदार हैं. इसके अलावा यह पहली बार है जब दोनों राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की आयु 70 वर्ष से अधिक है. ट्रंप जहां 74 वर्ष के हैं, वहीं बाइडन 77 साल के हो चुके हैं. यह भी पहली बार है, जब अमेरिकी चुनाव एक बड़ी वैश्विक महामारी के बीच चल रहा है, जिसने देश के हर एक राज्य में लोगों की जान ली है.